बढ़ते जा रहे लव जिहाद के मामलों के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला बनेगा नजीर
लव जिहाद या रोमियो जिहाद, मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदू समुदाय से जुड़ी महिलाओं को इस्लाम में परिवर्तन के लिए प्रेम का स्वांग रचाना है। यह हिंदू समाज की जनसंख्या को कम करने के लिए शुरू किया गया एक जिहाद है।
शादी-विवाह एक पवित्र बंधन होता है, जिसमें धर्मानुसार दो आत्माओं का मिलन होता है। जब यह रिश्ता जोड़ा जाता है तो यही उम्मीद रहती है कि पति-पत्नी हर सुख-दुख में उम्र भर एक-दूसरे का साथ निभाएंगे। ऐसे पवित्र बंधन को समाज भी मान्यता देता है, लेकिन समस्या तब आड़े आती है जब धर्म की आड़ लेकर शादी-विवाह के नाम पर अधर्म किया जाता है। शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन तक कर लिया जाता है। यहां तक कि हिन्दू धर्म की लड़की को मुसलमान बना दिया जाता है तो कुछ मामलों में शादी करने के लिए मुस्लिम लड़कियां भी अपना धर्म बदलते दिख जाती हैं, लेकिन ऐसे मामले न के बराबर होते हैं। पिछले कुछ वर्षों से हिन्दू लड़कियों का जर्बदस्ती या फिर बहला-फुसला कर धर्म परिवर्तन करने के मामले काफी बढ़ गए हैं। इस बात के कई प्रमाण हैं कि इस्लाम के नाम पर बनी कुछ संस्थाओं का काम ही यही है कि किस तरह से हिन्दू लड़कियों को बरगला कर मुस्लिम धर्म स्वीकारने और निकाह करने को मजबूर किया जाए, लेकिन इस संबंध में हाईकोर्ट का फैसला मील का पत्थर साबित हो सकता है जिसमें उसने शादी के लिए धर्म परिवर्तन को अवैध करार दिया है। इस फैसले से हिन्दुस्तान में लव जिहाद चलाने वालों के मंसूबों पर भी पानी फिर सकता है।
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दरअसल, लव जिहाद या रोमियो जिहाद, मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदू समुदाय से जुड़ी महिलाओं को इस्लाम में परिवर्तन के लिए प्रेम का स्वांग रचाना है। यह हिंदू समाज की जनसंख्या को कम करने के लिए शुरू किया गया एक जिहाद है। जिसका समर्थन इस्लाम करता है एवं कुरान अपनी कई आयतों में इसका वर्णन करती है। अर्थात् ये अमानवीय व्यवहार मुस्लिम पुरुष द्वारा हिन्दू धर्म की महिला के साथ प्रेम का ढोंग रचकर जबरन धर्म परिवर्तन कराने की प्रक्रिया होती है। अभी हाल ही में बल्लभगढ़ में हुआ निकिता तोमर हत्याकाण्ड इसका ताजा मामला है। इसमें निकिता तोमर का दो वर्ष पहले 2018 में अपहरण भी हुआ था किंतु पुलिस द्वारा सख्त कार्यवाही न किए जाने से एवं परिवार द्वारा ढुलमुल रवैया अपनाने से निकिता तोमर की हत्या हो गयी। यह अवधारणा 2009 में भारत में राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार केरल और उसके बाद कर्नाटक में राष्ट्रीय ध्यानाकर्षण की ओर बढ़ी।
बहरहाल, लव जिहाद शब्द भारत के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है किन्तु कथित रूप से इसी तरह की गतिविधियाँ अन्य देशों में भी होती हैं। केरल हाईकोर्ट के द्वारा दिए एक फैसले में लव जेहाद को सत्य पाया है। 02 नवंबर 2009 में पुलिस महानिदेशक जैकब पुन्नोज ने कहा था कि कोई भी ऐसा संगठन नहीं है जिसके सदस्य केरल में लड़कियों को मुस्लिम बनाने के इरादे से प्यार करते थे। दिसंबर 2009 में न्यायमूर्ति के.टी. शंकरन ने पुन्नोज की रिपोर्ट को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और निष्कर्ष निकाला कि जबरदस्ती धर्मांतरण के संकेत हैं। अदालत ने ‘लव जिहाद‘ मामलों में दो अभियुक्तों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पिछले चार वर्षों में इस तरह के 3,000-4,000 सामने आये थे।
कर्नाटक सरकार ने 2010 में कहा था कि हालांकि कई महिलाओं ने इस्लाम में धर्म परिवर्तन किया है लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें मनाने का कोई संगठित प्रयास नहीं किया गया। उत्तर प्रदेश पुलिस ने सितंबर 2014 में लव जिहाद के छह मामलों में से पांच में से धर्म परिवर्तन के प्रयास का कोई सबूत नहीं पाया। पुलिस ने कहा कि बेईमान पुरुषों द्वारा छल के छिटपुट मामले एक व्यापक साजिश के सबूत नहीं हैं। 2017 में केरल उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में लव जिहाद के आधार पर एक मुस्लिम पुरुष से हिंदू महिला के विवाह को अमान्य घोषित किया। तब मुस्लिम पति द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक अपील दायर की गई थी, जहां अदालत ने लव जिहाद के पैटर्न की स्थापना के लिए सभी समान मामलों की जांच करने के लिए एनआईए को निर्देश दिया।
लव जिहाद की अवधारणा पहली बार 2009 में केरल और कर्नाटक में व्यापक धर्मांतरण के दावों के साथ भारत में राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आई। लेकिन ऐसे दावे बाद में पूरे भारत, पाकिस्तान और यूनाइटेड किंगडम में फैल गए। 2009, 2010, 2011 और 2014 में भारत में लव जिहाद के आरोपों ने विभिन्न हिन्दू, सिख और ईसाई संगठनों में चिंता जताई जबकि मुस्लिम संगठनों ने आरोपों से इंकार किया। यह अवधारणा कई लोगों के लिए राजनीतिक विवाद और सामाजिक चिंता का स्रोत बनी हुई है हालांकि 2014 तक किसी संगठित लव जिहाद के विचार को भारतीय मुख्यधारा द्वारा व्यापक रूप से साजिश सिद्धांत के रूप में नहीं माना गया था।
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अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए न केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन को अवैध करार दिया है बल्कि दो अलग धर्म के जोड़े की याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कुरान का जिक्र करते हुए यहां तक कह दिया कि इस्लाम में बिना आस्था और विश्वास के केवल शादी करने के उद्देश्य से धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। यह इस्लाम के खिलाफ है। कोर्ट ने नूर जहां बेगम केस के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा कि शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। इस केस में हिन्दू लड़की ने धर्म बदल कर मुस्लिम लड़के से शादी की थी। इसी फैसले के हवाले से कोर्ट ने मुस्लिम से हिंदू बनकर शादी करने वाली याचिकाकर्ता को राहत देने से इंकार कर दिया।
-अजय कुमार
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