विज्ञान क्षेत्र में हमारी आत्मनिर्भरता ही विकसित भारत के संकल्प को सिद्ध करेगी
आयुर्वेदाचार्य चरक ने 'चरक संहिता' लिखा था। इसमें विभिन्न रोगों के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधियों की व्याख्या की गई है। जिन्हें सही मात्रा और तरीके से प्रयोग करने के उपाय भी दिए गए हैं। आयुर्वेद के माध्यम से स्वदेशी तकनीकी का उपयोग किया जा सकता है।
भारत ऋषि परंपरा का देश रहा है। युग को चार भागों में विभाजित किया गया है- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। ये सभी युग अपनी विशेष तकनीकी और प्रौद्योगिकी के लिए जाने जाते हैं। प्राचीन भारत में विज्ञान का विकास तब हो चुका था। प्राचीन भारत के लोगों में विज्ञान के प्रति गहरी रूचि थी। उपनिषद में उल्लेख है कि प्राचीन भारतीय लोग ज्ञान प्राप्त करने के लिए बहुत उत्सुक रहते थे। वायु स्थिर क्यों नहीं रह सकती ? मनुष्य का मस्तिष्क विश्राम क्यों नहीं करता ? पानी क्यों और किसकी खोज में बहता है? प्राचीन भारत के लोगों का दर्शन से घनिष्ठ सम्बन्ध था। दर्शन का सम्बन्ध अनुभूति से है। प्राचीन काल के ऋषि मुनियों ने अपनी अनुभूतियों के द्वारा नए नए आविष्कार को जन्म दिया। इसका एक उदाहरण त्रेतायुग का पुष्पक विमान है।
ऋषि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार, पुष्पक विमान का प्रारूप एवं निर्माण विधि ब्रह्म ऋषि अंगीरा ने बनाई थी। पुष्पक विमान की कार्य क्षमता और उसके निर्माण का श्रेय भगवान् विश्वकर्मा को जाता है। तत्पश्चात भगवान् विश्वकर्मा ने पुष्पक विमान को भगवान् ब्रह्मा को उपहार स्वरूप सौंप दिया था। उसके बाद ब्रह्मा ने यह विमान कुबेर को भेंट स्वरूप दे दिया था। रावण ने अपने छोटे भाई कुबेर से बलपूर्वक उसकी सोने की नगरी लंका और पुष्पक विमान को ले लिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह विमान मन्त्रों के जरिये चलता था। ये विमान एक प्रकार का अंतरिक्ष यान था। ये सोने की धातु का बना था। इसे अपने मन की गति से असीमित चलाया जा सकता था। यह विमान यात्रियों की संख्या और वायु के घनत्व के अनुसार अपना आकार छोटा या बड़ा कर सकता था। पुष्पक विमान की शक्ति और क्षमता के आगे आधुनिक विमान तुच्छ प्रतीत होता है। पुष्पक विमान का विद्युत चुम्बकीय प्रभाव इतना शक्तिशाली था कि यदि आज के समय में ये उड़ान भरे तो विद्युत और संचार जैसी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएगी। हाल ही में 5000 वर्ष पुराने विमान को अफगानिस्तान की गुफाओं में पाया गया है।
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दावा किया जाता है कि ये पुष्पक विमान ही है। यह जहां पाया गया है वहाँ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव (विद्युत चुंबकीय तरंग) का प्रभाव बहुत ज्यादा था जिसकी वजह से इस यान के पास जा कर कोई भी व्यक्ति वापस नहीं लौटा। पौराणिक कथाओं के अनुसार पुष्पक विमान स्ट्रेंज एनर्जी (अजीब ऊर्जा) से घिरा हुआ रहता था। श्रीलंका में भी रावण के सोने की लंका को पुरातत्व विभाग ने खोज लिया है और रामायण काल के 50 स्थानों को चिन्हित कर लिया गया है। इससे साबित होता है कि त्रेतायुग में स्वदेशी तकनीकी या प्रौद्योगिकी बहुत विकसित थी। आधुनिक वायुयान का आविष्कार दो अमेरिकी भाई (राइट ब्रदर्स) ओरविल और विल्बर ने 17 दिसंबर, 1903 को किया था। भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं। यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी, जोकि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी। वर्ष 1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई। हड़प्पा सभ्यता की खोज दयाराम साहनी ने वर्ष 1921 में की थी। यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। मनुष्य के शरीर की बलुआ पत्थर की बनी मूर्तियाँ, अन्नागार और बैलगाड़ी हड़प्पा सभ्यता की महत्वपूर्ण खोज है। मोहन जोदड़ो जिसे मृतकों का टीला भी कहा जाता है। इसकी खोज राखलदास बनर्जी ने वर्ष 1922 में की थी। यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। विशाल स्नानागर, अन्नागार, कांस्य की नर्तकी की मूर्ति, पशुपति महादेव की मुहर, दाढ़ी वाले मनुष्य की पत्थर की मूर्ति और बुने हुए कपड़े मोहनजोदड़ो सभ्यता की महत्वपूर्ण खोजें हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि प्राचीन भारतीय स्थल शिल्पकारी, भवन निर्माण या वास्तुविद आदि जैसी तकनीकियों के प्रमाण हैं। प्राचीन भारत में सारी तकनीकियां स्वदेशी हुआ करती थी। प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं में तकीनीकी का इस्तेमाल कर स्वदेशिता को बढ़ावा दे सकते हैं। इसका सबसे अच्छा उदहारण आयुर्वेद है। आयुर्वेद शास्त्र का विकास उत्तरवैदिक काल में हुआ था।
आयुर्वेदाचार्य चरक ने 'चरक संहिता' लिखा था। इसमें विभिन्न रोगों के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधियों की व्याख्या की गई है। जिन्हें सही मात्रा और तरीके से प्रयोग करने के उपाय भी दिए गए हैं। आयुर्वेद के माध्यम से स्वदेशी तकनीकी का उपयोग किया जा सकता है। ऋग्वेद में ऋचाओं का संकलन है जिनके मंत्रोच्चार से शरीर स्वस्थ्य और स्फूर्तिवान होता है। ऋग्वेद के ज्ञान से भी स्वदेशी हुआ जा सकता है। सामवेद संगीत का संकलन है जो आपको नवीनता देता है। यजुर्वेद में यज्ञ आदि कर्मकांडों का विवरण मिलता है जिससे वातावरण और समाज शुद्ध होता है। अतएव हम कह सकते हैं कि हिंदू धर्म के चारों वेद स्वदेशी होने का अच्छा उदाहरण हैं। आध्यात्मिक बल पर प्राप्त की गई शक्तियों का सबसे अच्छा उदाहरण पुष्पक विमान और हमारे वेद हैं। अपने देश में निर्मित वस्तु, विचार, अध्यात्म और प्रकृति आदि कारक स्वदेशी होने को परिलक्षित करते हैं। प्राचीन भारत सिर्फ आध्यात्मिक दर्शन के बल पर विकसित था और आज का भौतिक दर्शन के बल पर विकाशशील है। जब भारत में आध्यात्मिक दर्शन, भौतिक दर्शन के साथ कदम मिलाकर चलेगा तब भारत विकासशील से विकसित भारत हो जाएगा। अध्यात्म आपकी कार्य क्षमता को बढ़ाता है। विज्ञान एक खोज है। खोज, बिना अध्यात्म के सम्भव नहीं है। अध्यात्म विज्ञान को बल प्रदान करता है। वास्को डी गामा ने मई 1498 में भारत की खोज की। वह अटलांटिक महासागर के माध्यम से भारत पहुंचने वाले पहले यूरोपीय थे। वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की यह विज्ञान का हिस्सा है।
एडिसन ने बल्ब का आविष्कार किया यह तकनीकी या प्रौद्योगिकी का हिस्सा है। कहने का तात्पर्य विज्ञान, खोज (डिस्कवरी) पर आधारित होता है। प्रौद्योगिकी या तकनीकी, आविष्कार पर आधारित होता है। विज्ञान साक्ष्य के आधार पर एक व्यवस्थित पद्धति का पालन करते हुए प्राकृतिक और सामाजिक दुनिया के ज्ञान और समझ की खोज और अनुप्रयोग है। प्रौद्योगिकी व्यावहारिक उद्देश्यों या अनुप्रयोगों के लिए वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग है, चाहे वह उद्योग में हो या हमारे रोजमर्रा के जीवन में। इसलिए, मूल रूप से, जब भी हम किसी विशिष्ट उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपने वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग करते हैं, तो हम प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे होते हैं। थॉमस एडिसन को प्रौद्योगिकी के जनक के रूप में जाना जाता है। गैलीलियो को विज्ञान का जनक कहा जाता है। विज्ञान के विकास से प्रौद्योगिकी का विकास होता है क्योंकि बहुत सारी प्रौद्योगिकियाँ वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित होतीं हैं। 28 फ़रवरी 1928 को भारतीय वैज्ञानिक सर चंद्रशेखर वेंकट रमन ने रमन प्रभाव (रमन इफ़ेक्ट) के खोज की घोषणा की थी। अतएव राष्ट्रीय विज्ञान दिवस प्रत्येक वर्ष की फ़रवरी माह के 28 तारीख को मनाया जाता है। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2024 का प्रसंग/थीम है- विकसित भारत के लिए स्वदेशी तकनीकी। स्वदेशी, स्वाभिमानी और स्वावलम्बन स्वतंत्रता का प्रतीक हैं। स्वदेशी तकनीकी अर्थात अपने देश में निर्मित तकनीकी का इस्तेमाल करना या कराना। जब हम अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ किसी भी स्वदेशी तकनीकी का इस्तेमाल करते हैं तो विकास की पूरी संभावना होती है। बिना अध्यात्म का विकास, विनाश का कारण बनता है। भारत एक आध्यात्मिक देश है। अतएव यहां स्वदेशी तकनीकी का इस्तेमाल भारत को पूर्णरूप से विकसित भारत की श्रेणी में खड़ा करेगा। भारत का चंद्रयान-3 मिशन स्वदेशी तकनीकी का सबसे ज्यादा जीता जागता उदाहरण है। चंद्रयान-3 भारत का एक महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन था जो 24 अगस्त, 2023 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अनुसार, चंद्रयान 3 रोवर प्रज्ञान लैंडर से नीचे उतर गया था और भारत ने चंद्रमा पर सैर की। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश हो गया है। चंद्रयान-3 चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने का भारत का दूसरा प्रयास था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत के लिए स्वदेशी तकनीकी का प्रयोग भारत के लिए राम बाण साबित होगा। अभी हाल ही में तीन स्वदेशी रूप से विकसित प्रौद्योगिकियां- थर्मल कैमरा, सीएमओएस कैमरा और फ्लीट मैनेजमेंट सिस्टम- 4 फ़रवरी 2024 को भारत में 12 उद्योगों को हस्तांतरित कर दी गईं। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकसित भारत @ 2047 पहल के नवाचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विषय की दिशा में एक कदम है। पहली तकनीकी- थर्मल स्मार्ट कैमरे में विभिन्न एआई आधारित एनालिटिक्स चलाने के लिए एक इनबिल्ट डीपीयू है। स्वदेशी प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग स्मार्ट शहरों, उद्योगों, रक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विभिन्न कार्य क्षेत्रों के लिए लक्षित किया गया है। इस कैमरे का क्षेत्रीय कार्यान्वयन, परीक्षण और सत्यापन सड़क यातायात अनुप्रयोगों के लिए किया गया था। प्रौद्योगिकी को एक साथ निम्नलिखित आठ उद्योगों में हस्तांतरित किया गया था। दूसरी तकनीकी- इंडस्ट्रियल विज़न सेंसर आईवीआईएस 10 जीआईजीई एक सीएमओएस आधारित विज़न प्रोसेसिंग सिस्टम है जिसमें आने वाली पीढ़ियों के औद्योगिक मशीन विज़न अनुप्रयोगों को निष्पादित करने के लिए एक शक्तिशाली ऑन-बोर्ड कंप्यूटिंग इंजन है। यह प्रौद्योगिकी मेसर्स स्पूकफिश इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित की गई है। तीसरी तकनीकी- फ्लीट मैनेजमेंट सिस्टम, जिसमें फ्लेक्सीफ्लीट, पर्सनलाइज्ड ट्रांजिट रूट गाइडेंस सिस्टम के लिए परिचालन रणनीतियां शामिल हैं। फ्लेक्सीफ़्लीट का उद्देश्य संचालन को अनुकूलित करना और बेड़े ऑपरेटरों और पारगमन एजेंसियों की दक्षता में वृद्धि करना है। वाहन स्थान ट्रैकिंग के अलावा, यह ओवरस्पीडिंग, जियोफेंस, इग्निशन, निष्क्रिय, रुकना और रैश ड्राइविंग जैसी विभिन्न स्थितियों के लिए अलर्ट प्रदान करता है। पर्सनलाइज्ड ट्रांजिट रूट गाइडेंस सिस्टम एक मोबाइल ऐप है जिसका उद्देश्य यात्रियों के लिए यात्रा अनुभव को बेहतर बनाना है क्योंकि यह यात्रियों को उनकी पसंद के सबसे कुशल या वैयक्तिकृत मार्ग चुनने का विकल्प प्रदान करता है। यह तकनीक एक साथ तीन उद्योगों को हस्तांतरित की गई। अतएव हम कह सकते हैं कि स्वदेशी तकनीकी, विकसित भारत का पर्याय है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से स्वदेशी तकनीकी का उपयोग, विकसित भारत को परिलक्षित करेगा।
-डॉ. शंकर सुवन सिंह
शिक्षाविद एवं वरिष्ठ स्तम्भकार
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