फिलहाल मामला शांत पर चीन से सावधान रहना जरूरी

it is necessary to be cautious of China
अनीता वर्मा । Aug 30 2017 12:19PM

चीन की हमेशा कोशिश रहती है कि विश्व पटल पर विजेता के रूप में दिखाई दे। आखिर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर साख भी तो बचानी है। चीन से भविष्य में सावधान रहने की आवश्यकता है।

भारत, भूटान और चीन के तिराहे पर स्थित डोकलाम क्षेत्र में करीब तीन महीने से भारत और चीन के मध्य बना तनाव कूटनीतिक वार्ता के पश्चात सुलझा लिया गया है। तनाव का मुख्य कारण रहा है कि चीन, भूटान आधिपत्य क्षेत्र डोकलाम में सड़क निर्माण कर रहा था जिसको भूटान सरकार के अनुरोध पर भारतीय सैनिकों ने रोक दिया क्योंकि भारत और भूटान सरकार के मध्य सुरक्षा समझौता है। फरि क्या था, चीन और भारत के मध्य तल्खियां बढ़ती रहीं क्योंकि सरकारी चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स जैसा कि उसे सत्ता की आवाज समझा जाता है, भारत को धमकी देता रहा। जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सैन्य बल डोकलाम को चीनी अतिक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए सीमा पर टेंट लगाकर पहरा देने लगे। बाद में चीनी सैनिकों ने भी टेंट लगाया।

जब चीन को लगा कि भारत पर उसकी धमकी का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है, तो चीन की नई पैंतरेबाजी सामने आयी। अब प्रश्न उठता है कि चीन की नई पैंतरेबाजी क्या थी? चीन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चीन में विदेशी राजनयिकों के माध्यम से बताने का प्रयास किया कि भारत द्वारा उसकी सीमा में प्रवेश कर चीनी संप्रभुता का उल्लंघन किया गया है तो दूसरी ओर अपने टेलीविजन चैनलों के माध्यम से अपनी जनता को झूठ परोसने का लगातार प्रयास किया कि उसके 300 सैनिक भारत द्वारा मारे गए हैं। इस झूठ को पाकिस्तान में परोसने का काम कुछ पाकिस्तानी चैनलों ने भी किया। जबकि यह ख़बर पूरी तरीके से गलत थी। इसका अर्थ यह है कि चीन विदेशी राजनयिकों के माध्यम से पीड़ित बन कर अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहा था, जो विफल रहा।

चीन दिन प्रतिदिन चीनी मीडिया के माध्यम से नए नए पैंतरे को अपनाता रहा। चीन ने पहले मीडिया के माध्यम से युद्ध की धमकी दी तो उसके साथ ही सैन्याभ्यास भी शुरू किया ताकि भारत पर दबाव बनाया जा सके लेकिन उसका ये पैंतरा भी विफल रहा। भारतीय सैनिक तिब्बत सिक्किम सीमा पर डटे रहे। फिर कुछ दिनों बाद चीन का बयान आया है कि यदि भारत डोकलाम से नहीं हटता तो भारत चीन सीमा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भी भारत को चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस प्रकार युद्ध का माहौल बना कर चीन ने अपनी रणनीति के तहत डोकलाम इलाके में भारी सैन्य साजों सामान को पहुंचाया। जहाँ करीब तीन महीने दोनों देश की सेनाएं आमने सामने डटी रहीं। चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स युद्ध की धमकी देता रहा, लेकिन भारतीय सीमा में घुसपैठ करता रहा। जैसा 15 अगस्त 2017 को लद्दाख की पेंगांग झील के पास चीनी सैनिकों की करतूतें देखी गईं, जो बेहद शर्मनाक थीं।

चीनी मीडिया की भारत को धमकी पर धमकी देने के पश्चात यदि चीन पीछे हटता तो उसकी अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर साख में कमी आती और यदि भारत पीछे हटता तो उसकी रणनीतिक दृष्टि से कमज़ोरी स्पष्ट होती। ऐसे में 73 दिनों के डोकलाम में खींचतान के पश्चात दोनों देशों के मध्य डोकलाम विवाद को लेकर समझौता हुआ है। भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार दोनों देशों की सेना अपनी जगहों से पीछे हटने के लिए तैयार हो गयी हैं। इसी के मद्देनजर दोनों देशों ने गतिरोध वाले क्षेत्र से अपनी सेना को पीछे हटा लिया है। दोनों देशों के सैनिक अपने अपने इलाकों में गश्त करेंगे। दरअसल कूटनीतिक माध्यमों से दोनों देशों के मध्य चल रही वार्ता में सैनिकों के पीछे हटने की सहमति बनी। भारत तो शुरू से ही इसका कूटनीतिक समाधान चाहता था लेकिन चीन आए दिन उकसाने वाली कार्रवाइयों को अंजाम देता रहा। लेकिन अंततः समाधान तो कूटनीतिक ही निकला। निश्चित ही इसे भारत की कूटनीतिक विजय कहा जाएगा। चीनी विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि भारत सीमा पर अपने सैनिकों और मशीनों को हटाएगा और चीन ऐतिहासिक सीमा समझौते के तहत अपने संप्रभु अधिकारों का इस्तेमाल करेगा।

यह बड़ा आश्चर्य है कि चीन यह नहीं बता रहा है कि भारत और उसके मध्य कोई सहमति बनी है। ऐसा दिखाने का प्रयास कर रहा है कि भारत डोकलाम से अपने सैनिकों की वापसी करेगा। लेकिन यह कितनी विचित्र बात है कि वर्तमान के अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिदृश्य में बैकफुट पर चीन है तो केवल भारत कैसे अपनी सेना को वापस हटा सकता है। चीन की हमेशा कोशिश रहती है कि विश्व पटल पर विजेता के रूप में दिखाई दे। आखिर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर साख भी तो बचानी है। और वैसे भी चीन की यह आदत में सम्मिलित है कि नक्शे जारी कर किसी क्षेत्र को अपना बताने की। जैसा भूटान और अरूणाचल के मामले में विश्व ने देखा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो चीन अपनी छवि को स्वच्छ दिखाने का प्रयास करता ही है। यह उसी का प्रतिफल है। चीन के कथनी करनी में अंतर होता है, इसलिए चीन से भविष्य में सावधान रहने की आवश्यकता है।

अनीता वर्मा

(लेखिका अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार हैं।)

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