बड़े-बड़े देशों की वृद्धि दर ऋणात्मक रहेगी जबकि भारत की सकारात्मक रहेगी
अब धीरे-धीरे स्थिति जब साफ़ होती जा रही है तब यह आकलन करना आसान हो रहा है कि कोरोना वायरस की महामारी के चलते देश के विनिर्माण क्षेत्र, सेवा क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, श्रम क्षेत्र, आदि सभी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे।
एक अनुमान के अनुसार, पूरे विश्व में कोरोना संकट के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगभग 9 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इसके साथ ही अति गम्भीर वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंका भी व्यक्त की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा हाल ही में सम्पन्न की गई एक रिसर्च के प्रतिवेदन के अनुसार, विश्व में विशाल आकार वाली लगभग सभी अर्थव्यवस्थाएँ वित्तीय वर्ष 2020-21 में ऋणात्मक विकास की दर हासिल करेंगी। यथा, अमेरिका -5.9 प्रतिशत, जापान -5.2 प्रतिशत, यूरोपीयन देश -7.5 प्रतिशत, रूस -5.5 प्रतिशत, ब्राज़ील -5.3 प्रतिशत, दक्षिणी अफ़्रीका -5.8 प्रतिशत की ऋणात्मक विकास दर हासिल करेंगे। परंतु, भारत में इसी अवधि के दौरान 1.9 प्रतिशत की सकारात्मक विकास दर रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। वहीं वर्ष 2021-22 के दौरान भारत की विकास दर तेज़ रफ़्तार पकड़ते हुए 7.4 प्रतिशत रहने की सम्भावना अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा व्यक्त की गई है। इसी कड़ी में, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्ति कांत दास ने दिनांक 17.04.2020 को एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स आयोजित कर कहा है कि केंद्र सरकार एवं भारतीय रिज़र्व बैंक ने कोरोना महामारी से उत्पन्न गंभीर संकट से निपटने के लिए आर्थिक क्षेत्र में अपनी तैयारियाँ पूर्ण कर ली हैं।
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अब धीरे-धीरे स्थिति जब साफ़ होती जा रही है तब यह आकलन करना आसान हो रहा है कि कोरोना वायरस की महामारी के चलते देश के विनिर्माण क्षेत्र, सेवा क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, श्रम क्षेत्र, आदि सभी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। इन सभी क्षेत्रों में उत्पन्न हुई समस्याओं को ठीक करने की जरूरत होगी। अब केंद्र सरकार की यह प्राथमिकता है कि बैंकों एवं वित्तीय प्रणाली में भरपूर तरलता बनाए रखे। दूसरे, बैंकों में केवल तरलता ही उपलब्ध नहीं कराना है बल्कि बैंकों को वित्त प्रदान करने हेतु प्रेरित भी करना है ताकि कृषि क्षेत्र, लघु उद्योग, मध्यम वर्ग एवं देश के नागरिकों को किसी भी प्रकार वित्त की कमी महसूस ना हो। रोज़गार के अवसर पुनः तेज़ गति से सृजित होने लगें। बाज़ार में विभिन्न उत्पादों की भारी मात्रा में माँग उत्पन्न हो। उक्त वर्णित कुछ मुख्य बिंदु हैं जिन्हें शीघ्रता से सुलझाये जाने हेतु केंद्र सरकार लगातार तेज़ गति से काम कर रही है।
उक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार के आह्वान पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने कई क़दम उठा भी लिए हैं। दिनांक 17.04.2020 को भारतीय रिज़र्व बैंक ने विशेष रूप से ग़ैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों एवं सूक्ष्म वित्त संस्थानों को अतिरिक्त वित्त प्रदान करने के उद्देश्य से 50,000 करोड़ रुपए के लम्बी अवधि के रेपो संचालन की विशेष व्यवस्था की घोषणा की है। हालाँकि पूर्व में भी 75,000 करोड़ रुपए के लम्बी अवधि का रेपो संचालन किया जा चुका है, जिसके उपरांत इस सम्पूर्ण राशि ने वित्तीय क्षेत्र में तरलता प्रदान की थी परंतु यह पूरी राशि बड़े उद्योगों के सिक्युरिटीज़ पेपर्स, आदि में निवेश हो गई थी। इसलिए अब यह क़दम उठाना पड़ा है और यह एक सही दृष्टिकोण है।
लम्बी अवधि के रेपो संचालन के अतिरिक्त भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा NABARD (कृषि क्षेत्र को ऋण हेतु) को 25,000 करोड़ रुपए, SIDBI (लघु उद्योग को ऋण हेतु) को 15,000 करोड़ रुपए एवं NHB (आवासीय क्षेत्र को ऋण हेतु) को 10,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि उपलब्ध करायी जा रही है ताकि ये वित्तीय संस्थान पुनर्वित्त के रूप में बैंकों को यह राशि उपलब्ध करा सकें। इससे कृषि क्षेत्र, लघु एवं मध्यम उद्योग, एवं आवास क्षेत्र को अतिरिक्त धन की उपलब्धि, ऋण के रूप में प्राप्त हो सकेगी।
कोरोना वायरस की महामारी के चलते केंद्र एवं राज्य सरकारों की आय में कमी आ रही है। इसलिए भारतीय रिज़र्व बैंक की WMA योजना के अंतर्गत केंद्र एवं राज्य सरकारों को उपलब्ध कराए जाने वाले वित्त की सीमा में भी वृद्धि की गयी है ताकि राज्य सरकारों को वित्त की कमी नहीं हो। अतः भारतीय रिज़र्व बैंक ने उक्त योजना के अंतर्गत राज्य सरकारों को उपलब्ध कराए जाने वाली वित्त की सीमा में पूर्व में घोषित की गई 30 प्रतिशत की वृद्धि दर को बढ़ाकर 60 प्रतिशत कर दिया है।
हाल ही के समय में यह भी देखा जा रहा है कि विश्व के लगभग सभी देश अब मौद्रिक नीति के अंतर्गत ब्याज दरों में लगातार कमी करते जा रहे हैं। परंतु, राजकोषीय नीति के अंतर्गत हर देश अपने हिसाब से आर्थिक गतिविधियों वाले विभिन्न क्षेत्रों को चुन कर ही अपने ख़र्चे को निर्धारित कर रहा है। वैश्विक स्तर पर लगातार हो रही ब्याज की दर में कमी के चलते भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी तुरंत प्रभाव से रिवर्स रेपो की ब्याज दर में 25 बिंदुओं की कमी की घोषणा की है। जिसके कारण अब यह 4 प्रतिशत से घटकर 3.75 प्रतिशत हो गई है।
हालाँकि देश में हो रही वित्तीय गतिविधियों की ओर यदि नज़र डाली जाये तो मालूम पड़ता है कि देश में मैक्रो स्तर पर तरलता की कमी नहीं है। विभिन्न बैंक प्रतिदिन लगभग 4 लाख करोड़ रुपए की राशि भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रिवर्स रेपो खिड़की के अंतर्गत जमा करते हैं। बैंकिंग क्षेत्र इस तरलता का उपयोग अपनी सुरक्षा मज़बूत करने के उद्देश्य से सुरक्षित निवेश कर रहा है एवं ग़ैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों एवं लघु एवं मध्यम उद्योगों, आदि क्षेत्रों में निवेश नहीं कर रहा है। परंतु, रिवर्स रेपो की ब्याज दर में की गई उक्त कमी के कारण अब यह होने लगेगा क्योंकि बैंकिंग क्षेत्र अब वित्त प्रदान करने की ओर प्रेरित/आकर्षित होंगे एवं अपनी तरल राशि भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रिवर्स रेपो खिड़की के अंतर्गत नहीं रखेंगे। अब विनिर्माण इकाईयों, कृषि क्षेत्र, लघु एवं मध्यम उद्योग, मध्यम वर्ग, आदि क्षेत्रों को वित्त प्रदान किया जाएगा इससे देश के सम्पूर्ण आर्थिक चक्र में वृद्धि होगी और उत्पादों की माँग में बढ़ोतरी होगी जिसके चलते अंततः रोज़गार के कई नए अवसर उत्पन्न होंगे।
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भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों के 90 दिनों सम्बंधी नियमों में भी छूट दे दी गई है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने साफ़ कर दिया है कि अब ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों सम्बंधी नियमों को 1 जून 2020 से लागू किया जाएगा। 31 मई 2020 तक तीन माह का ऋण स्थगन का नियम लागू माना जाएगा। साथ ही, ऋणों के पुनर्गठन सम्बंधी नियमों को भी शिथिल किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। एक दम से ठप्प पड़ गए उद्योगों को कच्चे माल, वित्त, श्रमिक आदि सभी क्षेत्रों में समस्याएँ आने की सम्भावना है। अतः आज उद्योगों को पुनः चालू करने के लिए इन सभी क्षेत्रों की समस्याओं को हल किए जाने की आवश्यकता है। उद्योगों के पूँजी सम्बंधी समस्याओं का हल तो अब केंद्र सरकार के आह्वान पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने निकाल लिया है।
वित्तीय क्षेत्र में लिए गए उक्त निर्णयों के साथ ही केंद्र सरकार को MGNAREGA योजना के अंतर्गत धनराशि का आवंटन बढ़ाना आवश्यक होगा ताकि ग़रीब वर्ग को स्थानीय स्तर पर ही रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराए जा सकें। केंद्र सरकार द्वारा की गई घोषणा के अनुसार, राशन कार्ड धारकों को अगले 3 माह तक मुफ़्त राशन उपलब्ध कराया जा रहा है परंतु इसे अब ग़ैर राशन कार्ड धारकों को भी उपलब्ध कराये जाने हेतु सोचा जाना चाहिए। साथ ही, देश में विभिन उत्पादों की माँग उत्पन्न करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को अपने योजनागत ख़र्चे में वृद्धि करनी आवश्यक होगा। इस समय पर राजकोषीय घाटे सम्बंधी नियमों को शिथिल किए जाने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार जिस तेज़ी के साथ विभिन मोर्चों पर कार्यवाही कर रही है उससे यह स्पष्ट है कि आर्थिक मोर्चे पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्पन्न हो रहीं समस्याओं का निदान भी केंद्र सरकार बड़ी तेज़ी से कर पाने में सफल होगी एवं विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा भारत के आर्थिक विकास के सम्बंध में की गई घोषणाओं से कहीं आगे जाकर भारत द्वारा विकास की दर को हासिल किया जा सकेगा।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक, एसबीआई
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