साइबर ठगों का बढ़ता हौसला, तीन साल में ही ठगी में बीस गुणा बढ़ोत्तरी

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ऐसा नहीं है कि साइबर या इससे जुड़ी ठगी हमारे यहां ही होती है अपितु देखा जाए तो यह आयातित ठगी का तरीका है। साइबर या यों कहें कि इस तरह की ठगी के मामलों में रशिया पहले पायदान पर है तो यूक्रेन दूसरे पायदान पर बना हुआ है।

मोबाइल पर नंबर मिलाते ही आजकल साइबर ठगी, डिजिटल अरेस्ट, ऑनलाइन या ब्लेक मेलिंग से सतर्क रहने का संदेश सुनने को मिलता है। इस सबके बावजूद भारत सरकार द्वारा ठगी के जारी आंकड़ें ना केवल चेताने वाले हैं अपितु लगता है जैसे ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता ही गया वाले हालात बनते जा रहे हैं। मजे की बात यह है कि साइबर ठगी के इन रुपों से सबसे अधिक शिकार पढ़े लिखे और समझदार लोग ही हो रहे हैं। लाख समझाने के बावजूद एक ओर ठगों के हौसले बुलंद है तो ठगी के शिकार होने वाले लोगों की संख्या और राशि में मल्टीपल बढ़ोतरी हो रही है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जारी हालिया आंकड़ों को देखे तो पिछले तीन साल में ही ठगी के नए अवतार से ठगी की राशि 20 गुणा बढ़ गई है। इस साल की शुरुआत के दो महीनों में ही 17 हजार 718 से अधिक मामलें दर्ज हो चुके हैं और 210 करोड़ 21 लाख रु. से अधिक की ठगी हो चुकी है। यह तो साल की शुरुआत के हाल है। पिछले तीन साल के आंकड़ों पर नजर ड़ाले तो हालात की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है। साल 2022 में साइबर ठगी, डिजिटल अरेस्ट या इस तरह की ब्लेक मेलिंग, ऑनलाइन ठगी आदि के 39925 मामलों में 91 करोड़ 14 लाख की ठगी हुई थी जो एक साल बाद ही 2023 में बढ़कर 60676 हो गई और इसमें 339 करोड़ रु. की राशि की ठगी हो गई। मजे की बात यह है कि लाख प्रयासों के बावजूद 2024 की बढ़ोतरी तो और भी चिंतनीय रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही 2024 में एक लाख 23 हजार 672 मामलें दर्ज हुए और 1935 करोड़ 51 लाख रु. की ठगी हो गई। यह तो वे मामलें हैं जो पुलिस में दर्ज हुए हैं जबकि हजारों मामलें ऐसे भी होंगे जिनमें मामलें दर्ज कराए ही नहीं गए होंगे। खास बात यह है कि ठगी के केन्द्र व ठगी के तरीके से वाकिफ होने के बावजूद यह होता जा रहा है। हांलाकि झारखण्ड के जमातड़ा से ठगों के तंत्र को तोड़ दिया गया पर देश में एक दो नहीं अपितु 74 जिलों में इस तरह की ठगी करने वालों के हॉटस्पॉट विकसित हो गए। झारखण्ड, राजस्थान, हरियाणा और बिहार के केन्द्र पहले पांच प्रमुख सेंटर विकसित हो गए।

ऐसा नहीं है कि साइबर या इससे जुड़ी ठगी हमारे यहां ही होती है अपितु देखा जाए तो यह आयातित ठगी का तरीका है। साइबर या यों कहें कि इस तरह की ठगी के मामलों में रशिया पहले पायदान पर है तो यूक्रेन दूसरे पायदान पर बना हुआ है। इनके बार चीन, अमेरिका, नाइजेरिया और रोमानिया का नंबर आता है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है साइबर ठगों के सारी दुनिया में हौसले बुलंद है। लोगों की गाढ़ी कमाई को हजम करने में इन्हें विशेषज्ञता हासिल है। लोगों की कमजोरी को यह समझते हैं और उसी कमजोरी के चलते पढ़े लिखे और होशियार लोगों को भी आसानी से ठगी का शिकार बना लेते हैं। जाल ऐसा की यह समझते हुए कि ऐसा आसानी से होता नहीं है फिर भी चक्कर में फंस ही जाते हैं और ठगों के आगे सरेण्डर होकर लुट जाते हैं। 

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जहां तक हमारे देश की बात करें तो साइबर ठग या तो किसी तरह का लालच देकर लिंक भेजकर ठगी करते हैं तो दूसरी और ड़रा धमकाकर आसानी से ठगी का शिकार बना लेते हैं। सरकार प्रचार के सभी माध्यमों से बार बार व लगातार आगाह कर रही है कि ठगों द्वारा ड़राने वाले तरीके वास्तविक नहीं है। बैंक कभी भी बैंक डिटेल या ओटीपी ऑनलाइन नहीं मांगते पर पता नहीं कैसे ठगों के जाल में फंसकर अपनी मेहनत की कमाई लुटा बैठते हैं। ओटीपी देदेते हैं तो लिंक खोलने के लिए लाख मना करने के बावजूद लिंक खोलकर लुट जाते हैं। पुलिस अधिकारी बन कर जिस तरह से डिजिटल अरेस्ट कर ठगी का रास्ता अपनाया जा रहा है उस संबंध में अवेयरनेस अभियान के बावजूद ठगी का शिकार होने वालों की संख्या या राशि में कमी नहीं हो रही है। डिजिटल अरेस्ट में डॉक्टर, रिटायर्ड जज, प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी सहित संभ्रात वर्ग के लोगों को आसानी से जाल में फंसाकर ठगी हो रही हैं वह भी करोड़ों तक की ठगी के उदाहरण मिल रहे हैं। झूठे मामलों में परिजनों को फंसने से बचाने का झांसा देकर ठगी हो रही है। मजे की बात यह है कि इस स्तर तक ड़र या भयाक्रांत हो जाते हैं कि किसी अन्य या पुलिस से समस्या साझा करने की हिम्मत भी नहीं कर पाते और ठगी के बाद हाथ मलते रह जाते हैं। डिजिटल अरेस्ट के मामलें तो दिनों-दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। दरअसल इसमें पुलिस, सरकारी जांच एजेंसी या प्रवर्तन निदेशालय के नकली अधिकारी बन कर इस कदर ड़रा देते हैं और मजे की बात यह कि एक दो दिन नहीं अपितु कई दिनों तक लगातार ऑडियो या वीडियो कॉल करके ठगी का शिकार बना लेते हैं।

ऐसा नहीं है कि सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी हो। सरकार व वित्तदायी संस्थाओं द्वारा मीडिया के माध्यम से सजग किया जा रहा है। इसके साथ ही झारखण्ड के बड़े केन्द्र जमातड़ा को लगभग समाप्त कर ही दिया है। पर देश में 74 हॉट स्पॉट विकसित हो गए हैं। इनमें हरियाणा का नूंह, राजस्थान का डीग, झारखण्ड का देवघर, राजस्थान का अलवर और बिहार का नालंदा पहले पांच हॉट स्पॉट हो गए हैं। मीडिया द्वारा भी समय समय पर स्ट्रिंग कर इस तरह के केन्द्रों को एक्सपोज किया है पर ठगी कम होने को ही नहीं है। दरअसल आमनागरिकों को भी सजग होना ही होगा। अनजान नंबरों पर बात ही ना करें। ज्योंही कोई डराये धमकायें तो बहकावें में आने के स्थान पर पड़ताल करें। इस तरह के हालात सामने आये तो परेशान होने के स्थान पर परेशानी को साझा करें, पुलिस का सहयोग लेने में भी संकोच ना करें। देखा जाए तो सजगता ही इस समस्या का समाधान हो सकती है।

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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