कप्तानी विवाद से टीम इंडिया के प्रदर्शन पर पड़ेगा असर, खिलाडि़यों में अहम का टकराव ठीक नहीं
कप्तानी के मामले पर भारतीय क्रिकेट में पहले भी विवाद उठते रहे हैं। याद करिए अस्सी के दशक में एक समय ऐसा था जब कभी कपिल देव तो कभी सुनील गावसकर कप्तान बनाए जाते थे। इन दोनों के बीच अन−बन की खबरें खूब आती थीं।
भारतीय क्रिकेट में कप्तानी को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है। अक्सर हार के बाद कप्तान बदलने की मांग उठती है क्योंकि माना जाता है कि कप्तान ही सबसे अधिक दोषी है। उसने नेतृत्वकर्ता की भूमिका ठीक से नहीं निभाई। मगर, मौजूदा विवाद दूसरे कारणों से है। विराट कोहली और बीसीसीआई के बीच संवादहीनता ने कई तरह के भ्रम को जन्म दे दिया। दरअसल, क्रिकेट के तीन प्रारूप में अलग−अलग कप्तान रखने का चलन कई देशों में है। खासतौर से टेस्ट मैच और सीमित ओवर के मैचों के लिए अलग कप्तान नियुक्त किए जा रहे हैं। ऑस्टेलिया, इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज ने इस शैली को अपना लिया है। कंगारू देश में आरोन फिंच सीमित ओवर के कप्तान हैं तो पैट कमिंस को टेस्ट टीम का कप्तान बनाया गया है। इंग्लैंड में जो रूट टेस्ट कप्तान हैं तो इयोन मोर्गन वनडे और टी−20 के कप्तान हैं। लेकिन भारत में हर प्रारूप के लिए एक ही कप्तान रखने की परंपरा रही है। हालांकि, लंबे अर्से से यह मांग उठ रही थी कि भारत को भी अलग−अलग कप्तान बनाने चाहिए। इसके पीछे मकसद यह है कि एक ही कप्तान को बोझ से मुक्त कर दिया जाए। अक्टूबर में विराट कोहली ने जब विश्व कप के बाद टी−20 की कप्तानी छोड़ने का ऐलान किया तो उन्हें नहीं पता था कि वनडे की कप्तानी से भी हटा दिया जाएगा। सीमित ओवर के दो फॉर्मेट यानी वनडे और टी−20 में अलग−अलग कप्तान रखने का कोई मतलब भी नहीं है। अभी दक्षिण अफ्रीका दौरे में टेस्ट सीरीज के बाद तीन वनडे मैचों की सीरीज होनी है। इसके लिए बीसीसीआई ने रोहित शर्मा को कप्तान नियुक्त किया है। मामला तब गर्म हो गया जब विराट कोहली ने वनडे सीरीज से हटने का निर्णय सुना दिया। यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई कि ये दोनों दिग्गज खिलाड़ी एक दूसरे के साथ नहीं खेलना चाहते। इस बात को तब और हवा मिल गई जब रोहित शर्मा ने चोट के कारण दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट मैचों से अलग होने का निर्णय कर लिया। बता दें कि रोहित को हाल ही में भारत की टेस्ट टीम का उप कप्तान भी बनाया गया था मगर चोटिल होने के कारण अब यह जिम्मेदारी लोकेश राहुल को दी गई है। कभी कभार सीनियर खिलाडि़यों के बीच अहम का टकराव भी हो जाता है। विराट कोहली और रोहित शर्मा के बीच भी यही मामला दिख रहा है। टीम के हित में यह ठीक नहीं है।
इसे भी पढ़ें: रॉस टेलर ने इंटरनेशनल क्रिकेट को कहा अलविदा, बांग्लादेश के खिलाफ होगा आखिरी मुकाबला
बीसीसीआई की नीति पर उठ रहे सवाल
टीम जब विदेश दौरे पर हो तब इस तरह का मामला सार्वजनिक होना देश के हित में नहीं है। भारतीय टीम के दक्षिण अफ्रीका पहुंच जाने के बाद यह विवाद और बयानबाजी का होना कतई अनुचित है। वहां जाने से पहले ही बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली को मिल बैठ कर मामले का निपटारा कर देना चाहिए था। कप्तान विराट कोहली और गांगुली के विरोधाभासी बयानों से असमंजस की स्थित पिैदा हो गई और नकारात्मक खबरें मीडिया में आ गईं। विराट का कहना है कि 'उनसे एक बार भी नहीं कहा गया कि टी−20 की कप्तानी मत छोड़ो। कप्तानी के बारे में जो भी कहा गया, वह गलत है। बीसीसीआई ने इसे प्रगतिशील और सही दिशा में उठाया गया कदम करार दिया था।' इससे जाहिर है कि कोहली 2023 के विश्व कप तक वनडे टीम का कप्तान बने रहना चाहते थे। उनके खुलासे के बाद बीसीसीआई की संवादहीनता एक बार फिर सवालों के घेरे में है। सवाल है कि यह विवाद खड़ा ही क्यों हुआ। भारतीय क्रिकेट प्रबंधन की नीति पर भी सवालिया निशान है। यह पूछा जा सकता है कि भारतीय इतिहास के सबसे सफल कप्तानों में शुमार कोहली के साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया गया। उनसे बातचीत कर और विश्वास में लेकर सही फैसला किया जाता तो किसी को बुरा नहीं लगता। मौजूदा कप्तान को अंधेरे में रख कर जब कोई निर्णय किया जाएगा तो विवाद उठना लाजिमी है। ऐसा नहीं होना चाहिए। आखिर अपने कप्तान से बात करने में बीसीसीआई को हिचक क्यों होनी चाहिए? यह ठीक है कि टेस्ट कप्तान विराट का हालिया फॉर्म गड़बड़ है। उनका पिछला शतक नवंबर 2019 में बांग्लादेश के खिलाफ कोलकाता के डे नाइट टेस्ट मैच में बना था। इसके बाद से उनका बल्ला खामोश ही है। कप्तानी से हटाने में कहीं न कहीं यह कारण भी है। पर, जो भी हो उनसे बात करके कोई निर्णय किया जाता तो यह विवाद शायद न उठता। इंग्लैंड दौरे में टीम चयन को लेकर भी विराट की आलोचना हुई। देश के मुख्य स्पिनर रविचंद्रन अश्विन को वह बराबर नजरंदाज करते रहे। उन्हें किसी टेस्ट में मौका नहीं दिया गया। टी−20 विश्व कप में भी कप्तान विराट ने शुरुआती मैचों में अश्विन को अंतिम एकादश में शामिल नहीं किया। पाकिस्तान और न्यूजीलैंड के खिलाफ अहम मैच में वरुण चक्रवर्ती को अश्विन पर तरजीह दी गई और भारत ये दोनों मैच हार गया। ये बातें भी विराट के खिलाफ गईं। वैसे अब एक ही कप्तान पर तीनों फॉर्मेट का बोझ डालना भी उचित नहीं कहा जा सकता। इस लिहाज से यह विवाद जल्द शांत हो जाए तो ही बेहतर है क्योंकि इससे टीम के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। बीसीसीआई अध्यक्ष गांगुली बड़े खिलाड़ी रहे हैं। उन्हें इन मामलों को सही परिप्रेक्ष्य में लेना चाहिए।
इसे भी पढ़ें: 2021 में ‘किंग कोहली’ की चमक पड़ी फीकी, आईसीसी टूर्नामेंटों में भारत की झोली रही खाली
कपिल और गावसकर के दौर में भी था विवाद
कप्तानी के मामले पर भारतीय क्रिकेट में पहले भी विवाद उठते रहे हैं। याद करिए अस्सी के दशक में एक समय ऐसा था जब कभी कपिल देव तो कभी सुनील गावसकर कप्तान बनाए जाते थे। इन दोनों के बीच अन−बन की खबरें खूब आती थीं। 1985 में चैंपियन ऑफ चैंपियन टॉफी जीतने के बावजूद सुनील गावसकर ने बोर्ड के खराब रवैए के कारण कप्तानी से इसतीफा दे दिया था। कपिल और गावसकर के बीच कप्तानी कभी इधर तो कभी उधर वाले अंदाज में रहती थी। उस दौर में यह सब बीसीसीआई की अंदरूनी राजनीति और गुटबाजी के कारण होता रहता था। एक बार तो कपिल देव की खराब अंग्रेजी के कारण उनसे कप्तानी छीनने की खबर उड़ी थी। साल 2007 में राहुल द्रविड़ ने अचानक कप्तानी छोड़ने का ऐलान कर सबको चौंका दिया था जबकि वह इंग्लैंड के खिलाफ ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज जीत कर लौटे थे। अजहरुद्दीन लंबे समय तक कप्तान रहे लेकिन मैच फिक्सिंग के आरोप के कारण उनकी टीम से ही छुट्टी हो गई। 1975 में जब वेस्ट इंडीज भारत दौरे पर आई थी तब दौरे के बीच में कप्तान पटौदी चोटिल हो गए। तब विकेटकीपर फारूक इंजीनियर के कप्तान बनने की चर्चा थी पर, अचानक स्पिनर वेंकटराघवन को कमान दे दी गई। इस तरह के विवाद भारतीय क्रिकेट में उठते ही रहते हैं। इससे टीम के मनोबल पर असर पड़ता है।
− आदर्श प्रकाश सिंह
अन्य न्यूज़