वक्फ संबंधी कांग्रेस सरकार के काले कानून को खत्म करने का साहस योगी ही दिखा सकते थे
सरकार के निर्देश में कहा गया है कि ग्राम सभाओं और नगर निकायों के तहत सार्वजनिक संपत्तियां हैं। इनका जनहित में इस्तेमाल होता है। इन जमीनों का 1989 के आदेश के तहत प्रबंधन और स्वरूप बदलना कानून के खिलाफ है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के एक साहसिक फैसले से उत्तर प्रदेश की मुस्लिम राजनीति में भूचाल आ गया है। योगी सरकार ने एक झटके में 33 साल पुराने एक कानून को खत्म करके वक्फ बोर्ड के पर कतर दिए हैं, जिसके सहारे बोर्ड जमीन कब्जाने का खुला खेल खेला करता था। पहले मदरसों का सर्वे और अब वक्फ बोर्ड पर शिकंजा, जिसको लेकर मुस्लिम वोटों के सौदागार खूब हो हल्ला मचा रहे हैं। विपक्ष योगी सरकार पर मुस्लिमों को परेशान करने का आरोप लगा रहा है।
दरअसल, राज्य वक्फ बोर्ड अक्सर अपने काले कारनामों के कारण सुर्खियां बटोरते रहे हैं। वक्फ बोर्ड की स्थापना जिन उद्देश्यों के लिए की गई थी वह सोच नेपथ्य में चली गई है। इसकी जगह वक्फ बोर्ड जमीन कब्जाने की एक इकाई बन कर रह गया है, लेकिन वोट बैंक की सियासत के चलते इसके काले कारनामों को हमेशा अनदेखा ही किया जाता रहा, बल्कि इनके फलने-फूलने के लिए कई और रास्ते भी खोल दिए गए। खासकर कांग्रेस ने वक्फ बोर्ड पर कुछ ज्यादा ही मेहरबानी दिखाई, जिसके चलते 1989 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार जिसके मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी हुआ करते थे, ने कानून और संविधान को ठेंगा दिखाते हुए 07 अप्रैल 1989 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ (मसलन कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह) के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए। इसके बाद उसका सीमांकन किया जाए। तिवारी सरकार के इस छोटे से आदेश ने वक्फ बोर्ड को असीम शक्तियां दे दीं। वक्फ बोर्ड की संपत्ति दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ने लगी। वक्फ बोर्ड के महत्वपूर्ण पदों पर नेता और दबंग लोग आसीन होने लगे। बड़ी-बड़ी जमीन कब्जा कर बंदरबांट का खेल शुरू हो गया।
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इस खेल का खुलासा इसलिए कभी नहीं हो पाता था क्योंकि एक तो 'इन पर’ सरकारें मेहरबान रहती थीं दूसरे तुष्टिकरण की सियासत के चलते भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर तमाम राजनैतिक दल भी चुप्पी साधे रहते हैं। वक्फ बोर्ड में कुंडली मारे बैठे लोगों का धर्म-कर्म से कोई नाता नहीं रह गया, इनका सारा ध्यान ऐसी जमीनों को हथियाने पर लगा रहता है जिसको लेकर कहीं कोई विवाद चल रहा हो या फिर या फिर ऐसी किसी जमीन का कोई वैध वारिस नहीं हो। इसके अलावा वक्फ बोर्ड जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है। जिसके चलते अवैध मजारों, नई-नई मस्जिदों की भी बाढ़-सी आ रही है। इन अवैध मजारों आदि की आड़ में वक्फ बोर्ड मजारों के आसपास की जमीनों पर कब्जा कर लेता है। चूंकि 1995 का वक्फ एक्ट कहता है कि अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन वक्फ की संपत्ति है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं, बल्कि जमीन के असली मालिक की होती है कि वो बताए कि कैसे उसकी जमीन वक्फ की नहीं है। 1995 का कानून यह जरूर कहता है कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन यह तय कैसे होगा कि संपत्ति निजी है? इसको लेकर कानून में बिल्कुल भी स्पष्टता नहीं है। अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है, सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक दावेदार रहा है। कौन नहीं जानता है कि कई परिवारों के पास पुस्तैनी जमीन के पुख्ता कागज नहीं होते हैं। वक्फ बोर्ड इसी का फायदा उठाता है क्योंकि उसे कब्जा जमाने के लिए कोई कागज नहीं देना है। इसी के चलते वक्फ बोर्ड की संपत्ति में लगातार बेतहाशा वृद्धि होती जा रही है।
बात पूरे प्रदेश की छोड़कर राजधानी लखनऊ की ही की जाए तो पुराने लखनऊ में जहां सैंकड़ों वर्ष पुराने मकान हैं, वहां वक्फ बोर्ड का जमीन हथियाने का धंधा खूब फलफूल रहा है। वक्फ बोर्ड को अपनी दावेदारी साबित करने के लिए कुछ ज्यादा नहीं करना पड़ता है, वह एक बैनर या बोर्ड लगाकर किसी भी संपत्ति को अपना बता देता है। ऐसा ही नजारा कुछ समय से लखनऊ में ऐशबाग पुल के आसपास देखने को मिल रहा है, जहां एक कब्रिस्तान के आसपास बने मकानों-दुकानों को वक्फ बोर्ड ने अपना बताते हुए उन मकानों की दीवारों पर पेंटिंग करा दी कि यह संपत्ति वक्फ बोर्ड की है। इसी तरह से ऐशबाग में शनि मंदिर के सामने की कुछ दुकानों के ऊपर भी वक्फ बोर्ड ने अपना बैनर टांग दिया है, जिसमें साफ-साफ लिखा है कि यह संपत्ति वक्फ बोर्ड की है।
दरअसल, होता यह है कि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपनी दावेदारी तो करता है, लेकिन वहां रहने वालों से मकान या दुकानें खाली कराने को लेकर किसी तरह से परेशान नहीं करता है। इसलिए वहां रहने वाले लोग भी इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, लेकिन कुछ वर्षों के बाद वक्फ बोर्ड की गतिविधियां तब शुरू होती हैं जब वहां रहने वालों के लिए इंसाफ की राह काफी कठिन हो जाती है। यह सब बातें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास भी पहुंच रही थीं। वह वक्फ बोर्ड के क्रियाकलाप से संतुष्ट नहीं थे। योगी सरकार को उस कानून के बारे में भी पता था जिसके तहत 1989 में यूपी की कांग्रेस सरकार ने कानून पास किया था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ (मसलन कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह) के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए। इसके बाद उसका सीमांकन किया जाए। इस कानून की योगी सरकार द्वारा समीक्षा के बाद सरकार ने करीब 33 वर्ष पुराने कांग्रेस काल के उस काले कानून को खत्म कर दिया है जिसके तहत तत्कालीन नारायण दत्त तिवारी सरकार ने तुष्टिकरण की सियासत के चलते उत्तर प्रदेश के वक्फ बोर्ड को असीम शक्तियां मिल गई थीं।
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इतना ही नहीं सरकार द्वारा वक्फ की प्रॉपर्टी की जांच का फरमान जारी करते हुए वक्फ की सामान्य संपत्तियों की जांच और सीमांकन कराने का आदेश भी दे दिया गया है। इन संपत्तियों में बंजर, ऊसर, भीटा जैसी जमीनें हैं। योगी सरकार ने राजस्व विभाग के साल 1989 के शासनादेश को रद्द कर जांच की रिपोर्ट एक महीने में सभी जिलों से मांगी है। बता दें कि वक्फ की संपत्तियों पर अवैध कब्जे की खबरें कई बार आ चुकी हैं। यूपी सरकार में उप सचिव शकील अहमद सिद्दीकी ने सभी जिलों के कमिश्नर और डीएम को वक्फ संपत्तियों की जांच के लिए चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में कहा गया है कि वक्फ एक्ट 1995 और यूपी मुस्लिम वक्फ एक्ट 1960 में संपत्ति की रजिस्ट्री कराने के प्रावधान में नियमों की अनदेखी हुई है। वक्फ संपत्तियों को ढंग से राजस्व अभिलेख में दर्ज कराने के लिए 1989 में आदेश भी जारी हुआ था। इसके तहत पाया गया कि वक्फ की संपत्तियां ज्यादातर बंजर, ऊसर और भीटा में दर्ज हैं। इन जमीनों को सही तरीके से राजस्व अभिलेखों में दर्ज कराने और सीमांकन की जरूरत है।
सरकार के निर्देश में कहा गया है कि ग्राम सभाओं और नगर निकायों के तहत सार्वजनिक संपत्तियां हैं। इनका जनहित में इस्तेमाल होता है। इन जमीनों का 1989 के आदेश के तहत प्रबंधन और स्वरूप बदलना कानून के खिलाफ है। गैर वक्फ संपत्तियों को वक्फ में दर्ज कराने के कारण 1989 का आदेश रद्द किया गया है। बता दें कि बीते कुछ दिनों से वक्फ की संपत्तियों के संबंध में विवाद भी शुरू हो गया है। वक्फ एक्ट को रद्द करने की अर्जी भी सुप्रीम कोर्ट में दी गई है। देशभर में वक्फ बोर्डों के पास सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन है। वक्फ बोर्डों के पास 854509 संपत्तियां हैं। ये संपत्तियां 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर हैं।
बताते चलें कि 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के साथ भारत के बंटवारे से पाकिस्तान नया देश बना। तब जो मुसलमान भारत से पाकिस्तान चले गए, उनकी जमीनों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया था। उसी समय 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते में तय हुआ था कि विस्थापित होने वालों का भारत और पाकिस्तान में अपनी-अपनी संपत्तियों पर अधिकार बना रहेगा। वो अपनी संपत्तियां बेच सकेंगे। हालांकि, पाकिस्तान में नेहरू-लियाकत समझौते के अन्य प्रावधानों का जो हश्र हुआ, वही हश्र इसका भी हुआ।
हिन्दुस्तान में तो वोट बैंक की सियासत के चलते वक्फ बोर्ड खूब फलाफूला वहीं पाकिस्तान में हिंदुओं की छोड़ी जमीनें, उनके मकानों, अन्य संपत्तियों पर वहां की सरकार या स्थानीय लोगों का कब्जा हो गया। उसी समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि यहां से पाकिस्तान गए मुसलमानों की संपत्तियों को कोई हाथ नहीं लगाएगा। जो मालिकों द्वारा साथ ले जाने, बेच दिए जाने के बाद जो संपत्तियां बच गई हैं, उन्हें वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया गया। एनिमी प्रॉपर्टी अपवाद थी, उस पर सरकार का अधिकार हुआ। इसके बाद 1954 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ। यहीं से भारत के इस्लामीकरण का एजेंडा शुरू हुआ। दुनिया के किसी इस्लामी देश में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं है। यह सिर्फ भारत में है जो इस्लामी नहीं, धर्मनिरपेक्ष देश है।
वक्फ बोर्ड पर सरकारें कैसे मेहरबान रहती थीं इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्ष 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय देखने को मिला जब केन्द्र सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं। वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3 (आर) के मुताबिक, कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। दरअसल, वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है। वही तय करता है कि कौन-सी संपत्ति वक्फ की है, कौन-सी नहीं। इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन का लंबे समय से इस्तेमाल कर रही है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित हुआ।
बड़ी बात है कि अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दिया गया है तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते। आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं। इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं। हालांकि, राज्य की सरकार किस दल की है, इस पर निर्भर करता है कि ट्राइब्यूनल में कौन लोग होंगे। संभव है कि ट्राइब्यूनल में भी सभी के सभी मुस्लिम ही हो जाएं। वैसे भी अक्सर सरकारों की कोशिश यही होती है कि ट्राइब्यूनल का गठन ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों के साथ ही हो। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।
-अजय कुमार
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