पूरी दुनिया कोरोना से लड़ रही है, शाहीन बाग के लोग सरकार से लड़ रहे हैं
नागरिकता संशोधन कानून के नाम पर इन लोगों ने जो तमाशा किया है उसे अब सब समझ गये हैं। घर की महिलाओं को प्रदर्शन पर बैठा कर खुद रजाई में छिप कर टीवी पर तमाशा देखने वाले लोगों को जरा कहीं से ढूँढ़कर मानवीयता शब्द का अर्थ पढ़ लेना चाहिए।
कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें रोकथाम के लिए तमाम कदम उठा रही हैं। नागरिकों से भी उम्मीद की जाती है कि वह सरकार के इन प्रयासों में पूरी मदद करें लेकिन कुछ नागरिक ऐसे भी हैं जोकि सरकार के विरोध में इतने अंधे हो गये हैं कि उन्हें अपनी बचकानी जिद के आगे कुछ नजर नहीं आ रहा है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं दिल्ली के शाहीन बाग में बैठे उन लोगों की जो पिछले तीन महीने से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सड़कें जाम करके बैठे हुए हैं। जो लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2019 के लोकसभा चुनावों में नहीं हरा पाये उन्होंने सरकार को हिलाने और झुकाने के नये प्रयोग के तहत शाहीन बाग आंदोलन की जो रूपरेखा बनाई उससे आम जनता सर्वाधिक प्रभावित हुई।
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शाहीन बाग के धरने प्रदर्शन से परेशान हो रहे लोगों की मुश्किलें सुलझाने के लिए सरकार की तरफ से स्वयं गृहमंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव किया कि जो लोग नागरिकता संशोधन कानून पर बात करना चाहें उनका स्वागत है तो शाहीन बाग के कथित आंदोलनकारियों ने नया ड्रामा रच दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने मध्यस्थ भेजे तो उन्हें भी इन लोगों ने उलटा लौटा दिया। अब जब कोरोना वायरस का संक्रमण इतनी तेजी से फैल रहा है कि दुनिया के कई देशों में पूरी तरह लॉकडाउन हो चुका है। भारत में भी तमाम सरकारी और निजी कार्यालयों में उपस्थिति कम हुई है, स्कूल, कॉलेज, सिनेमाघर और सार्वजनिक स्थल यहाँ तक कि कई बड़े मंदिर भी बंद कर दिये गये हैं, यही नहीं स्वयं दिल्ली सरकार ने 50 से ज्यादा लोगों के एकत्रित होने पर रोक लगा दी है तो सवाल उठता है कि शाहीन बाग में धरने के माध्यम से अराजकता फैलाने वाले लोग क्या कानून से ऊपर हैं?
पुलिस और प्रशासन इन लोगों से अब पूरी तरह परेशान हो चुका है। पुलिस व प्रशासन के अधिकारी मंगलवार को लोगों को समझाने के लिए शाहीन बाग पहुंचे थे लेकिन प्रदर्शनकारी उनसे तीखी बहस करने पर उतर आये। अधिकारियों ने जब कोरोना वायरस की भयावहता का उल्लेख करते हुए प्रदर्शन खत्म करने की अपील की तो प्रदर्शनकारी भड़क गये और धरना जारी रखने की बात कही। उन्हें कानून का हवाला भी दिया गया क्योंकि दिल्ली में कोरोना वायरस महामारी घोषित हो चुका है और महामारी एक्ट 1857 के तहत लोगों को प्रशासन के साथ सहयोग करना होगा वरना उन पर कार्रवाई हो सकती है, लेकिन यह लोग सहयोग करने को तैयार ही नहीं हैं।
कहा जा सकता है कि जो लोग नागरिकता धर्म ही नहीं निभा रहे, जो लोग अपने आसपास के लोगों की दिक्कतें ही समझने को राजी नहीं हैं, जो लोग खुलेआम दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं, जो लोग देशविरोधी हाथों में खेल रहे हैं उन्हें तो संविधान और कानून की बात करनी ही नहीं चाहिए। नागरिकता संशोधन कानून के नाम पर इन लोगों ने जो तमाशा किया है उसे अब सब समझ गये हैं। घर की महिलाओं को प्रदर्शन पर बैठा कर खुद रजाई में छिप कर टीवी पर तमाशा देखने वालों जरा कहीं से ढूँढ़कर मानवीयता शब्द का अर्थ भी पढ़ लो, समझ लो। संक्रमण को फैलने से बचाने के लिए अपने परिवार को घर पर बुला लो यही समाज और देशहित में रहेगा। रही बात आपके विरोध की तो मामला उच्चतम न्यायालय देख ही रहा है और वहाँ से सबको न्याय मिलेगा ही। शाहीन बाग को प्रयोगशाला बनाने वालों को चाहिए कि वह चेन्नई के लोगों से भी सीख लें जिन्होंने दो महीने से ज्यादा समय से चल रहा अपना धरना प्रदर्शन कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते स्थगित कर दिया है।
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बहरहाल, दिल्ली पुलिस को भी चाहिए कि भीड़भाड़ रोकने के जो निर्देश उसे मिले हैं उसे कड़ाई से लागू करवाये। फिलहाल तो पुलिस सूत्रों का कहना है कि प्रदर्शनकारियों की भीड़ नहीं खत्म होने की स्थिति में शाहीन बाग थाने में मुकदमा दर्ज करवाया जाएगा जिसके बाद आगे की कार्रवाई की जायेगी। अगले सप्ताह इस मामले को लेकर सर्वोच्च अदालत में सुनवाई होनी है। अदालत को भी चाहिए कि शाहीन बाग के आंदोलनकारियों पर कोई कड़ी कार्रवाई करे क्योंकि सरकार, प्रशासन और खुद न्यायालय इनको समझाने में विफल रहा है।
-नीरज कुमार दुबे
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