ऐसा कोई सगा नहीं जिसे मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने ठगा नहीं!
यह भी बताया जा रहा है कि राष्ट्रपति पद संभालने वाले दिन मुइज्जू ने उन लोगों की ओर देखा तक नहीं जिन्होंने राजनीति में आगे बढ़ने में उनकी मदद की थी। बताया जा रहा है कि अब्दुल्ला यामीन शुरू से ही मुइज्जू के इस स्वार्थी रुख से वाकिफ थे।
मालदीव के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद मुइज्जू सिर्फ भारत विरोधी नहीं हैं बल्कि उनके इतिहास पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि वह किसी के सगे नहीं हैं। हम आपको बता दें कि मोहम्मद मुइज्जू ने चीन समर्थक माने जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की उंगली पकड़ कर राजनीति में कदम रखा, उनके नक्शेकदम पर चलते हुए भारत विरोध को हवा दी और आखिरकार राष्ट्रपति पद तक पहुँच गये। लेकिन अब माना जा रहा है कि मुइज्जू के संबंध अपने गुरु अब्दुल्ला यामीन के साथ बिगड़ गये हैं। हालात ऐसे हो गये हैं कि भ्रष्टाचार के आरोपों में सजा काट रहे अब्दुल्ला यामीन अपने ही चेले मुइज्जू और अपनी ही पार्टी का विरोध नई पार्टी बनाकर कर सकते हैं। यामीन को उम्मीद थी कि उनकी पार्टी और गठबंधन की सरकार बनने पर उन्हें रिहा करवाने का प्रयास किया जायेगा लेकिन मुइज्जू ने सत्ता पर पूरी तरह अपनी पकड़ कायम करने के लिए यामीन को दरकिनार कर दिया है।
यह भी बताया जा रहा है कि राष्ट्रपति पद संभालने वाले दिन मुइज्जू ने उन लोगों की ओर देखा तक नहीं जिन्होंने राजनीति में आगे बढ़ने में उनकी मदद की थी। बताया जा रहा है कि अब्दुल्ला यामीन शुरू से ही मुइज्जू के इस स्वार्थी रुख से वाकिफ थे इसलिए वह उन्हें अभी राष्ट्रपति चुनाव का टिकट भी नहीं दिलवाना चाहते थे। लेकिन अपनी उम्मीदवारी के लिए पीपुल्स नेशनल कांग्रेस को मनाने में मुइज्जू कामयाब रहे थे। बताया जाता है कि जेल की सजा के कारण मोहम्मद यामीन के पास मुइज्जू की उम्मीदवारी का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था इसलिए उन्होंने मजबूर होकर अपनी पत्नी के माध्यम से अपनी सहमति पार्टी के पास उस दिन भेजी जब मुइज्जू चुनाव आयोग के समक्ष अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे थे।
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बताया जा रहा है कि मुइज्जू की जीत के जश्न के दौरान और उसके बाद घटी घटनाओं से पूर्व राष्ट्रपति यामीन और उनके साथी डॉ. मोहम्मद जमील अहमद के मन में नाराजगी स्पष्ट हो गयी थी क्योंकि लगातार उनका अपमान किया जा रहा था। हम आपको यह भी बता दें कि मालदीव में 30 सितंबर को हुए चुनावों के बाद और मतगणना के बीच ही जमील और उनके सहयोगियों ने जनता को आगाह करना शुरू कर दिया था कि उन्हें आने वाली सरकार के बारे में सतर्क रहने की जरूरत है। इस तरह से देखा जाये तो नई सरकार के औपचारिक रूप से सत्ता संभालने से पहले ही मालदीव में असंतोष का माहौल शुरू हो गया था।
मालदीव के चैनल 13 पर एक कार्यक्रम में बोलते हुए डॉ. मोहम्मद जमील अहमद ने कहा कि यामीन चाहते थे कि वह राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले डॉ. मुइज्जू के जश्न में भाग लें। जमील के अनुसार, यामीन ने डॉ. मुइज्जू से यह भी अनुरोध किया था कि जब तक वह पूरी तरह से रिहा नहीं हो जाते, तब तक जश्न का कार्यक्रम स्थगित कर दिया जाए। जमील ने कहा कि अगर मुइज्जू चाहते तो तत्कालीन सरकार यामीन को उनकी आपराधिक सजा के बावजूद जश्न में भाग लेने की अनुमति देती। जमील के अनुसार मुइज्जू ने अपने विजयी संबोधन में भी यामीन के प्रति आभार व्यक्त नहीं किया था। हम आपको बता दें कि यामीन के राष्ट्रपति रहने के दौरान डॉ. जमील उपराष्ट्रपति थे। हालांकि उनको बाद में पद से हटा दिया गया था। उपराष्ट्रपति पद से बर्खास्त होने के बाद जमील ने यामीन के खिलाफ लंबे समय तक हमला बोला था और 2018 में यामीन को सत्ता से हटाने के लिए मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) की राजनीतिक गतिविधियों के पीछे उन्हीं का हाथ माना जाता है। लेकिन अपने रुख में पूर्ण बदलाव के बाद जमील अब यामीन के प्रमुख पक्षकार बन गये हैं और पीपुल्स नेशनल फ्रंट (पीएनएफ) नामक नई राजनीतिक पार्टी बनाने के प्रयासों का नेतृत्व भी कर रहे हैं।
चुनावी जीत के जश्न के कार्यक्रम में यामीन की उपस्थिति की अनुमति देने में डॉ. मुइज्जू की ओर से दिखायी गयी उपेक्षा के बारे में जमील ने कहा, “बेशक हमें उम्मीद थी कि वे इस दोस्ती और लंबे समय से चले आ रहे संबंधों का सम्मान करना जारी रखेंगे। यामीन भी इसके उतने ही हकदार हैं। समारोह के दौरान उन्हें उचित श्रेय और धन्यवाद मिलना चाहिए था। लेकिन हमने इस संबंध में कुछ भी नहीं सुना और इस बात ने तुरंत भावनात्मक रूप से हम पर गहरा प्रभाव डाला। यह भी बताया जाता है कि चुनाव में जीत के बाद मुइज्जू ने जब विजयी संबोधन दिया तो उसके ठीक बाद उन्हें यामीन का फोन आया। लेकिन मुइज्जू ने कॉल का जवाब देने से ही इंकार कर दिया। यही नहीं, मुइज्जू ने यामीन के 'कॉल मी बैक' संदेशों को भी नजरअंदाज कर दिया।
बताया जाता है कि मुइज्जू की गुस्ताखियों को देखते हुए यामीन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया है। उन्होंने नयी सरकार के कामकाज संभालने के बाद अपने समर्थकों को अपने आवास पर एकत्रित कर हाल की घटनाओं पर अपनी निराशा और नाराजगी जताई। अपने समर्थकों के लिए भेजे गये संदेश में यामीन ने कहा कि गठबंधन के नेताओं और पार्टी के सदस्यों के अंदर उनके लिए सड़कों पर उतरने की दृढ़ता होनी चाहिए। यामीन ने कहा कि पार्टी नेताओं को केवल शीर्ष स्थान हासिल करने के बाद बड़े-बड़े बयान नहीं देने चाहिए, बल्कि यह दिखाना चाहिए कि वे किस चीज से बने हैं। बताया जाता है कि इसके बाद से राष्ट्रपति मुइज्जू ने यामीन से संपर्क करने से परहेज किया और पूर्व राष्ट्रपति के संदेशों का जवाब नहीं दिया। यह भी बताया जा रहा है कि यामीन के पास मंत्री पद के लिए नामों की एक सूची थी, जिस पर वह राष्ट्रपति मुइज्जू के साथ चर्चा करना चाहते थे। हालाँकि, उन्हें इसका अवसर नहीं मिला। यामीन इस बात को लेकर नाराज दिखे कि मंत्रिमंडल में अनुभवहीन लोगों को भर लिया गया है। हाल में जब तीन मंत्रियों की ओर से भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ सोशल मीडिया पर टिप्पणियां की गयीं तो यामीन की नाराजगी जायज भी प्रतीत हुई। बताया जा रहा है कि यामीन करना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन वह जेल और पैरोल अधिनियम से बंधे हुए हैं जोकि उन्हें किसी भी राजनीतिक गतिविधि में सक्रिय रूप से शामिल होने से रोकता है।
बहरहाल, यामीन के लिए अपने राजनीतिक प्रयासों को आगे बढ़ाने की एकमात्र उम्मीद एक नई राजनीतिक पार्टी बनाना है। देखना होगा कि मालदीव की घरेलू राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है। लेकिन एक बात साफ दिख रही है कि मुइज्जू के लिए राजनीतिक चुनौतियां पार्टी और गठबंधन के भीतर तो बढ़ने ही वाली हैं साथ ही विपक्ष भी उनके खिलाफ नये सिरे से लामबंद होने वाला है। मुइज्जू माले के मेयर रहे हों या अब राष्ट्रपति पद पर बैठे हों...उन्होंने हमेशा वरिष्ठों को दरकिनार करने और जिनका समर्थन लेकर आगे बढ़े उनको भुलाने की जो राजनीति की है उसको जनता अब समझ चुकी है इसीलिए कहा जा रहा है कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसे मुइज्जू ने ठगा नहीं।
-नीरज कुमार दुबे
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