BJP Ticket हासिल करने के लिए क्या करना होता है? किस आधार पर भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति नामों को मंजूरी देती है?
भाजपा आखिर किस आधार पर किसी को पार्टी का उम्मीदवार बनाती है। सबसे पहले तो आपको यह समझना होगा कि भाजपा चुनावों से ठीक पहले या चुनावों की घोषणा के बाद ही उम्मीदवारों की तलाश शुरू नहीं करती है बल्कि उसकी यह प्रक्रिया सतत रूप से चलती रहती है।
लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा अबकी बार 400 पार का नारा लगा रही है। यह नारा हकीकत बनता है या नहीं यह तो चुनाव परिणाम बाद ही पता चलेगा लेकिन इतना तो है कि चुनावी तैयारियों के लिहाज से भाजपा इस समय अन्य दलों से काफी आगे नजर आ रही है। आम चुनावों की तारीखों की घोषणा से पहले भाजपा अपने उम्मीदवारों की दो सूची जारी कर चुकी है। इस दौरान देखने को मिला कि सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि जनता भी भाजपा उम्मीदवारों की सूची में शामिल नामों को जानने के लिए उत्सुक थी। ऐसा प्रतीत हुआ कि भाजपा की उम्मीदवारी हासिल करना ही जीत की गारंटी है। शायद इसी गारंटी के लालच में ही चुनावों से पहले कई नेताओं ने दल बदल कर भाजपा का दामन थाम लिया तो कई ऐसे नेता भाजपा में लौट आये जोकि कुछ समय पहले कहीं और चले गये थे।
चुनावों से पहले जिस तरह भाजपा से लोकसभा चुनाव का टिकट हासिल करने के लिए होड़ दिखी वह अभूतपूर्व थी। हमने भाजपा के नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में कई ऐसे लोगों को भी पाया जोकि भाजपा से जुड़े हुए नहीं थे लेकिन वहां इसलिए आ गये थे ताकि पार्टी नेताओं को देश के लिए काम करने के अपने विजन के बारे में बता कर उम्मीदवारी हासिल कर सकें। इन लोगों का विश्वास था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में भाजपा का टिकट हासिल करने के लिए वरिष्ठ नेताओं की परिक्रमा करनी जरूरी नहीं है और अब सिर्फ योग्यता के आधार पर ही किसी को उम्मीदवार बनाया जाता है। देखा जाये तो यह लोग कुछ हद तक सही भी थे लेकिन भाजपा के काम करने के तरीके से अनजान थे इसलिए जब वह सीधे लोकसभा चुनाव का टिकट मांग रहे थे तो वहां खड़े लोग मुस्कुरा रहे थे।
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इसलिए आइये आपको समझाते हैं कि भाजपा आखिर किस आधार पर किसी को पार्टी का उम्मीदवार बनाती है। सबसे पहले तो आपको यह समझना होगा कि भाजपा चुनावों से ठीक पहले या चुनावों की घोषणा के बाद ही उम्मीदवारों की तलाश शुरू नहीं करती है बल्कि उसकी यह प्रक्रिया सतत रूप से चलती रहती है। मसलन जैसे अभी लोकसभा चुनाव होने हैं तो उसके लिए उम्मीदवारों के नामों पर मंथन डेढ़ साल से चल रहा है। अभी भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की जो दो बैठकें हुई हैं उनमें सिर्फ उन नामों पर मुहर लगाने का काम हुआ है जोकि पार्टी की विभिन्न समितियों ने केंद्रीय चुनाव समिति को तमाम तरह की रिपोर्टों के साथ संलग्न करके भेजे थे।
हमारे पास सूत्रों के हवाले से जो खबरें हैं उसके मुताबिक आइये आपको समझाते हैं जब भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक होती है तो उसमें क्या होता है। उदाहरण के लिए लोकसभा चुनावों की ही बात करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति वाली बैठक में पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्यों को सबसे पहले यह बताते हैं कि आज किन राज्यों की सीटों पर चर्चा होनी है। इसके बाद उस राज्य से भाजपा मुख्यालय में पहले से आकर बैठे हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री या विधायक दल का नेता, राज्य के पार्टी प्रभारी और यदि किसी केंद्रीय मंत्री के पास उस राज्य का प्रभार है तो उनको भी बैठक में बुला लिया जाता है। मान लीजिये कि उस राज्य में 25 सीटें हैं। सबसे पहले उन सीटों पर चर्चा की जाती है जहां किसी को फिर से मौका देना है। प्रदेश अध्यक्ष एक-एक कर सीट का नाम बोलते हैं और बैठक कक्ष में मौजूद बड़ी स्क्रीन पर उस सीट के दावेदारों का परिचय फोटो के साथ एक-एक करके आता रहता है। सभी दावेदारों के आगे विभिन्न सर्वेक्षणों की रिपोर्ट के अलावा यह भी लिखा होता है कि उन्होंने पार्टी के कार्यों में कितनी रुचि दिखाई, विवादों में कितना घिरे रहे, संसदीय कार्यों में कितनी रुचि ली, संसद में कितनी उपस्थिति रही, सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों को जनता तक पहुँचाने के अभियान में क्या योगदान दिया, स्थानीय स्तर पर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ कैसा व्यवहार रहा, संसदीय क्षेत्र में जो वादे किये थे उन्हें कितना पूरा किया। इसके अलावा उस क्षेत्र के राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों से संबंधित ग्राफ के अलावा उस सीट पर विपक्ष की ओर से खड़ी की जाने वाली चुनौतियों पर चर्चा की जाती है। राज्य के नेता एक-एक करके हर दावेदार के नाम के गुण और दोष बताते हैं। उसके बाद भाजपा संगठन के राष्ट्रीय महासचिव उन एजेंसियों की सर्वेक्षण रिपोर्ट दिखाते हैं जो भाजपा ने उस क्षेत्र के संभावित प्रत्याशियों को लेकर करवायी होती है। वह यह भी बताते हैं आरएसएस और उसके आनुषांगिक संगठनों की ओर से उस क्षेत्र के प्रत्याशी के लिए क्या फीडबैक मिला है। इसके बाद केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य उन नामों पर अपनी राय रखते हैं और जो नाम तय होते जाते हैं उन्हें केंद्रीय चुनाव समिति के सचिव अलग से नोट करते रहते हैं। जिन नामों पर केंद्रीय चुनाव समिति का कोई सदस्य या खुद प्रधानमंत्री उस पर आपत्ति जता दें तो फिर पार्टी की प्रदेश इकाई को उस सीट के लिए और नाम सुझाने के लिए कहा जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि नामों पर चर्चा करने के लिए आई प्रदेश इकाई टीम को कह दिया जाता है कि किसी भी निवर्तमान सांसद या पहले लड़ चुके उम्मीदवार को इस बार मौका नहीं दिया जायेगा इसलिए सभी नाम नये होने चाहिए।
इसी तरह एक के बाद एक अलग राज्यों के नेताओं को बुला कर चर्चा की जाती है। मान लीजिये कि एक दिन में चार राज्यों पर चर्चा हुई तो उन चार राज्यों की जिन सीटों के लिए नाम तय हो गये हैं उसे जारी करने से पहले एक बार फिर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को दिखाया जाता है और फिर मीडिया को नाम जारी कर दिये जाते हैं। हम आपको यह भी बता दें कि पार्टी की राज्यों की चुनाव समिति केंद्रीय चुनाव समिति में नाम भेजने से पहले सभी दावेदारों की सूची बनाती है। इस सूची में वह नाम तो होते ही हैं जो दावेदारों ने खुद आवेदन करके दिये होते हैं साथ ही इसमें वह नाम भी होते हैं जो भाजपा की स्थानीय इकाई, संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारियों की ओर से भेजे गये होते हैं। इसके अलावा राज्यों में भाजपा के संगठन महासचिव या पूर्णकालिक कार्यकर्ता हमेशा इस बात की खोज करते रहते हैं कि समाज जीवन के जिस भी क्षेत्र में कोई व्यक्ति उल्लेखनीय कार्य कर रहा हो उसे कैसे पार्टी से जोड़ा जाये और समय आने पर उसे चुनाव लड़ने का अवसर भी दिया जाये, ऐसे में यदि वह कोई नाम सुझाते हैं तो उसे भी इस सूची में शामिल किया जाता है। इसलिए आपको भाजपा की सूची में कई बार विभिन्न क्षेत्रों के ऐसे प्रोफेशनल्स का नाम भी देखने को मिल जाता है जिन्होंने कभी टिकट के लिए आवेदन ही नहीं किया था। किसी राज्य के उम्मीदवारों को तय करते हुए यह भी ध्यान दिया जाता है कि वहां की सूची में अनुभवी नेताओं, युवाओं, महिलाओं, पार्टी के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं के साथ ही समाज के सभी वर्गों को पर्याप्त भागीदारी मिले।
भाजपा के टिकट के लिए एक और जरूरी बात यह है कि व्यक्ति पार्टी का सक्रिय सदस्य होना चाहिए। पार्टी की सामान्य सदस्यता तो सभी को मिल जाती है लेकिन सक्रिय सदस्यता हासिल करने के लिए कुछ अनिवार्यताएं हैं जिन्हें पूरा करना होता है। लेकिन अक्सर उन लोगों को इन अनिवार्यताओं से छूट मिल जाती है जो बड़े नेता होते हैं और दल बदल कर भाजपा में आते ही टिकट हासिल कर लेते हैं। ऐसे नेताओं को अक्सर आपने देखा होगा कि वह सामान्य सदस्यता वाली पर्ची मीडिया को दिखाते हुए खुद के भाजपा में शामिल होने की घोषणा करते हैं और अगले ही दिन या कुछ ही घंटों में उम्मीदवारी भी हासिल कर लेते हैं।
बहरहाल, भाजपा का टिकट हासिल करने की जो प्रक्रिया लोकसभा चुनाव में है वही विधानसभा और अन्य चुनावों में भी होती है। लोकसभा, विधानसभा, राज्यसभा और विधान परिषद के उम्मीदवारों को मंजूरी पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति देती है और नगर निगमों, नगर पालिकाओं और पंचायतों के उम्मीदवारों के नामों को उस प्रदेश की चुनाव समिति मंजूरी देती है। भाजपा की उम्मीदवारी हासिल करने में परिवारवाद, नेताओं की परिक्रमा और धन बल की योग्यता आजकल मायने नहीं रखती लेकिन उम्मीदवार का मेहनती और भाग्यशाली होना भी जरूरी है।
-नीरज कुमार दुबे
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