ढाई साल में योगी आदित्यनाथ के लिए कोई चुनौती नहीं खड़ा कर पाया विपक्ष
ढाई साल में योगी सरकार के लिए सब कुछ अच्छा नहीं रहा। इसीलिए अपनी सरकार की छवि को सुधारने के लिए कुछ समय पूर्व योगी ने अपने मंत्रिमंडल में भी बदलाव किया था, मगर वह मनमाफिक बदलाव नहीं कर पाए।
बात चाहे ढाई साल की हो या फिर पांच साल की। इतना तय है कि 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने मोदी के चेहरे पर लड़ा था और 2022 का चुनाव भी बीजेपी मोदी को ही आगे करके लड़ेगी। बीजेपी ने 2017 का चुनाव योगी को चेहरा बनाकर नहीं लड़ा था, इसलिए सीएम के तौर पर जब उनके नाम की घोषणा की गई थी, तब से लेकर आज तक यही मान कर चला जाता है कि वह प्रदेश की जनता से अधिक मोदी और शाह की पसंद थे। जनता ने मोदी के चेहरे पर वोट किया था, इसलिए योगी की ताजपोशी पर कोई उंगली भी नहीं उठा सकता था। यह बात योगी जी जानते और मानते हैं। समय−समय पर वह मोदी और शाह की शान में कसीदे भी पढ़ते रहते हैं। इसीलिए आज भी आम धारणा यही है कि योगी जी दिल्ली से 'डिक्टेट' होते हैं, लेकिन इस आधार पर योगी सरकार के कामकाज की समीक्षा नहीं की जानी चाहिए। योगी सरकार ने ढाई वर्ष में क्या किया और क्या नहीं किया। यह बहस और चर्चा का विषय हो सकता था, लेकिन हकीकत यह भी है कि बीते ढाई सालों में कमजोर विपक्ष के चलते योगी सरकार की खामियों पर वैसी चर्चा नहीं हो पाई जिसके सहारे प्रदेश की जनता को योगी सरकार के कामकाज का आईना दिखाया जा सकता था।
सरकार ने कुछ अच्छे काम किए हैं तो कई मोर्चों पर पूरी तरह से विफल भी रही। खास लॉ एंड आर्डर एवं योगी के मंत्रियों की बदजुबानी ने सरकार की काफी किरकिरी कराई। बीते 09 जून की बात है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार में मंत्री उपेंद्र तिवारी गोंडा में विकास समीक्षा व बीजेपी संगठन की बैठक में भाग लेने आए थे। उपेंद्र तिवारी से जब मीडिया कर्मियों ने अलीगढ़ में हुई रेप की घटना का हवाला देते हुए रेप के बढ़ते मामलों पर सवाल पूछा तो वह भड़क गए। उन्होंने रेप की विवादित व्याख्या ही कर दी। उन्होंने कहा कि देखिए रेप का नेचर होता है, अब जैसे अगर कोई नाबालिग लड़की है, उसके साथ रेप हुआ है तो उसको तो हम रेप मानेंगे, लेकिन कहीं−कहीं पर ये भी सुनने में आता है कि विवाहित महिला है, उम्र 30−35 साल है, उसके साथ भी रेप हुआ। इस तरीके की तमाम घटनाएं होती हैं। 7−8 साल से प्रेम प्रपंच चल रहा है। उसका अलग नेचर होता है। एक तरफ देश में अलीगढ़ में मासूम के साथ हुई नृशंस हत्या के खिलाफ लोगों में आक्रोश था तो वहीं दूसरी इसी मुद्दे पर उपेंद्र सिंह के बयान पर ने आग में घी डालने का काम किया। मगर विपक्ष यहां भी कुछ नहीं कर सका।
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ढाई साल में योगी सरकार के लिए सब कुछ अच्छा नहीं रहा। इसीलिए अपनी सरकार की छवि को सुधारने के लिए कुछ समय पूर्व योगी ने अपने मंत्रिमंडल में भी बदलाव किया था, मगर वह मनमाफिक बदलाव नहीं कर पाए। ऐसा लगा वह ऊपरी प्रेशर में थे। किसी भी सरकार की कार्यशैली का सबसे बेहतर आकलन विपक्ष ही कर सकता है। विपक्ष सवाल खड़ा करता है तो पूरे प्रदेश में मैसेज जाता है। जनता भी असलियत से रूबरू हो पाती है। परंतु योगी सरकार के सामने विपक्ष कभी मजबूती के साथ खड़ा दिखाई ही नहीं दिया।
अगर ऐसा न होता तो आजम खान के मसले पर योगी सरकार को घेरा जा सकता था। बीजेपी के पूर्व सांसद और मंत्री स्वामी चिन्मयानंद पर उन्हीं के कालेज की एक छात्रा ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, विपक्ष चाहता तो बीजेपी पर चिन्मयानंद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए दबाव सकता था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने यहां तक आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार बलात्कार के आरोपी पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद को उसी तरह से संरक्षण दे रही है, जैसे उसने उन्नाव मामले के आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर को दिया था। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'उन्नाव बलात्कार मामले में भाजपा सरकार और पुलिस की लापरवाही व आरोपी को संरक्षण दिए जाने का हश्र सबके सामने है।' प्रियंका ने कहा, 'अब भाजपा सरकार और उप्र पुलिस शाहजहाँपुर मामले में वही दुहरा रही है। पीड़िता भय में है, लेकिन भाजपा सरकार पता नहीं किस चीज का इंतजार कर रही है।'
इसी तरह से सोनभद्र में हुआ सामूहिक नरसंहार योगी सरकार के माथे पर किसी कलंक से कम नहीं था, लेकिन सरकार ने इसका ठीकरा भी कांग्रेस पर ही फोड़ दिया। प्रियंका ने सोनभद्र नरसंहार के खिलाफ जरूर तेजी दिखाई थी, लेकिन संगठन उनके साथ नजर नहीं आया। अखिलेश अपने घर के झगड़े से ही नहीं उबर पा रहे हैं। वहीं मायावती यह नहीं समझ पा रही हैं कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन कौन है। बिखरा विपक्ष योगी सरकार के लिए वरदान बन गया है।
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इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि एक तरफ ढाई साल पूरे होने पर योगी जी प्रेस कांफ्रेंस में कहते हैं कि उन्होंने लघु और सीमांत किसानों का कर्ज माफ किया है, जबकि एक दिन पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट, प्रदेश सरकार को फटकार लगा चुकी होती है कि वह किसानों के सभी बकाए एक माह में ब्याज सहित भुगतान कराए। हाईकोर्ट ने योगी सरकार को यहां तक याद दिलाया कि कंट्रोल आर्डर के तहत खरीद से 14 दिन में गन्ने की कीमत की भुगतान की बाध्यता है। हाईकोर्ट किसानों के कोर्ट के चक्कर लगाने से दुखी था, लेकिन विपक्ष किसानों की समस्याओं को कभी मुद्दा नहीं बना पाया।
आज भी प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को बुरा हाल है। सरकारी अस्पतालों में स्ट्रेचर से लेकर आक्सीजन तक का अभाव है। कहीं डॉक्टर मनमानी कर रहे हैं तो कहीं डॉक्टरों पर काम का इतना बोझ है कि वह वीआरएस मांग रहे हैं। प्राथमिक स्कूलों की दुर्दशा में बदलाव के दावों में हकीकत कम फसाना ज्यादा है। अतिक्रमण पर रोज कोर्ट की फटकार सरकार को सुननी पड़ती है। पुलिस की वसूली थमने का नाम नहीं ले रही है। बिजली के दाम बेतहाशा बढ़ा दिए गए हैं। जनता त्राहिमाम कर रही है। मगर विपक्ष कोई आंदोलन नहीं खड़ा कर सका।
लब्बोलुआब यह है कि योगी जी अपने काम से अधिक मोदी−शाह की निकटता के कारण ज्यादा 'सुरक्षित' लगते हैं। लोकसभा चुनाव से पूर्व ऐसा खबरें आ रहीं थीं कि चुनाव के बाद प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है, मगर योगी जी की किस्मत यहां भी रंग दिखा गई। मोदी−शाह की जोड़ी के बल पर बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की तो इसमें योगी का योगदान अपने आप जुड़ गया। अब शायद ही 2022 तक योगी को कोई छू पाएगा। वैसे अभी पंचायत और विधान सभा उप−चुनाव में भी योगी की परीक्षा होनी बाकी है। फिलहाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सियासी करिश्मा अभी फीका नहीं पड़ा है। वह अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। इस बात की प्रबल संभावनाएं हैं।
-अजय कुमार
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