राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने वालों को सेना की ताकत पर भरोसा नहीं रहा
शायद ही कोई ऐसा मुल्क होगा जहां के लोगों को अपनी सेना पर गर्व ना हो। आज अगर हम भारतीय खुद को महफूज महसूस कर रहे हैं तो इसका श्रेय सीमा पर तैनात उन सैनिकों को जाता है जो अपनी जान की कुर्बानी देकर हमारी रक्षा करते हैं।
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मुल्क होगा जहां के लोगों को अपनी सेना पर गर्व ना हो। आज अगर हम भारतीय खुद को महफूज महसूस कर रहे हैं तो इसका श्रेय सीमा पर तैनात उन सैनिकों को जाता है जो अपनी जान की कुर्बानी देकर हमारी रक्षा करते हैं। लेकिन अफसोस कुछ लोग हमारे देश में सेना के खिलाफ बयानबाजी कर उनके मनोबल को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
आरएसएस पूरे देश को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाता है लेकिन संघ प्रुमख मोहन भागवत सेना की ताकत पर भरोसा नहीं करते। रविवार को बिहार के मुजफ्फरपुर में एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि युद्ध के लिए सेना को तैयार होने में करीब 6-7 महीने लगेंगे लेकिन संघ के पास 3 दिन में ही सेना को तैयार करने की क्षमता है। मोहन भागवत ने कहा कि हम सैन्य संगठन नहीं लेकिन संघ में सेना जैसा अनुशासन है...अगर देश को जरूरत हो और संविधान इजाजत दे तो स्वयंसेवक मोर्चा संभाल सकते हैं।
संघ प्रमुख का ये बयान ऐसे समय में आया जब जम्मू के सुंजवां में आतंकियों से लोहा लेते हमारे 5 जवान शहीद हो गए। जरा सोचिए मोहन भागवत का ये बयान सुनकर शहीदों के परिजनों पर क्या बीती होगी? अगर आप सेना के लिए अच्छे बोल नहीं बोल सकते तो कम से कम उनकी काबिलियत पर तो सवाल ना उठाएं...सीमा पर हमारे जवान किन परिस्थितियों में दुश्मनों का सामना करते हैं ये बात सभी को मालूम है। काश, आरएसएस के मुखिया जवानों का दर्द समझ सकते।
संघ प्रमुख के बयान पर मचे बवाल के बाद संघ की ओर से जो सफाई में कहा गया कि भागवत के बयान को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। उधर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी भागवत के बयान पर ये कहकर चुप्पी साध ली कि उन्हें मालूम नहीं संघ प्रमुख ने क्या कहा?
जिस मुल्क का एक पड़ोसी पाकिस्तान हो और दूसरा चीन उस देश की फौज के सामने कितनी बड़़ी चुनौती होगी ये बताने की जरूरत नहीं। अगर इस साल रक्षा पर होने वाले खर्च की बात करें तो बजट में रक्षा के लिए 2.95 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इनमें हथियारों और दूसरे साजो-समाज की खरीद के लिए 99,947 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित की गई है। अगर आंकड़ों की बात करें तो 2000 से 2016 तक सभी राज्यों को जारी फंड का कुल 10 फीसदी हिस्सा जम्मू-कश्मीर को मिला।
मोहन भागवत के बयान के बाद कुछ लोग संघ पर चुटकी भी ले रहे हैं। कई लोग ये भी कह रहे हैं कि क्यों न घाटी से सेना वापस बुलाकर वहां संघ कार्यकर्ताओं की तैनाती कर दी जाए ? इससे एक तरफ जहां जवानों को आराम करने को मिलेगा वहीं दूसरी तरफ देश का पैसा भी बचेगा?
सेना का मनोबल गिराने का काम सिर्फ संघ प्रमुख ने ही नहीं किया है...जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की सरकार भी इसमें पीछे नहीं है। शोपियां केस में मेजर आदित्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना सेना का मनोबल गिराना नहीं था तो और क्या था? पहले सेना के काफिले पर हमला हुआ, फिर उनकी गाड़ियों को निशाना बनाया गया और जब आर्मी ने फायरिंग की तो मानवाधिकार के नाम पर महबूबा सरकार ने मेजर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। वैसे मेजर आदित्य के पिता की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ एफआईआर पर रोक लगा दी है लेकिन महबूबा के साथ सरकार में शामिल बीजेपी खामोश है।
जम्मू-कश्मीर की रक्षा में जी-जान से जुटे सैनिकों की महबूबा सरकार को कितनी परवाह है इसका पता तभी चल गया था जब घाटी में एक साथ 9000 से ज्यादा पत्थरबाजों के खिलाफ मुकदमे वापस ले लिए गए थे। महबूबा सरकार के फैसले से नाराज सेना के दो अफसरों के बच्चों ने तो मानवाधिकार आयोग का दरवाजा भी खटखटा दिया है। दो रिटायर्ड कर्नल और एक रिटायर्ड नायब सूबेदार के बच्चों ने अपनी याचिका में कहा कि दूसरे देशों में सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करने पर सख्त सजा दी जाती है तो फिर भारत में क्यों नहीं? बच्चों ने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर वहां सैनिकों पर पत्थरबाजी होती है तो जिम्मेदार व्यक्ति को आजीवन कारावास तक हो सकती है, इजरायल में सेना पर पत्थरबाजी करने पर 20, न्यूजीलैंड में 14, ऑस्ट्रेलिया में 5 और इंग्लैंड में 3 से 5 साल की सजा मिलती है तो फिर भारत में सैनिकों के साथ ऐसा बर्ताव क्यों?
पिछले महीने सेना दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था कि भारत का हर नागरिक इसलिए चैन की नींद सोता है क्योंकि उसे मालूम है कि सीमा पर तैनात जवान देश की रक्षा कर रहे हैं। काश! भागवत जैसे लोग इस बात को समझ पाते।
-मनोज झा
(लेखक एक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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