दावोस में डंका तो बजा दिया लेकिन हकीकत भी तो देख लीजिए
दावोस में जब प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट के साथी विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक में भारत की आर्थिक तरक्की का बखान कर रहे थे ठीक उसी दौरान ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट ने दुनिया के सामने हमारे देश की पोल खोल दी।
दावोस में जब प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट के साथी विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक में भारत की आर्थिक तरक्की का बखान कर रहे थे ठीक उसी दौरान ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट ने दुनिया के सामने हमारे देश की पोल खोल दी। दावोस में सालाना बैठक के दौरान ऑक्सफेम ने देश की आय में असमानता की चिंताजनक तस्वीर पेश कर दुनिया को हैरान कर दिया। ऑक्सफेम ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में 73 फीसदी संपत्ति पर 1 फीसदी लोगों का कब्जा है। रिपोर्ट में कहा गया कि साल 2017 में 17 नए अरबपति बने हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जो मेहनत कर रहे हैं, कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी का काम कर रहे हैं, वो अपने बच्चों की शिक्षा से लेकर परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मुट्ठी भर लोग देश की अपार संपत्ति पर कब्जा जमाए बैठे हैं। अमीर और गरीब के बीच ये बढ़ती खाई भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के मुंह पर तमाचा है।
वैसे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऑक्सफेम की रिपोर्ट को लेकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। लेकिन क्या इसके लिए सिर्फ मोदी सरकार ही जिम्मेदार है। जी नहीं ..इसके लिए वो तमाम सरकारें जिम्मेदार हैं जिन्होंने अपनी नीतियों से अमीर को और अमीर बना दिया और गरीब को और गरीब। बीजेपी की सरकार हो या फिर कांग्रेस की...सभी ने देश की गरीब जनता को आंकड़ों की बाजीगीरी में उलझाने का काम किया है। आईएमएफ की मानें तो इस साल भारत की जीडीपी 7.4 फीसदी की रफ्तार हासिल कर लेगी...लेकिन इसका फायदा देश की गरीब जनता को नहीं मिलने वाला।
मैं जिस सोसायटी में रहता हूं वहां एक शख्स लोगों की गाड़ियां चमकाने का काम करता है...रोज कार की सफाई...इसके बदले उसे हर वाहन मालिक से महीने का 300 रुपया मिलता है। बिहार से मजदूरी करने आया शख्स रोज सुबह अपनी पत्नी के साथ मिलकर लोगों की कार साफ करता है...शनिवार और रविवार को दोनों का पूरा दिन इसी काम में निकल जाता है....मैंने जब उससे बात की तो पता चला कि वो महीने में करीब 14 हजार रुपए कमा लेता है। वो किराए के घर में रहता है...उसके तीन बच्चे हैं...जरा सोचिए उसका कैसे गुजारा होता होगा।
कभी मंदिर पर फूल बेचने वाले से जाकर बात कीजिए....रोजाना 300 रुपए कमाने में उसे कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं ये वही जानता है। दिल्ली के आईटीओ चौराहे पर सड़क किनारे जूते-चप्पल सिलने वाले से जाकर पूछिए...वो यही कहेगा कि उसकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया। सवाल उठता है कि क्या देश में अमीर और गरीब की खाई कभी मिट पाएगी? स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे नारे सुनने में अच्छे लगते हैं...लेकिन देश का भला तभी होगा जब जमीनी स्तर पर काम हो। आजादी के बाद से देश में गरीबी मिटाने के लिए सरकार की ओर से कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी करीब 40 फीसदी जनता दाने-दाने के लिए मोहताज है।
इस देश में किसानों की दशा किसी से छिपी नहीं है....हकीकत यही है कि कुछ राज्यों में कर्जमाफी के बाद भी किसानों की खुदकुशी का सिलसिला जारी है। एक तरफ सेंसेक्स ने नई ऊंचाई छू ली दूसरी तरफ पेट्रोल और डीजल के दाम में आग लगी है। मुंबई में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 80 रुपए पहुंच गयी लेकिन इस पर पद्मावत की तरह कोई हो-हल्ला नहीं मचा। पहले नेताओं और बुद्धजीवियों की दलील होती थी कि पेट्रोल-डीजल के दाम से आम लोगों पर असर नहीं पड़ता। लेकिन आज मध्यम वर्ग का एक बड़ा हिस्सा इससे सीधे-सीधे प्रभावित हो रहा है। मोदी सरकार को सत्ता में आए करीब साढ़े तीन साल हो गए और देश की जनता को अब भी अच्छे दिन का इंतजार है।
मनोज झा
(लेखक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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