मध्य प्रदेश में युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिवराज सरकार ने अभिनव पहल की
युवाओं को हुनरमंद बनाना और उन्हें स्वरोजगार के लिए तैयार करना, आज के समय की आवश्यकता है। देश-प्रदेश में युवाओं की ऐसी बड़ी संख्या है, जिनके पास कोई रोजगार नहीं है। रोजगार के अभाव में युवाओं में असंतोष की भावना भी है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहलकदमी पर सरकार ने ‘मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना’ की नींव रखी है। सरकार का उद्देश्य है कि इस योजना के आधार पर ‘आत्मनिर्भर युवा-आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश’ की सुंदर इमारत खड़ी हो। नि:संदेह, युवाओं के हाथ में हुनर होगा, तो वे राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में आगे बढ़कर आहुति देंगे। आज प्रदेश ही नहीं, अपितु देश की सबसे बड़ी ताकत हमारी युवा जनसंख्या है। भारत दुनिया का सबसे अधिक युवा जनसंख्या का देश है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट-2023’ के अनुसार, भारत में 26 प्रतिशत जनसंख्या का आयुवर्ग 10 से 24 साल है। वहीं, सबसे ज्यादा 68 प्रतिशत आबादी 15 से 64 वर्ष के आयुवर्ग में है। एक ओर यह सुखद तथ्य है, तो दूसरी ओर इस युवा शक्ति का सही दिशा में उपयोग करने की कठिन चुनौती भी हमारे सामने है। कोई युवाओं को ‘बेरोजगारी भत्ता’ देने की बात कह रहा है, तो कोई अन्य प्रकार से बहलाने की कोशिश कर रहा है, ऐसे सभी प्रकार के विमर्शों के बीच मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने ‘मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना’ के रूप में सराहनीय एवं अनुकरणीय पहल की है।
यह मानने के अनेक कारण उपलब्ध हैं कि ‘बेरोजगारी भत्ता’ युवा शक्ति की धार को कुंद कर सकता था। युवाओं के हाथ में केवल चार-पाँच हजार रुपये देने से स्थायी समाधान नहीं निकल सकता था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार ने अच्छा निर्णय लिया कि युवाओं को उनकी रुचि का काम सिखाकर, उनके हाथों को सदा के लिए सशक्त कर दिया जाए। युवाओं को प्रशिक्षण के दौरान उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर 8 हजार से 10 हजार रुपये तक का आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया जाएगा। अर्थात् युवा हुनर सीखने के साथ भी कमाएगा और सीखने के बाद तो उसकी कमाई के अनेक रास्ते खुल ही जाने हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह कहना उचित ही है- “बेरोजगारी भत्ता बेमानी है। नई योजना, युवाओं में क्षमता संवर्धन कर उन्हें पंख देने की योजना है, जिससे वे खुले आसमान में ऊँची उड़ान भर सकें और उन्हें रोजगार, प्रगति और विकास के नित नए अवसर मिलें”।
युवाओं को हुनरमंद बनाना और उन्हें स्वरोजगार के लिए तैयार करना, आज के समय की आवश्यकता है। देश-प्रदेश में युवाओं की ऐसी बड़ी संख्या है, जिनके पास कोई रोजगार नहीं है। रोजगार के अभाव में युवाओं में असंतोष की भावना भी है। सरकार ने अनेक प्रकार से युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयत्न किए हैं, इनमें शासकीय एवं निजी क्षेत्र की नौकरियों से लेकर युवा उद्यमियों के स्टार्टअप को ऋण देने तक की व्यवस्थाएं हैं। इसके बाद भी बड़ी संख्या में ऐसे युवा रह जाते हैं, जिनको काम की आवश्यकता तो है लेकिन उनके पास कोई हुनर नहीं है। मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना के अंतर्गत युवाओं को कौशल सिखाने के लिए 703 कार्य क्षेत्र चिह्नित किए गए हैं, जिनमें इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, सिविल, प्रबंधन, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट से लेकर मार्केटिंग, होटल मैनेजमेंट, टूरिज्म, ट्रेवल, अस्पताल, आईटी सेक्टर और सेवा क्षेत्र शामिल हैं। एक महत्व की बात यह है कि जो भी युवा इस योजना के अंतर्गत पंजीयन कराएंगे, उन्हें खानापूर्ति प्रशिक्षण नहीं दिया जाएगा अपितु वर्तमान समय में इंडस्ट्री की माँग के अनुरूप ही प्रशिक्षण मिलेगा। सरकार प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ अनुबंध कर रही है, ताकि युवाओं को उन्हीं संस्थानों में व्यवहारिक प्रशिक्षण मिले। इससे युवाओं के लिए दोहरे अवसर बनेंगे। युवा जिन संस्थाओं में प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे, बहुत हद तक संभव है कि प्रशिक्षण उपरान्त उन्हीं संस्थानों में युवाओं को काम का अवसर भी मिल जाए।
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उल्लेखनीय है कि इस महती योजना का पहला चरण 7 जून से शुरू हो जाएगा, जिसके तहत युवाओं को प्रशिक्षण देने वाले संस्थानों का पंजीयन किया जाएगा। दूसरे चरण में 15 जून से काम सीखने के इच्छुक युवाओं का पंजीयन शुरू किया जाएगा और तीसरे चरण में 15 जुलाई से प्लेसमेंट शुरू होगा। युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाली इस योजना के अंतर्गत एक अगस्त से युवा कार्य आरंभ कर देंगे। शासकीय योजनाओं की समीक्षा करनेवाले विशेषज्ञ भी इस योजना को क्रांतिकारी पहल मान रहे हैं। उनका भी यही मानना है कि मुफ्त में पैसा देकर युवाओं की आदत बिगाड़ने की अपेक्षा उनको पैरों पर खड़ा होना सिखाने वाला यह नवाचार स्वागतयोग्य है।
देश-प्रदेश के युवाओं की सराहना करना होगी कि उन्हें भी बिना परिश्रम की कमाई का लोभ नहीं है। याद हो, पिछले लोकसभा चुनाव के पूर्व प्रत्येक व्यक्ति को ‘बेसिक इनकम’ देने का सपना दिखाया गया था। परंतु युवाओं ने इस विचार को नकार दिया क्योंकि वह हुनर सीखना चाहता है, अपने कौशल से आजीविका कमाना चाहता है। युवाओं को यह समझ है कि मुफ्त की कमाई के लिए देश और समाज को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। हमें याद रखना चाहिए कि स्विट्जरलैंड के नागरिकों ने भी ‘बिना काम किए घर बैठकर वेतन प्राप्त करने के विचार’ को नकार कर दुनिया के सामने श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया है। वर्ष 2016 के आसपास जब दुनिया में यह बहस चल रही है कि रोजगार की कमी, गरीबी और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए घर बैठे प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम और एक समान वेतन दिया जाना चाहिए, उस वक्त में स्विट्जरलैंड के स्वाभिमानी नागरिकों ने इस विचार को खारिज कर संदेश दिया है कि इस व्यवस्था से समस्याएं सुलझने की जगह और अधिक उलझ जाएंगी। डेनियल और एनो ने स्विट्जरलैंड में यूनिवर्सल बेसिक सैलरी का अभियान शुरू किया था। उनके प्रस्ताव के अनुसार, स्विट्जरलैंड का प्रत्येक नागरिक या वहाँ पाँच साल से नियमित रहने वाला व्यक्ति सम्मानपूर्वक अपना भरण-पोषण कर सके, इसके लिए बच्चों को करीब 42 हजार रुपये और बड़ों को एक लाख 71 हजार रुपये प्रति महीना न्यूनतम वेतन दिया जाना चाहिए। स्विट्जरलैंड सरकार ने जब बेसिक सैलरी के प्रस्ताव पर जनमत संग्रह (मतदान) करवाया तब 77 प्रतिशत नागरिकों ने स्पष्ट संदेश दिया कि मुफ्त का पैसा देश, समाज और व्यक्ति यानी किसी के लिए भी ठीक नहीं है।
मध्यप्रदेश के संदर्भ में एक आंकड़े के अनुसार, लगभग 37 लाख शिक्षित बेरोजगार हैं। हालाँकि सबको बेरोजगार कहना उचित नहीं होगा क्योंकि इनमें से बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है, जो अभी भी उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और ऐसे भी युवा इसमें शामिल हो सकते हैं, जो अपने वर्तमान काम से संतुष्ट नहीं होंगे। कुल मिलाकर कहना होगा कि प्रदेश सरकार के सामने बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार दिलाने या उन्हें रोजगार का सृजन करने के लिए दक्ष करने की महती जिम्मेदारी है। संतोषजनक बात यह है कि अपनी जिम्मेदारी को भली प्रकार समझकर, युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, सरकार ने ठीक दिशा में ठोस कदम उठाना शुरू कर दिया है। जो युवा सरकारी सेवा में जाना चाहते हैं, उनके लिए भी यह सरकार अवसर उपलब्ध करा रही है। सरकार की ओर से एक लाख पदों पर भर्ती की प्रकिया संचालित की जा रहा है।
यहाँ उल्लेख करना आवश्यक होगा कि युवाओं को प्रशिक्षण देकर रोजगार से जोड़ने के उद्देश्य से शिवराज सरकार मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भारत का सबसे बड़ा ‘संत रविदास ग्लोबल स्किल पार्क’ का निर्माण करा रही है। लगभग 1 हजार 548 करोड़ रुपये की लागत से सिंगापुर के तकनीकी परामर्श एवं सहयोग से इसका निर्माण 30 एकड़ क्षेत्र में किया जा रहा है। ग्लोबल स्किल पार्क के प्रारंभ में 6 हजार युवाओं को रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण दिया जाएगा, बाद में हर साल करीब 10 हजार युवाओं को प्रशिक्षण देकर रोजगार से जोड़ने का लक्ष्य राज्य सरकार ने निर्धारित किया है। समग्र दृष्टि से सरकार के प्रयासों का मूल्यांकन करें, तब स्पष्ट दिखाई देता है कि आत्मनिर्भर भारत और आत्म निर्भर मध्यप्रदेश की संकल्पना को साकार करने के लिए शिवराज सरकार कौशल उन्नयन के माध्यम से युवाओं को दक्ष बनाने के लिए साथ ही उद्यमिता की ओर प्रोत्साहित कर रही है। यदि युवा उद्यमिता को अपनाते हैं, तब प्रदेश में रोजगार के अवसरों का तेज गति से सृजन होगा। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना संकल्प भी व्यक्त किया है- “स्व-रोजगार के हमारे प्रयास निरंतर जारी हैं। प्रतिमाह रोजगार दिवस का आयोजन किया जा रहा है। हमारा संकल्प है कि युवाओं को बेरोजगार नहीं रहने देंगे”। उनके इस संकल्प को पूरा करने में ‘मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना’ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
-लोकेन्द्र सिंह
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।)
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