गाँधीवादियों के पाखंड से दूर रहें, गाँधी को समझना है तो संघ की शाखा में आएँ
गाँधी को आज के समय में समझना हो तो संघ के स्वयंसेवक के साथ सेवा बस्तियों में जाइये, शाखा में देशभक्ति के गीत गाइये, संघ प्रेरित गौशालाओं में गौ सेवा करिये और विद्या भारती के विद्यालयों में राष्ट्रभक्ति के उपक्रम देखिये।
गाँधी का अर्थ उनके जीवन सन्देश की हिन्दू धर्म में गहरी जड़ों और उनके बारे में विश्व्यापी समझ से आत्मसात किया जा सकता है।
विडम्बना यह रही कि गाँधी को भारत विभाजन की त्रासदी और उसके परिणाम स्वरूप उद्ध्वस्त हुए लाखों हिन्दुओं की मर्मान्तक पीड़ा से जोड़ कर देखने के कारण अनेक भारतीयों के मन में गाँधी बहुत नीचे चले गए और उनको लगा कि गाँधी को अंग्रेजों तथा कांग्रेस के प्रचार तंत्र ने आवश्यकता से अधिक तूल दे दिया। गाँधी से बढ़ कर स्वतंत्रता के लिए कार्य किया सुभाष बोस ने, लाल-बाल-पाल की त्रयी ने। श्री अरविन्द और हेडगेवार के स्वयंसेवकों ने। ऐसे अनेक असंख्य सामान्य भारतीय रहे जिन्होंने अपरिमित बलिदान दिये लेकिन यह भी सत्य यह है कि महापुरुषों, महान कृत्य करने वाले व्यक्तियों की आपस में तुलना नहीं करनी चाहिए। हर व्यक्ति अपने विचार के अधीन कार्य करता है, एक से ध्येय के लिए अनेक व्यक्ति अनेक मार्गों से कार्य करते हुए उस लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग सुगम बना देते हैं। उन सबको अपनी दृष्टि और विचार की तुला पर तौलना उस व्यक्ति, ध्येय और समाज के प्रति अन्याय होता है। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अभी पहलुओं पर विचार करते हुए सुविचारित तौर पर गाँधी को प्रातःस्मरणीय माना और अपने प्रातः स्मरण में गाँधी को सम्मानजनक स्थान दिया।
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सत्य के प्रति निष्ठा, अपरिग्रह, सादा, सरल, हिन्दू वानप्रस्थ जैसी जीवन शैली, राम नाम और राम राज्य के प्रति जीवन पर्यन्त अविचल निष्ठा, प्रखर राष्ट्रभक्ति, विलास और जीवन के भौतिक सुखों के प्रति निरासक्ति, बड़ी से बड़ी सत्ता का सामना करने और झुकाने की अपनी एक मूलतः भारतीय धर्म और उसके विभिन्न आयामों में प्रकट हुयी है, कभी अतिरेकी भाषा, असंयमित अशालीन शब्द हिंसा में विश्वास नहीं रखा, मातृभूमि की सेवा को हिन्दू धर्म में अपनी अगाध निष्ठा से कभी पृथक नहीं किया, अपने कार्य, आंदोलनों और संघर्ष के लिए एक स्पष्ट रूप से विशिष्ट भाषा और शैली का निर्माण, स्वयं के प्रत्रि कठोर, दूसरों के प्रति मृदुल, सम्पूर्ण भारत की आत्मिक और भाषिक एकता के लिए देवनागरी लिपि का आग्रह और स्वय में गुजराती को देवनागरी में लिखना प्रारम्भ किया, गाय, शाकाहारी भोजन पर जोर, ईसाई धर्मांतरण का हर प्रकार से विरोध, भारत में भारतीय विकास का ही प्रयोग सफल होगा और भारतीयता को जीवित रखेगा यह मान्यता प्रचारित करते हुए ग्राम स्वराज्य की अवधारणा पर बल- उसका व्यापक प्रयोग और अपने व्यवहार और विचार से विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, बाबा आम्टे, ठक्कर बापा, नटवर ठक्कर और तमिलनाडु, आंध्र, केरल, कर्नाटक जैसे अनेक प्रांतों में बड़ी संख्या में ऐसे सामजिक-राजनीतिक नेताओं का अभ्युदय संभव किया जो आज भी 'गांधीवादी' के अलंकरण से जाने जाते हैं।
आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया, कांग्रेस के नेता की रूप में भी कार्य किया, गाँधी के विचारों और कार्यों की अनुपालना की, गौसेवा और गौरक्षा के आंदोलन किये और प्रखर राष्ट्रभक्ति के अधिष्ठान पर हिन्दू जीवन मूल्यों के प्रति अविचल निष्ठा के साथ उनके संरक्षण और संवर्धन के लिए अहिंसक लोकतान्त्रिक अनुशासित जनसंगठन तैयार किया जो आज विश्व भर में अपनी विशिष्टता के लिए जाना जा रहा है। इसी आंदोलन ने अहिंसक जनक्रांति और लोकतान्त्रिक पद्धति के माध्यम से देश को दो यशस्वी तथा वैश्विक सम्मान प्राप्त करने वाले प्रधानमंत्री दिए। यह है भारतीय जीवन मूल्यों की महान विजय गाथा जिसमें पूर्णतः गाँधी प्रतिबिंबित होते हैं।
गाँधी ने भारत को नवीन पहचान और सम्मानजनक स्वीकार्यता दी। आज जहाँ भी विश्व में हम जाते हैं तो गाँधी के देश से आये हुए कह कर हमारा परिचय होता है- यह वैसा ही है जैसे कोई अमेरिका के बारे में अब्राहम लिंकन और थॉमस जेफर्सन से परिचय करवाए या अफ्रीकी नागरिकों की पहचान को नेल्सन मंडेला से अभिव्यक्त करे।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भगवा ध्वज के प्रति अविचल निष्ठा रखते हुए उन सभी जीवन मूल्यों के प्रति आस्थवान रहते हैं जिनको गाँधी ने अपने जीवन में जिया। हर स्वयंसेवक राष्ट्रभक्ति को अपने जीवन की सबसे बड़ी आस्था मानता है, राष्ट्रभक्ति ले हृदय में हो खड़ा यह देश सारा उसके लिए मनसा वाचा कर्मणा जीवन निर्देशित करने वाला मंत्र है। समाज के अभ्युदय और विकास के लिए एक हज़ार वर्षों में पहली बार संन्यासी का गेरुआ वस्त्र न पहनते हुए भी संन्यस्त जीवन जीने वाले प्रचारकों की परंपरा नवीन बहरत में चिरंतन मूल्यों की स्थापना का नया गाँधी शैली का ही उपक्रम है। संघ के अधिकारियों और प्रचारकों ने अपनी जीवन शैली के उदाहरण से ही लाखों करोड़ों हिन्दुओं का जीवन और उनकी जीवन दृष्टि बदली है। पुस्तकों का स्थान बाद में आता है, शाखा पद्धति गाँधी के खादी और चरखे की तरह जीवन शैली और विचार परिवर्तन का सामान्यतम नागरिक को स्पर्श करने वाला आंदोलन है। गाँधी और उनके अनुयायियों की एक विशिष्ट शैली थी, जिनसे ही वे पहचान में आ जाते थे। संघ के स्वयंसेवकों की भी एक विशिष्ट वेशभूषा, गणवेश और व्यवहार शैली है जिससे वे सबसे अलग अपनी विशिष्टताओं से पहचान में आ जाते हैं। गौ, स्वदेशी, संयमित आरोग्य वर्धक जीवन शैली, राष्ट्रीय विषयों पर हिमालय समान दृढ़ता, शब्द संयम, सभी मतावलम्बियों के साथ भारत भक्ति के मूल अधिस्थान पर मैत्री और सहयोग का भाव, स्वदेशी मूल्यों पर आधारित शिक्षा का विश्व मैं सबसे बड़ा विद्या भारती उपक्रम, दीं हीं अस्पृश्यता के दंश से आंक्रांत अनुसूचित जातियों के मध्य समरसता का अभियान। पिछड़े भटके विमुक्त जनजातियों के बीच विशेष समरसता का कार्य, भारतीय जनजातियों के मध्य जीवन दानी पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं के तप से विकास और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ उनको ईसाई धर्मान्तरण के कुचक्र से बचाने का राष्ट्रव्यापी अभिक्रम जिसमें जगह-जगह पर वनवासी सेवा में जुटे कार्यकर्ता ठक्कर बापा के ही प्रतिरूप हैं।
गाँधी स्वराज और स्वदेशी के पक्षधर थे, स्वयंसेवक भी स्वदेशी और ग्रामीण भारत के सतरंगी भारतीय जीवन पक्ष के समर्थक और उन्नायक हैं। गौ के प्रति श्रद्धा और गोवंश की रक्षा के लिए सन्नद्ध और सक्रिय रहता है।
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गाँधी को गांधीवादियों के पाखंड से दूर रखकर देखने की जरूरत है। गाँधी का सर्वाधिक मजाक उन लोगों ने उड़ाया जो खुद को गांधीवादी कहते रहे, खादी के नीचे पॉलीस्टर का भ्रष्ट विचार पालते रहे। राम का विरोध, गौहत्या का समर्थन, ईसाई धर्मान्तरण को प्रोत्साहन, हिन्दू जीवन मूल्यों का उपहास, हिन्दू संतों और वैष्णव सनातन धर्म सम्पदा पर आघात, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के मध्य विषैले प्रचार और उनमें जिहादी-वामपंथी-जेसुइटीकरण की हिन्दू विरोधी धारणाओं का प्रचार- यह सब कांग्रेस ने गांधी की फोटो लगाकर किया।
गाँधी को आज के समय में समझना हो तो संघ के स्वयंसेवक के साथ सेवा बस्तियों में जाइये, शाखा में देशभक्ति के गीत गाइये, संघ प्रेरित गौशालाओं में गौ सेवा करिये, विद्या भारती के विद्यालयों में राष्ट्रभक्ति के उपक्रम देखिये, वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ताओं के साथ नागालैंड, अरुणाचल, छत्तीसगढ़, राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में नवीन कुशल कुशाग्र वीर हिन्दू जनजातियों के उत्साह और विक्रम को सराहिये, तब गाँधी समझ में आ जायेंगे।
गाँधी जी को एक व्यक्ति, एक राजनीतिक कार्यकर्ता या नेता अथवा कांग्रेस के चश्मे से देखना भूल होगी। हिन्दू जीवन मूल्यों के लिए असंख्य लोगों ने अपनी-अपनी समझ और शक्ति के बल पर कार्य किया, गाँधी उनमें से एक, और हमारे समय के सर्वाधिक लोकप्रिय, वैश्विक स्वीकार्यता वाले महापुरुष थे। उनको शत शत नमन।
जी हाँ गाँधी को समझना हो तो संघ की शाखा में आईए।
-तरुण विजय
(लेखक पूर्व राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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