ऑड−इवन के बावजूद सड़कों पर बढ़ी गाड़ियां और प्रदूषण

विजय गोयल । May 7 2016 11:05AM

प्रदूषण जांचने वाली कम्पनियों की रिपोर्ट आई कि प्रदूषण कम नहीं हुआ, ट्रैफिक कुछ कम हुआ और अगले ऑड−इवन को चालू करने में केजरीवाल सरकार ने अपनी पीठ थपथपाते हुए करोड़ों रूपया विज्ञापनों पर खर्च कर दिया।

राजा नंगा है− बचपन में एक कहानी सुनी थी। एक राजा को नए−नए कपड़े पहनने का बहुत शौक था। दो लोगों ने उनको मूर्ख बनाया और कहा कि हम आपके ऐसे कपड़े बनाएंगे, जो आज तक किसी ने देखे नहीं होंगे, पर ये उन्हें नहीं दिखाई देंगे, जो बेवकूफ होंगे। यह बात शहर में फैल गई। महीनों की मेहनत के बाद उन्होंने राजा के पुराने कपड़े उतारकर, जो नए कपड़े पहनाए, वह खुद राजा को ही दिखाई नहीं दिए, पर राजा ने इस डर से कि अगर मैं बोलता हूं कि मुझे कपड़े दिखाई नहीं दे रहे तो मैं बेवकूफ कहलाऊंगा, कहा कि वाह! क्या कपड़े पहनाए हैं। राजा ने मंत्री और सभासदों से पूछा तो उन्होंने भी यही कहा, वाह! क्या शानदार कपड़े हैं।

राजा हाथी पर बैठकर, नए कपड़े पहन नगर भ्रमण के लिए गया और पूरे शहर में जुलूस निकाला गया। सारी प्रजा कहने लगी, वाह! क्या कपड़े हैं, वाह! क्या कपड़े हैं। पर छत पर एक छोटा−सा बच्चा खड़ा था, वह चिल्लाया, अरे! राजा तो नंगा है।

इसी तरह से केजरीवाल सरकार की ऑड−इवन स्कीम के बारे में भी सारे लोग देख रहे हैं कि ऑड−इवन के नाम पर लूट मची हुई है, लोग परेशान हैं। मेट्रो और बसों में लोग धक्के खा रहे हैं, ओबर, ओला वाले लूट रहे हैं और थ्रीव्हिलर वाले भी मीटर से न चलने के सौ बहाने कभी गैस खत्म तो कभी कुछ और बहाना बनाकर लोगों को परेशान कर रहे हैं। सड़कों पर तीस प्रतिशत वाहन बढ़ गए हैं और खुद दिल्ली का मुख्यमंत्री भ्रमित है, दो हजार रूपए के चालान का आतंक मचा हुआ है। ऐसा लगता है मानो इमरजेंसी लगी हुई है। प्रदूषण कम होने की जगह बढ़ गया है। पर एक वातावरण बन गया है, मानो ऑड−इवन से प्रदूषण और ट्रैफिक जाम कम हो जाएगा, दोनों ही कम होने का नाम नहीं ले रहे। देखना यह है कि छत पर से कौन−सा बच्चा चिल्लाएगा कि राजा नंगा है−ऑड−इवन फेल है। 'एक आदमी के खुलकर बोलने भर की देर है कि जनता सड़कों पर आकर चिल्लाएगी, राजा नंगा है, राजा नंगा है, यानी कि ऑड−इवन फेल है, ऑड−इवन फेल है। 
 
तथ्यों पर जाइए, आप। नया−नया ऑड−इवन जनवरी में लगा था, इसमें केवल कारों पर रोक लगाई गई, जिनसे प्रदूषण 10 प्रतिशत से भी कम होता है। लोग ट्रैफिक और प्रदूषण से बेहद त्रस्त थे। मन में सबने यह सोचा कि शायद हमारे सहयोग से यह ऑड−इवन स्कीम सफल हो जाए तो आगे आने वाली पीढ़ी को राहत मिल जाएगी। सरकार ने बड़ी चतुराई से स्कूलों की छुटि्टयों में इसे लागू किया और प्रचार कर दिया कि ऑड−इवन स्कीम सफल हो गई। उसका पहला कारण था, स्कूल की छुटि्टयां, दूसरा कारण लोगों का घरों से न निकलना, तीसरा कारण पन्द्रह दिन किसी तरह से गुजार लेंगे और चौथा कारण था कि जिनके पास एक गाड़ी थी, वह परेशान थे, दो गाड़ी वाले मजे में थे।

प्रदूषण जांचने वाली कम्पनियों की रिपोर्ट आई कि प्रदूषण कम नहीं हुआ, ट्रैफिक कुछ कम हुआ और अगले ऑड−इवन को चालू करने में केजरीवाल सरकार ने अपनी पीठ थपथपाते हुए करोड़ों रूपया विज्ञापनों पर खर्च कर दिया। 'दिल्ली बोले दिल से, ऑड−इवन फिर से। '

ऑड−इवन 2 में सब लोग यह सोच रहे थे कि अपने आने−जाने का प्रबंध कर लूंगा या दूसरी गाड़ी खरीद लूंगा। बाकी पब्लिक अपनी कार सड़क पर नहीं लाएगी, वह बस और मेट्रो में धक्के खाएगी, तो मुझे तो ट्रैफिक कम मिलेगा। जैसा कि ऑड−इवन स्कीम−2 में दो कार वालों को मजा आ रहा है। उनको लगता है कि जिनके पास एक गाड़ी है, वह तो अपनी गाड़ी ला नहीं पा रहा तो मुझे ट्रैफिक कम मिल रहा है। दूसरी तरफ लोग यह समझे बैठे हैं कि स्कीम चल रही है तो प्रदूषण कम हो ही रहा होगा। जबकि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को साफ कहा है कि प्रदूषण घटा नहीं, बल्कि बढ़ा है और आईआईटी दिल्ली ने भी यही कहा है। सभी मीडिया ने कहा है कि जगह−जगह पर ट्रैफिक जाम लगा हुआ है। पीएम 10 और पीएम 2.5 के उतार−चढ़ाव कोई हैं भी तो वह मौसम और हवा के रूख में बदलाव की वजह से हैं न कि ऑड−इवन− 2 की वजह से।

लोग कहते हैं कि आतंक और बंदूक की नोक पर इसे लागू करने की कोशिश की गई। सवेरे−सवेरे निकल कर अगर आप अपने दफ्तर आठ बजे तक नहीं पहुंचे तो रास्ते में चालान का डर, वह भी दो हजार रूपए का। हेलमेट जिसके न लगाने के कारण जान जोखिम में होती है, उसका चालान दो सौ रूपए है। पहले ही दिन लोगों में आतंक मचाने के लिए 1311 चालान काट दिए गए और अब तक साढ़े चार हजार से भी अधिक चालान काटे गए हैं। अगर दिल्ली बोले दिल से था तो चालान दो सौ−तीन सौ रूपए का रखते, तब पता चलता कि दिल्ली बोले दिल से है या दिल्ली डरी बिल से।

मैंने एक अखबार में कार के पीछे एक स्टीकर लगा देखा कि मैं ऑड−इवन का पालन करता हूं क्योंकि मुझे फोर्स किया गया है। पता नहीं सरकार में कितना भ्रष्टाचार है, यह तो वक्त आने पर सामने आएगा। पहला जनता के टैक्स के करोड़ों रूपयों से विज्ञापन देना, दूसरा, ओबर, ओला के हाथों जनता को लुटवाना और तीसरा आगे के सपने ऑड−इवन−3 के सपनों को दिखाने के लिए डेढ़ साल बाद बसों की एप स्कीम लाना।

विषेशज्ञ कहते हैं कि पहले से ज्यादा कारें चल रही हैं, कारों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। ऑड−इवन स्कीम−2 में 30 प्रतिशत से ज्यादा कारों की बिक्री बढ़ गई, लोगों ने बड़ी संख्या में अपनी कारों में सीएनजी लगवाई है। स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्ट के ट्रांसपोर्ट विभाग के सर्वे ने बताया कि जनवरी के ऑड−इवन के मुकाबले में इस बार कारों की संख्या में बहुत बढ़ोत्तरी हुई है और तो और सड़े−गले स्कूटर भी सारे बिक गए। जैसा कि आपको ध्यान होगा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों ने एक बार अवैध निर्माणों के खिलाफ एक मुहिम चलाई थी। उनकी मुहिम चलाने से फायदा यह हुआ कि सारे मॉल, शॉपिंग सेंटर की दुकानें बिक गईं, पर थोड़े महीनों के बाद ही अवैध निर्माण वैध हो गए और उसके साथ−साथ दस गुणा अवैध निर्माण और हो गए। कुछ लोग कहते हैं कि मॉल वालों की मिलीभगत से ऐसा हुआ।

मेरी सबसे बड़ी चिन्ता ऑड−इवन स्कीम के बारे में है कि दिल्ली सरकार ने जो यह घोषणा कर दी है कि हर महीने पन्द्रह−पन्द्रह दिन इसे लागू करेंगे। यह अगली बार लागू हो या न हो, पता नहीं। पर लोगों ने दूसरी कारें खरीद ली हैं या खरीद लेंगे और बाद में यह स्कीम लागू न हुई तो लेने के देने पड़ जाएंगे और जितना ट्रैफिक ऑड−इवन लागू होने से पहले था, उससे दोगुना ट्रैफिक सड़कों पर आ जाएगा।

ऑड−इवन स्कीम को लूडो की तरह खिलाया जा रहा है। लोग सुबह सोकर उठते हैं, पासा फेंकते हैं और देखते हैं कि आज ऑड नंबर है या इवन। फिर अपनी गाड़ी निकालते हैं और यदि आज उनकी गाड़ी का नंबर नहीं है तो सोचते हैं कि आज दफ्तर कैसे जाएंगे, बच्चों को स्कूल कैसे छोड़ेंगे? आज जहां सोशल मीडिया का युग है, जिसमें आदमी−आदमी को जानता तक नहीं है, वह पड़ोसी से क्या कार पूलिंग क्या करेगा।

मजे की बात देखिए, आम आदमी पार्टी के नेता भी कैसे नाटक करते हैं, केवल ऑड−इवन के दिनों में ही मुख्यमंत्री कार पूलिंग करते हैं, सिसौदिया साइकिल पर जाते हैं, कपिल मिश्रा मेट्रो में जाते हैं। भई, आप अपने ऊपर इन्हें सारी जिन्दगी भर के लिए लागू करो, तब तो कुछ संदेश जाएगा। सोशल मीडिया ऑड इवन से भरी पड़ी है। लोग सवाल पर सवाल कर रहे हैं। ओबर, ओला भी लूट रही है, काली−पीली भी लूट रही है, ट्रैफिक पुलिस भी लूट रही है और दिल्ली सरकार भी लूट रही है। यदि आपके पास ऑड नंबर की गाड़ी है और दूसरी गाड़ी आप जाहिर सी बात है कि इवन नंबर की खरीदना चाहोगे तो उसके लिए आपसे बीस हजार रूपए ब्लैक में ले लिए जाएंगे।

जनता को ऐसा उलझा दिया गया है कि दिल्ली में पानी, बिजली, सड़क, सीवर, अनधिकृत कालोनी, गांव की समस्याएं ये सब लोग भूल गए हैं, काम पर कैसे जाएंगे, केवल इसी बात की चिन्ता है। हर आदमी आज यह सोचता है कि यदि वह विरोध करता है तो वह बेवकूफ कहलाएगा, इसलिए पहले दूसरों को कहने दो कि राजा नंगा है, फिर मैं कहूंगा कि ऑड−इवन फेल है।

एक अच्छी−खासी स्कीम जिसको दिल्ली की सरकार समूची नीति बनाकर, इसका ढांचा खड़ा करके, बसों और सार्वजनिक वाहनों का प्रबंध करके और प्रदूषण के अन्य कारणों पर जिनके कारण सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलता है, जैसे− रोड डस्ट, निर्माण के कारण, औद्योगिक धुंआ, कूड़े−कचरे को जलाने के कारण, बायोमैस आदि पर नियंत्रण करते तो यह ऑड−इवन स्कीम सफल होने की दिशा में जा सकती थी।

केवल अपना चेहरा चमकाने के लिए केजरीवाल सरकार ने इसे फेल हो जाने दिया और अब दिल्ली सरकार ने विपक्ष पर यह सारा आरोप लगा दिया कि भलस्वा जहांगीरपुरी लैंडफिल में आग भी उन्होंने लगाई, डीटीसी की बसों को भी उन्होंने खराब किया, सड़कों पर कुछ निश्चित जगह पर गाड़ियां खड़ी करके जाम करवा दिया, ऑटो की हड़ताल करवा दी। तभी मैं समझ गया था कि खुद केजरीवाल सरकार ने यह मान लिया है कि राजा नंगा है, ऑड−इवन स्कीम फेल हो चुकी है।

(लेखक भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद हैं)

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