बेहिसाब नकदी की बरामदगी ने कांग्रेस और कैश को पर्यायवाची शब्द बना दिया है
झारखंड में ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी कांग्रेसी नेता के यहां से नकदी बरामद की गयी है। इससे पहले कांग्रेस के कुछ विधायक बड़ी मात्रा में नकदी के साथ पकड़े गये थे तब दिखाने के लिए कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया था लेकिन जल्द ही पार्टी में उनकी बहाली भी हो गयी थी।
कांग्रेस के नेताओं ने 'चौकीदार चोर है' का नारा लगाया लेकिन यह नारा नहीं चला, कांग्रेस के नेताओं ने उद्योगपति गौतम अडाणी पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरना चाहा और 'मोदानी' नाम से अभियान चलाया लेकिन इस अभियान की हवा निकल गयी। जानते हैं क्यों? क्योंकि जनता जानती है कि कलियुग में 'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे' वाली कहावत ही चरितार्थ होती है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज प्रसाद साहू के परिसरों से नकदी के जो बंडल पर बंडल निकल रहे हैं वह इस बात की जरूरत पर भी बल दे रहे हैं कि 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाली कहावत को बदला जाये क्योंकि चोर अब डकैत बन चुके हैं और तिनका अब बड़ी-बड़ी तिजोरियों का रूप ले चुका है। झारखंड के कांग्रेस सांसद के यहां से बरामद हो रही नकदी सिर्फ टैक्स की चोरी नहीं है, यह सिर्फ गरीबों के हक का पैसा नहीं है, यह मध्यमवर्गीय परिवारों के हक पर भी कुठाराघात है जो समय पर सारी ईएमआई, कर और अन्य प्रकार के भुगतान करते हैं और बजट में जरा-सी राहत पाने का इंतजार करते रहते हैं।
देखा जाये तो मोदी सरकार जब भ्रष्टाचारियों के खिलाफ ईडी की छापेमारी करवाती है तो घमंडिया गठबंधन के सारे नेता एकत्रित हो जाते हैं और आरोप लगाते हैं कि लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। यही नहीं, ईडी के समन को तवज्जो नहीं देते हुए नेता चुनावी रैलियों के लिए निकल जाते हैं और कहते हैं कि मोदी सरकार हम पर अत्याचार कर रही है और हम ऐसे समन से डरने वाले नहीं हैं। लेकिन वक्त आ गया है कि भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के मन में कानून का डर पैदा किया जाये। सवाल उठता है कि यह लूट और डकैती नहीं तो क्या है कि राजनीतिज्ञों के घर से सामान्य बैंक ब्रांचों से ज्यादा कैश बरामद हो रहा है, राजनीतिज्ञों के घर से सुनार की दुकान से ज्यादा सोना बरामद हो रहा है और राजनीतिज्ञों के घर से बिल्डरों की भांति जमीन-जायदाद के तमाम कागजात बरामद हो रहे हैं? यह सब देखकर आम आदमी के दिल से यही निकल रहा है कि देश को लूटने वालों से पाई-पाई वसूलनी ही चाहिए।
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वैसे, झारखंड में ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी कांग्रेसी नेता के यहां से नकदी बरामद की गयी है। इससे पहले कांग्रेस के कुछ विधायक बड़ी मात्रा में नकदी के साथ पकड़े गये थे तब दिखाने के लिए कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया था लेकिन जल्द ही पार्टी में उनकी बहाली भी हो गयी थी। अब झारखंड में कांग्रेस सांसद के यहां से बरामद नकदी दर्शा रही है कि कांग्रेस और कैश पर्यायवाची शब्द होते जा रहे हैं। बात सिर्फ झारखंड की भी नहीं है। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ में महादेव एप मामले के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को 500 करोड़ रुपए से ज्यादा नकद देने की बात भी सामने आई थी। सवाल उठता है कि जब राज्यों में कांग्रेस इतने बड़े घोटालों के आरोपों के घेरे में आती है तो जरा कल्पना कीजिये कि केंद्र में उसके सत्ता में रहने के दौरान घोटालों की राशि का दायरा क्या रहता रहा होगा?
बहरहाल, देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही ही कहा है कि देशवासी इन नोटों के ढेर को देखें और फिर इनके नेताओं के ईमानदारी के 'भाषणों' को सुनें। आज कांग्रेस को शर्मसार होने की जरूरत है और अपने भ्रष्ट नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की जरूरत है। कांग्रेस के नेता दूसरों के लिए 'पे सीएम' या चालीस प्रतिशत कमीशन वाली सरकार या मोदानी जैसे अभियान चलाते हैं। इसलिए पार्टी को यह बताना चाहिए कि झारखंड में कांग्रेस सांसद से संबद्ध ठिकाने से जो नकदी बरामद हुई है उसको देखते हुए कांग्रेस के खिलाफ जनता को कैसा अभियान चलाना चाहिए या कांग्रेस को किस नये नाम से पुकारना चाहिए?
-नीरज कुमार दुबे
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