राहुलजी झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है, राजनीति का स्तर इतना मत गिराओ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ भाजपा के नहीं हैं। भारत की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ भाजपा सरकार की नहीं है, सेना का सम्मान सिर्फ भाजपा को ही नहीं करना है। यह कार्य सभी देशवासियों को करना है।
राहुल जी झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है, न हाथी है न घोड़ा है वहां तो पैदल ही जाना है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव में झूठ बोलते रहे और मंदिरों में भी जाते रहे। यह कितना विरोधाभास है। एक तरफ राफेल के मुद्दे पर पूरे देश में झूठ बोलते रहना, दूसरी ओर मंदिर जाकर सॉफ्ट हिंदुत्व का खिताब लेना महज नाटक ही कहा जाएगा। ऐसा कभी होता है क्या? ऐसा कभी नहीं होता। वे देश से तो झूठ बोलते रहे, वहीँ भगवान् के यहां भी झूठे मन से जाते रहे। अगर वे भगवान् को समझते तो राफेल मामले में देश के सामने झूठ नहीं बोलते। शायद राहुल जी ये भूल गए, वे इंसान को भ्रमित कर सकते हैं, पर भगवान् को भ्रमित करने का सामर्थ्य न तो उनमें है और न ही हम में है। भगवान् 'सत्यमेव जयते' में जीवित हैं।
उच्चतम न्यायालय ने राफेल के बारे में जो कहा, वह न केवल सुननीय है, बल्कि देश की एक-एक जनता को, घर घर जाकर भी समझाना पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ भाजपा के नहीं हैं। भारत की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ भाजपा सरकार की नहीं है, सेना का सम्मान सिर्फ भाजपा को ही नहीं करना है। यह कार्य सभी देशवासियों को करना है। राष्ट्र के ऐसे मसले राजनीति से ऊपर होते हैं। सत्य की हत्या किसी और हत्या से बड़ी हत्या कहलाती है। अन्य अपराध तो क्षम्य हो सकते हैं, पर राष्ट्रीय अपराध कभी क्षम्य नहीं हो सकता।
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देश की संसद में कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर देश की जनता के सामने न केवल झूठ बोला, बल्कि पूरे भारत को गुमराह भी किया। संसद के भीतर झूठ बोलने को देश की जनता किस रूप में लेगी? क्या हमें संसद में झूठ बोलना चाहिए? संसद में ही देश को चलाने के लिए कानून बनाये जाते हैं। इसे हम लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं। वहां बैठे संसदगण लोकतंत्र के पुजारी कहलाते हैं। क्या सांसद रूपी पुजारी को लोकतंत्र के मंदिर को झूठ के माध्यम से बदनाम करने का अधिकार है? क्या देश विचार करेगा कि सत्य बोलने की संवैधानिक शपथ लेकर संसद के भीतर झूठ बोलने वाले राहुल गांधी देश को इसका जवाब देंगे? कांग्रेस को उच्चतम न्यायालय पर भी कोई विश्वास नहीं है। तो किस पर विश्वास है? क्या भारतीय राजनीति का स्तर इतना गिर जाएगा? प्रधानमंत्री देश के होते हैं, दल के नहीं। नरेंद्र मोदी यदि अमित शाह के प्रधानमंत्री हैं तो राहुल गांधी के भी प्रधानमंत्री हैं। क्या कोई राहुल गांधी से पूछे कि आपका प्रधानमंत्री कौन है? क्या वे यह कहेंगे कि उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं है?
देश का प्रधानमंत्री भारत की प्रतिष्ठा है। संसद की आन है। संविधान की शान है। कांग्रेस अध्यक्ष को क्या यह कहना चाहिए कि देश का चौकीदार चोर है? अब वो बताएं कि उन्होंने जो कहा उसका कोई दस्तावेज तथा कोई प्रमाण उनके पास है? अगर था तो उसे उन्होंने उच्चतम न्यायलय में प्रस्तुत क्यों नहीं किया? सर्वोच्च न्यायलय के यह कहने के बाद भी कि 'हमने सभी प्रक्रियाएं और डील के सभी कागजात देखें हैं और हमें कहीं कोई गड़बड़ी नहीं दिखाई दी है', इसके बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अगर यह कहें कि हम तो जेपीसी की मांग कर रहे हैं, तो क्या यह कांग्रेस का उच्चतम न्यायलय पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना नहीं कहा जाएगा?
देश में अनेक लोकतांत्रिक पार्टी हैं, उसमे से अनेक यूपीए और एनडीए के भी घटक हैं। खासकर वे राजनीतिक दल जो कांग्रेस को समर्थन करते हैं उन्हें भी विचार करना चाहिए कि ऐसे झूठ बोलने वाली कांग्रेस पार्टी से वे पूछें कि राहुल गांधी ने देश के साथ झूठ क्यों बोला? अगर महागठबंधन की आस में बैठे ये राजनीतिक दल कांग्रेस अध्यक्ष से आकर ये सवाल नहीं पूछेंगे तो जनता ऐसे सभी दलों को कटघरे में खड़ा करेगी। राहुल गांधी के जीवन की राजनीतिक यात्रा में सबसे बड़ी भूल कोई हुई है, तो वह है राफेल डील के मामले में उनका देश के सामने झूठ बोलना।
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हम देश की जनता के साथ-साथ देश की जनता के सामने, एक मौलिक सवाल उठाना चाहते हैं। क्या भारत के प्रधानमंत्री, संसद और संविधान के दायरे में बंधे देश के सांसद द्वारा, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के इस तरह का राष्ट्रीय अपराध करने पर सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए? क्या देश की लोकसभा को संसद में देश का अहित करने वाले, झूठे बयान और विश्व में भारत को बदनाम करने वाले को संसद में तलब नहीं करना चाहिए? क्या उनकी सदस्यता समाप्त नहीं करनी चाहिए? मुझे लगता है कि उच्चतम न्यायलय की टिप्पणी को लेकर लोकसभा के स्पीकर को कांग्रेस अध्यक्ष से ये पूछना चाहिए कि आपने भरी संसद में झूठ बोलकर भारत की छवि धूमिल क्यों की? देश के सर्वोच्च न्यायलय को क्या यह अधिकार भी नहीं है कि सामान्य अखबारी आरोप के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाए और जब समय आये तो ना कोई तथ्य और न कोई दस्तावेज प्रस्तुत किये जाए तो कार्रवाई की जाए? क्या ऐसी याचिकाओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए? भारत में ये अब आवश्यक होता जा रहा है कि बिना तथ्यों के आरोप लगाने वालों पर भी लगाम लगाई जाए।
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लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं होता कि आप देश की संसद, संविधान, प्रधानमंत्री, भारत की सुरक्षा और देश की सेना के भावनाओं के साथ खिलवाड़ करें। यहां एक बात और सामने आती है कि क्या भारत के रक्षा मंत्रालय को यह नहीं चाहिए कि बिना किसी तथ्यों के उन्हें बदनाम करने वालों के खिलाफ अदालत में जाएं? यह तो सच है कि जनता जनार्दन होती है। मैं भविष्यवक्ता तो नहीं, पर अपनी दूरदृष्टि के आधार पर मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं की राहुल गांधी ने राफेल डील पर हाल ही में संपन्न पांचों राज्यों के चुनावों में भले ही लाभ ले लिया हो, लेकिन सर्वोच्च न्यायलय द्वारा राफेल डील पर दी गई टिप्पणी आगामी लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनेगा। मैं दीवार पर साफ़ देख रहा हूं की राफेल डील पर बोले गए झूठ से ना केवल राहुल फेल हुए, बल्कि पूरी कांग्रेस कहीं 2019 में फेल न हो जाए।
-प्रभात झा
(राज्यसभा सांसद व भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष)
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