नूपुर शर्मा तो बहाना हैं, दरअसल कुछ लोगों का मकसद देश में दंगे भड़काना है

Protest against Nupur
ANI
स्वदेश कुमार । Jun 13 2022 12:04PM

कोई वजह नहीं बनती है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव स्वयं तो हिन्दुओं की आस्था का मजाक उड़ाते घुमते रहें और नुपूर की गिरफ्तारी के लिए हो-हल्ला मचाएं, यदि गिरफ्तारी नूपुर शर्मा की होनी चाहिए तो बचना अखिलेश यादव, ओवैसी, रहमानी जैसे लोगों को भी नहीं चाहिए।

पैगम्बर साहब को लेकर कथित रूप से विवादित बयान देने वाली भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा, जिन्हें बीजेपी से निष्कासित करने के साथ उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की जा चुकी है, के खिलाफ मुसलमानों का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। अब यह गुस्सा साजिश है या सरकार को अपनी ताकत दिखाने का जरिया, यह तो दंगाई और उनके पीछे खड़ी देशद्रोही ताकतें ओवैसी, रहमानी, जमई जैसे मौलाना और वामपंथी और जेएनयू में मौजूद आजादी गैंग वाली ताकतें ही बता सकती हैं। कुछ दिनों पूर्व निजी चैनल पर डिबेट के दौरान नुपूर के कथित रूप से पैगम्बर साहब के निकाह को लेकर दिए गए बयान के खिलाफ पूरे देश में मुसलमान दो हिस्सों में बंट कर हिंसक हो गए हैं। मुसलमानों का एक धड़ा वह है जो अपने आप को कथित रूप से बुद्धिजीवी और इस्लाम का स्कॉलर कहता है, वह टीवी डिबेट और जगह-जगह मीटिंग और मजलिसें करके कम उम्र के युवाओं के जेहन में जहर घोलने का काम करता हैं तो दूसरा धड़ा इन युवाओं को सड़क पर हिंसा करने के लिए ढकेल देता है। यह वह युवक होते हैं जो मदरसे से कट्टरता का पाठ पढ़ते हैं और पढ़ाई-लिखाई के नाम पर इनके पास दिनी शिक्षा के अलावा कुछ नहीं होता है, यह दिनी शिक्षा भी इन्हें अल्लाह के कुरान से नहीं मुल्ला की कुरान से दी जाती है, जहां गैर मुसलमानों को काफिर तो शरिया को संविधान से ऊपर बताया जाता है। दूसरे धर्म की पूजा पद्धति का मजाक उड़ाया जाता है तो अपने धर्म की खामियों पर बहस करना तो दूर कोई मुंह भी खोल दे तो उसको मौत के घाट उतार देने मे भी परहेज नहीं किया जाता है। हिन्दुओं को टॉरगेट करने मौत के घाट पर उतारा जाता है।

इस्लाम के मानने वालों द्वारा ऐसी धारणा बनाई जा रही है मानो अल्लाह की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है, जबकि इस्लाम अन्य सभी धर्मों के मुकाबले काफी नया धर्म है। दुनिया का सबसे पुराना (लगभग 20000 ईसा पूर्व) वैदिक धर्म है। जैन धर्म भी हिन्दू धर्म की तरह काफी प्रचीन है। इसी प्रकार से यजीदी, यहूदी भी काफी पुराने धर्म हैं। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि जब इस्लाम दुनिया में आया तब तक दुनिया पूरी तरह से बस चुकी थी। इस्लाम से पहले भी इंसान इसी धरती पर रहते थे, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु सब मौजूद था। रात भी होती थी, सुबह भी होती थी चांद-सूरज-तारे, समुद्र, नदियां, पहाड़ सब मौजूद था। इस्लाम की स्थापना से पूर्व करीब डेढ़ दर्जन धर्मों के लोग शांतिपूवर्क इस धरती पर निवास और अपने धर्म-कर्म किया करते थे। वैदिक धर्म की तरह से ही जैन, यजीदी, यहूदी, पेगन, पारसी, वूडू, बौद्ध, शिंतो, ताओ, नॉर्डिक, ग्रीक, रोमन आदि धर्म भी इस्लाम से काफी पुराने हैं। इन सभी धर्मों में एक खासियत यह है इन धर्मों के मानने वाले कभी अपने धर्म की आलोचनाओं से हिंसक नहीं हुए, बल्कि लोगों को सच से रूबरू किया, जिससे बाद में इनके धर्म के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा, लेकिन ऐसे भी धर्म मौजूद हैं जो तलवार की नोक पर चलते हैं, जो कहते हैं कि सूरज पश्चिम से निकलता है, दुनिया गोल नहीं चपटी है, मगर इसके खिलाफ कोई बोल नहीं सकता है। इसलिए यदि कोई मौलाना यह कहता है कि अल्लाह के अलावा कोई दूसरा नहीं है तो वह अपने आप को ही गुमराह कर रहा है। इस्लाम अच्छा और सच्चा धर्म हो सकता है, लेकिन इसमें भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो कुरान की आड़ में तमाम कुकर्म करते रहते हैं। यही आजकल देश में चल रहा है।

इसे भी पढ़ें: नुपूर शर्मा की टिप्पणी से उठा विवाद देश को कई प्रकार के सबक दे रहा है   

इस्लाम और कुरान के नाम पर जिस तरह से हिंसा फैलाई जा रही है उसके आधार पर यह तो नहीं कहा जा सकता है कि नूपुर शर्मा का सिर तन से जुदा करने, उनके साथ रेप करने, नुपुर को फांसी दिए जाने की मांग करने वाले लोग देश में खून-खराबा करके पैगम्बर साहब की शान में चार चांद लगा रहे हैं, नूपुर का बयान गलत था तो सच्चाई यह भी है कि जितनी गुनाहागार नूपुर शर्मा को बताया जा रहा है उससे अधिक गुनाहागार यह हिंसक प्रवृति के लोग हैं। ऐसा नहीं है कि नूपुर शर्मा ने विवादित बयान नहीं दिया होता तो देश में पूरी तरह से अमन-चैन बना रहता, नूपुर तो एक बहाना है, देश को दंगे की आग में झुलसाने वालों को यह बहाना कभी एनआरसी-सीएए, तो कभी हिजाब, तीन तलाक, ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही जामा मस्जिद, समान नागरिक संहिता के नाम पर मिल ही जाता है। यह वह लोग हैं जो हिन्दुस्तान में इस्लाम का राज लाने का सपना पाले हुए हैं। ऐसे लोगों को वोट बैंक की सियासत के चलते फलने-फूलने का मौका मिलता है। नहीं तो कोई वजह नहीं बनती है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव स्वयं तो हिन्दुओं की आस्था का मजाक उड़ाते घुमते रहें और नुपूर की गिरफ्तारी के लिए हो-हल्ला मचाएं, यदि गिरफ्तारी नूपुर शर्मा की होनी चाहिए तो बचना अखिलेश यादव, ओवैसी, रहमानी जैसे लोगों को भी नहीं चाहिए।

कैसे भुलाया जा सकता है कि गांधी परिवार की चाटुकारिता में डूबे कांग्रेसी नेता अनेकों बार राहुल और प्रियंका गांधी की देवी-देवताओं से तुलना कर हिंदू धर्म का मजाक उड़ाते रहे हैं। प्रयागराज कुंभ में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का दुर्गा के अवतार वाला विवादित पोस्टर लगाया गया था। इस पोस्टर में लिखा गया था, ‘कांग्रेस की दुर्गा प्रियंका करेंगी शत्रुओं का वध।’ इससे पहले पटना में कांग्रेस नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को राम का अवतार दिखाते हुए पोस्टर लगाए थे। कांग्रेस के बड़े नेता और राहुल गांधी के करीबी शशि थरूर ने प्रयागराज कुंभ को लेकर हिंदू धर्म का मजाक उड़ाया था। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने तो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया था, तो वहीं मनमोहन सरकार ने यहां तक कह दिया था कि राम सेतु था ही नहीं, बाद में नासा के वैज्ञानिकों ने राम सेतु की पुष्टि की थी। उक्त नेताओं को हिन्दुओं का जयचंद कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 

   

बात पैगंबर साहब के अपमान के बाद फैली हिंसा से जुड़े लोगों की कि जाए तो पूरी दुनिया जानती है कि ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग का मखौल उड़ाने वालों में ज्यादातर लोग तो वे थे जो भारत तो छोड़िए दुनिया के किसी भी कोने में अपनी आस्था पर हल्के से भी आघात को लेकर सड़कों पर उतरकर ‘सर धड़ से जुदा-सर धड़ से जुदा’ का राग अलापने लगते हैं। इससे भी ज्यादा शर्मनाक ये रहता है कि ऐसी कुत्सित सोच वाले लोगों के समर्थन में लिबरल कहे जाने वाले कई लोग भी उतर आते हैं और हिंदू आस्था का सार्वजनिक अपमान करने लगते हैं। भारत का दुर्भाग्य है कि उदारवादी यानी लिबरल अपने नाम के ठीक उलट काम कर रहे हैं। जिनका काम समाज की बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाना होना चाहिए, वो एक वर्ग को कट्टरता के दलदल में धंसे रहने को मजबूर करने का यतन करते दिखते हैं। आजादी के नाम पर कुरीतियों तक का समर्थन करते हैं।

बहरहाल, 03 जून को कानपुर में हिंसा के बाद 10 जून को दूसरे जुमे पर तो देश-प्रदेश के कई हिस्सो में हिंसा का नजारा देखने को मिला। जहां बीजेपी की सरकारें थीं, वहां तो उपद्रवी ज्यादा हिंसा नहीं फैला सके, लेकिन जहां गैर भाजपाई सरकारें थीं, वहां उपद्रवियों के हौसले काफी बुलंद नजर आए। झारखंड में रांची तो पश्चिम बंगाल के हावड़ा में उपद्रवियों ने काफी उधम मचाया। रांची में तो दो लोगों की मौत भी हो गई। यूपी में प्रयागराज में ही उपद्रवी अपने मंसूबों में कुछ हद तक सफल हो पाए, जिनके खिलाफ योगी सरकार ने कार्रवाई तेज कर दी है।

नमाज के बाद देश के कई शहरों में जिस तरह हिंसक प्रदर्शन हुए और इस दौरान कई जगहों पर पथराव, तोड़फोड़ एवं आगजनी के साथ पुलिस पर हमला किया गया, वह निश्चित ही सोची-समझी साजिश का हिस्सा है। खौफ पैदा करने वाली इस नग्न अराजकता का परिचय भाजपा के उन दो नेताओं की पैगंबर मोहम्मद साहब पर विवादित टिप्पणियों पर रोष जताने के नाम पर किया गया, जिन्हें न केवल निलंबित-निष्कासित कर दिया गया है, बल्कि जिनके खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कर ली गई है। इस कार्रवाई को अपर्याप्त मानते हुए शांतिपूर्ण तरीके से विरोध तो समझ आता है, लेकिन आखिर लोगों को आतंकित करने वाली खुली अराजकता का क्या मतलब? यह अराजकता किस कदर बेलगाम थी, इसे इससे समझा जा सकता है कि जहां रांची में हिंसा पर काबू पाने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा, वहीं कई अन्य शहरों में धारा 144 लागू करनी पड़ी। ध्यान रहे इसके पहले गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह में एक मस्जिद से भड़काऊ बयानबाजी के बाद कर्फ्यू लगाना पड़ा था।

इसे भी पढ़ें: पैगंबर मोहम्मद मामले में माफी मांगने के बावजूद हंगामा... यह संयोग है या प्रयोग ?

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आक्रोश जताने के नाम पर केवल उत्पात ही नहीं मचाया गया, बल्कि निलंबित भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा का सिर तन से जुदा करने के नारे लगाए गए और उनके पुतले को फांसी भी दी गई। ऐसी हरकतें सभ्य समाज को शर्मसार करने और देश की छवि खराब करने वाली हैं। यह याद रहे कि ऐसा ही कुछ तब भी हुआ था, जब कमलेश तिवारी पर पैगंबर साहब की शान में गुस्ताखी के आरोप लगे थे और वह भी तब जब उसे गिरफ्तार कर उस पर रासुका लगा दिया गया था। बाद में कुछ जिहादी तत्वों ने उसकी गर्दन रेत कर हत्या भी कर दी थी। यही लोग नुपूर शर्मा का हश्र भी कमलेश तिवारी की तरह कर सकते हैं, यह बात सब जानते हैं, मगर कोई मुंह नहीं खोलेगा।

    

ऐसा लगता है कि जबसे दिल्ली में मोदी और कुछ राज्यों में बीजेपी की सरकारें बनी हैं, तबसे उन तमाम लोगों के मंसूबों पर पानी फिर गया है जो पूर्ववर्ती सरकारों की शह पर देश को तेजी से इस्लामीकरण की ओर ले जा रहे थे, विदेश के पैसे से यहां इस्लाम का राज स्थापित करने का सपना पाले हुए थे, मोदी सरकार ने ऐसे लोगों पर लगाम लगा दी तो यह तिलमिला गए और धर्म के नाम पर मोदी सरकार को बदमान करने की मुहिम में जुट गए हैं। सड़कों पर उतरे लोगों को उपद्रव करने के लिए बहाना चाहिए था। चूंकि नूपुर शर्मा के बयान पर देशव्यापी उपद्रव कई इस्लामी देशों की नाराजगी जताने के बाद हुआ, इसलिए यह संदेह और गहराता है कि यह सुनियोजित और प्रायोजित था। जरूरी केवल यह नहीं कि उपद्रवियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, क्योंकि इस तरह की उन्माद भरी हिंसा कानून के शासन को खुली चुनौती है, बल्कि यह भी है कि मुस्लिम समाज का धार्मिक-राजनीतिक स्तर पर नेतृत्व करने वाले इस पर विचार करें कि ऐसे उपद्रव उनके समुदाय की कैसी छवि निर्मित कर रहे हैं?

एक सवाल यह भी है कि क्या धार्मिक मामलों में अप्रिय टिप्पणियों से केवल समुदाय विशेष की ही भावनाएं आहत होती हैं। यह सवाल इसलिए, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि ज्ञानवापी परिसर में सर्वेक्षण के बाद शिवलिंग को लेकर कैसे ओछी-भद्दी और अपमानजनक टिप्पणियां की गईं। कई मौलानाओं ने तो यह भी बताने की कोशिश की कि माँ सीता की उम्र भी प्रभु राम के साथ विवाह के समय छहः साल की थी, यह और बात है कि वह ऐसा कहकर नुपूर शर्मा की बातों को ही आधार दे रहे थे।

अच्छी बात यह है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ऐसे अराजक तत्वों के सामने झुकने को तैयार नजर नहीं आ रही है। उपद्रवी जितनी ताकत से योगी सरकार को नीचा दिखाने की साजिश रचते हैं योगी सरकार उसकी दुगनी ताकत से ऐसे अराजक तत्वों का ‘फन’ कुचलने में देरी नहीं करती है। इसीलिए तीन और 10 जून को जुमे के दिन हिंसा फैलाने वालों और उनके आकाओं की तेजी से धरपकड़ की जा रही है और उनके घरों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। इसके साथ ही उपद्रवियों के रहनुमा भी बाहर निकल आए हैं और वह जल्द ही कोर्ट से लेकर टीवी डिबेट तक में हंगामा करते नजर आ सकते हैं।

-स्वदेश कुमार

(पूर्व सूचना आयुक्त, उत्तर प्रदेश)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़