मोदी विरोध में CAA की खिलाफत कर रहे लोगों के मन में मानवता नाम की चीज नहीं बची

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क्या नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रस्ताव पास करवा कर अपने राजनीतिक स्वार्थ का परिचय देने वाले विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ भी कोई प्रस्ताव पास करवाएंगे या सहानुभूति जताने तक की जहमत उठाएंगे ?

जो लोग नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे हैं वह राजनीतिक रूप से इतने ज्यादा स्वार्थी हो चुके हैं कि उन्होंने भारत के पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार से आंखें फेर ली हैं। भारत सरकार बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि नागरिकता संशोधन कानून नागरिकता लेने का नहीं देने का कानून है और यह किसी भारतीय पर लागू ही नहीं होता लेकिन कुछ लोग भ्रम फैलाने का कारोबार जारी रखे हुए हैं और उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है कि हिंदुओं पर और सिखों पर पाकिस्तान में किस तरह जुल्म ढाये जा रहे हैं। पाकिस्तान की काली करतूतें सिर्फ भारत के खिलाफ ही नहीं होतीं बल्कि वह अपने यहां के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की सीमाएं पार कर जाता है।

हिंदू लड़कियों को किस तरह जबरन धर्म परिवर्तन करा कर निकाह के लिए मजबूर किया जाता है इसका सबसे ताजा उदाहरण सामने आया है पाकिस्तान के सिंध प्रांत से। जहां गत रविवार को 24 वर्षीय हिंदू युवती का शादी के मंडप से अपहरण किया गया और उसके बाद उसका धर्म परिवर्तन करवा कर जबरन एक मुस्लिम व्यक्ति से निकाह करवाया गया। पाकिस्तान में कराची से लगभग 215 किलोमीटर दूर हाला शहर में एक हिंदू युवती भारती बाई की शादी हिंदू युवक से होनी थी लेकिन कट्टरपंथियों ने विवाह स्थल पर पहले तो पत्थर बरसाये और उसके बाद शादी की रस्मों के बीच ही युवती का अपहरण कर लिया। गौर करने वाली बात यह है कि शाहरुख गुल नामक अपहरणकर्ता पुलिसकर्मियों के साथ विवाह स्थल पर आया था और युवती को उठा ले जाने में सफल रहा। भारती का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया और उसका नाम बुशरा रख दिया गया और शाहरुख के साथ उसका जबरन निकाह पुलिस वालों की उपस्थिति में करवाया गया। इस निकाह के दस्तावेज सोशल मीडिया पर आपको देखने को मिल जाएंगे क्योंकि यह काफी वायरल हो रहे हैं। इन दस्तावेजों में भारती के धर्मांतरण के प्रमाण पत्र भी शामिल हैं। भारत में अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने एक वीडियो जारी कर इस घटना को सबके सामने हाल ही में रखा था।

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देखा जाये तो पाकिस्तान का सिंध प्रांत आजकल हिंदू लड़कियों के अपहरण, धर्म परिवर्तन और जबरन शादी की वजह से खासा चर्चा में है। भारती जैसे प्रताड़ित हो रही बेटियों और उसके जैसे असहाय माता-पिता को प्रताड़ना की जिंदगी से मुक्ति दिलाने के लिए ही भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन किया ताकि दशकों से जुल्म सहते आ रहे लोगों की जिंदगी को खुशहाल किया जा सके लेकिन हमारे यहाँ कुछ ऐसे राजनीतिक दल हैं जोकि इस कानून का विरोध कर रहे हैं। हैरत होती है इस बात को देखकर कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों के दिल में बिलकुल मानवता नाम की चीज ही नहीं बची है। हमारे यहां तो पश्चिम बंगाल अब चौथा राज्य बन गया है, जहां नागरिकता कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास हो चुका है। इससे पहले केरल, पंजाब और राजस्थान में भी सीएए विरोधी प्रस्ताव पास किया जा चुका है। 

क्या सीएए विरोधी प्रस्ताव पास करवा कर अपने राजनीतिक स्वार्थ का परिचय देने वाले मुख्यमंत्री पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हो रहे इस अन्याय के खिलाफ भी कोई प्रस्ताव पास करवाएंगे या सहानुभूति जताने तक की जहमत उठाएंगे ? पाकिस्तान में जो हिंदू इस तरह की प्रताड़ना के विरोध में धरना प्रदर्शन दे रहे हैं क्या उस पर यह सभी मुख्यमंत्री कोई प्रतिक्रिया जताएंगे ? क्या सीएए विरोधियों को यह नहीं दिख रहा की पाकिस्‍तान में हिंदू और सिख अल्‍पसंख्‍यकों का उत्‍पीड़न निरंतर जारी है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हाल ही में एक हिंदू मंदिर को निशाना बनाते हुए उग्र भीड़ ने मंदिर में तोड़फोड़ की और मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया। इसके पहले सिंध में ननकाना साहिब गुरुद्वारे पर कुछ कट्टरपंथी समूहों ने हाल ही में पत्‍थरबाजी की थी और नानकाना साहिब गुरुद्वारे के ग्रंथी की बेटी को अगवा किया था।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाकिस्तान का स्थानीय प्रशासन और वहां की सरकार इस तरह के मामलों में आरोपी युवकों की मदद करती है और भारती के केस में भी उसके इस्लाम कबूलने और निकाह करने के दस्तावेज एक महीने पुराने बना कर दिखा दिए गए और एक मनगढ़ंत कहानी दुनिया के सामने पेश करने की कोशिश की गयी। आरोप है कि पिछले दो से ढाई महीने के दौरान ही पाकिस्तान में 53 हिंदू और सिख अल्पसंख्यक लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन और उनसे जबरन निकाह के मामले सामने आ चुके हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के घोटकी में भी हाल के समय में कई ऐसे मामले सामने आये जिनमें हिंदू युवक और युवतियों की हत्या की गयी।

अमेरिका की एक सिंधी फाउंडेशन की एक रिपोर्ट आंखें खोल देने वाली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में हर साल 12 से 28 साल की उम्र की करीब 1000 सिंधी हिंदू लड़कियों को अगवा करने, उनका जबरन धर्म परिवर्तन करा कर निकाह कराने के मामले सामने आते हैं। चलिये यह तो अमेरिका की सिंधी फाउंडेशन की रिपोर्ट थी लेकिन जरा अब यह देख लीजिये कि पाकिस्तान का मानवाधिकार आयोग क्या कहता है। वैसे तो पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों पर अत्याचार के अधिकतर मामले दर्ज नहीं किये जाते लेकिन जो दर्ज किये जाते हैं उनके आधार पर पाकिस्तान के मानव अधिकार आयोग का कहना है कि जनवरी 2004 से मई 2018 के बीच सिंधी लड़कियों को अगवा करने और उनसे जबरन निकाह के लगभग साढ़े सात हजार मामले सामने आये। क्या अब भी सीएए विरोधी आंखें बंद किये रहेंगे। सिर्फ चुनावी राजनीति से सबकुछ मत जोड़िये, मानवता का दिखावा कर मानव अधिकारों को कुचले जाने की घटनाओं से आंखें फेर लेना क्रूरता है।

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जरा पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का हाल जानने की कोशिश करके देखिये वह लोग वहां डर के साये में जी रहे हैं क्योंकि उनकी मां-बहनें सुरक्षित नहीं हैं, संपत्ति सुरक्षित नहीं है। कभी भी अल्पसंख्यकों से मारपीट या मंदिरों में तोड़फोड़ पाकिस्तान में आम बात है। पाकिस्तान में मियाँ मिट्ठू और उसके भाई मियाँ जावेद अहमद जैसे अनेकों लोग हैं जो अल्पसंख्यक परिवारों की लड़कियों को जबरन इस्लाम कबूलवाने का धंधा चलाते हैं। पाकिस्तान में एक बड़ी साजिश के तहत हिंदू और सिख लड़कियों को इस्लाम कबूलवाया जाता है। धर्म परिवर्तन को सही ठहराने की कोशिश करने वाली पाकिस्तान सरकार से यह पूछा जाना चाहिए कि वहां अल्पसंख्यक परिवार से इस्लाम क़बूलने वाली लड़कियों की उम्र 14 से लेकर 24-25 साल तक की ही क्यों होती है ? यह लड़कियां धर्म परिवर्तन के बाद बीवी ही कयों बनती हैं, किसी की बेटी या बहन क्यों नहीं ? कराची में पिछले दिनों हिंदू डॉक्टर की हत्या की बात हो या फिर गत सप्ताह मीरपुर खास में 25 साल की एक हिंदू महिला मोमल को अगवा कर उसका धर्म परिवर्तन करवाने का मामला हो, पाकिस्तान में ऐसी अनंत कहानियां हैं जिनमें अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं लेकिन इनके आंसुओं पर भारत के विपक्षी दलों का दिल अब तक नहीं पसीजा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही ही कहा है कि स्वतंत्रता के बाद से स्वतंत्र भारत ने पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के हिंदुओं, सिखों और अन्य अल्पसंख्यकों से ये वादा किया था कि अगर उनको जरूरत होगी तो वो भारत आ सकते हैं। यही इच्छा गांधी जी की थी और यही 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते की भी थी।

-नीरज कुमार दुबे

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