ममता बनर्जी ने मोदी को नहीं देश के संघीय ढाँचे को सीधी चुनौती दी है

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पश्चिम बंगाल ही देश का एकमात्र ऐसा राज्य बन गया है, जहां सिंडिकेट रंगदारी सरेआम वसूलता है। देश के दूसरे राज्यों में दबे−छिपे तरीके से भले ही अवैध उगाही होती हो किन्तु बंगाल में यह सब कुछ सरेआम सरकारी संरक्षण में होता है।

पश्चिम बंगाल सरकार का केन्द्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को लेकर बरता गया रवैया सीधे कानून को चुनौती देने वाला है। यह न सिर्फ देश के लोकतांत्रिक ताने−बाने के लिए नुकसानदेय है, बल्कि संघीय ढांचे के लिए भी खतरनाक है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस तरह सारदा चिटफंड घोटाले में आरोपी पुलिस अधिकारी को बचाने का प्रयास किया है, उससे जाहिर है कि पश्चिम बंगाल सरकार की देश के कानून और संविधान में आस्था नहीं है।

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सारदा घोटाले के उजागर होने के बाद से ममता बनर्जी ने इसकी जांच में प्रारंभ से ही रोड़े अटकाए हैं। हजारों करोड़ के इस चिटफंड घोटाले के तार तृणमूल कांग्रेस के कई पदाधिकारी और मंत्रियों से जुड़े हुए हैं। कोलकाता पुलिस ने भी इसकी जांच सरकार की मनमर्जी से ही की थी। घोटाले में तृणमूल कांगेस के नेताओं के खिलाफ स्थानीय पुलिस न सिर्फ सख्त कार्रवाई करने में विफल रही, बल्कि सबूतों से भी छेड़छाड़ के प्रयास किए। पश्चिम बंगाल सरकार के इस रवैये की वजह से ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट के दखल के बाद ही सीबीआई ने इस मामले की तफतीश शुरू की।

चहेते पुलिस अधिकारियों और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के फंसने से ही ममता बनर्जी सीधे हस्तक्षेप पर उतर आईं। यही वजह रही कि सीबीआई को पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने के लिए 40 कार्मिकों की टीम ले जानी पड़ी। इस टीम का सहयोग करने की बजाए ममता ने उल्टा रवैया अपनाया। सीबीआई की टीम को ही स्थानीय पुलिस के जरिए हिरासत में ले लिया। इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों का रवैया भी देश में कानून−व्यवस्था के शासन को बिगाड़ने वाला रहा है।

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कांग्रेस ने सीबीआई को केन्द्र सरकार का तोता बताते हुए इस कार्रवाई को संघीय ढांचे के खिलाफ बताया। कांग्रेस यह भूल गई कि अब सीबीआई निदेशक की नियुक्ति केन्द्र की मर्जी से नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति करती है। ऐसे में सीबीआई का आचरण केंद्र सरकार के अनुकूल होने की संभावना नहीं के बराबर है। सीबीआई की कार्रवाई और भ्रष्टाचार को लेकर वैसे भी कांग्रेस का दामन दागदार रहा है। यही वजह भी रही कि विगत लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इसे प्रमुख मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस को सत्ता से हटने के लिए विवश कर दिया। कांग्रेस के भ्रष्टाचार के प्रति नरम रवैये के कारण ही देश के चर्चित घोटालों में सुप्रीम कोर्ट को दखल देकर सीबीआई से जांच के आदेश देने पड़े। राष्ट्रमंडल, कोलगेट और टूजी स्पैक्ट्रम घोटालों पर कांग्रेस आंख बंद किए रही। इन मामलों में अदालत के दखल के बाद ही सीबीआई ने जांच शुरू की।

ऐसे में ममता बनर्जी का साथ देने को यही माना जाएगा कि कांग्रेस ने अपने पुराने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया। जिसकी वजह से कांग्रेस को केन्द्र से ही नहीं बल्कि कई राज्यों से भी सत्ता गंवानी पड़ी। सीबीआई के विरोध से पहले भी पश्चिम बंगाल सरकार का देश के स्वायत्तशाषी संवैधानिक संस्थाओं के प्रति रवैया तानाशाही पूर्ण रहा है। पंचायत चुनाव के दौरान अफसरों के तबादलों को लेकर ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग के निर्देश मानने से इंकार कर दिए। आखिर यह मामला जब अदालत में पहुंचा तब कहीं जाकर ममता सरकार ने विवश होकर अधिकारियों के तबादले किए। ममता बनर्जी सीबीआई की कार्रवाई से नहीं, राजनीतिक मामलों में भी वैमनस्य की खाई को बढ़ा रही हैं।

देश में पश्चिम बंगाल ही एकमात्र ऐसा प्रदेश बन गया है, जहां सर्वाधिक राजनीतिक हिंसा हुई है। इसके विपरीत अपराधों के लिए बदनाम उत्तर प्रदेश और बिहार में भी ऐसी राजनीतिक हिंसा नहीं हुई। इस प्रदेश में चाहे भाजपा, कांग्रेस हो और या माकपा, सभी के कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याएं हुई हैं। पश्चिम बंगाल ही एकमात्र ऐसा प्रदेश है, जहां राजनीतिक सभाओं के लिए स्वीकृति देने में कानून−व्यवस्था बिगड़ने का हवाला देते हुए रोड़े अटकाएं जाते हैं। इन सभाओं के दौरान उपद्रव और हिंसा की वारदातें होती रही हैं। सत्ता के लिए ममता किसी भी हद तक जा सकती हैं।

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रोहिंग्या और बांग्लादेशी शरणार्थियों को बंगाल में शरण देना इसके उदाहरण हैं। इनसे बेशक देश की कानून−व्यवस्था बिगड़े या देश पर बोझ पड़े किन्तु ममता ने अल्पंसख्यक वोट बैंक को अपने पक्ष में रखने के लिए देश को कमजोर करने वाले ऐसे प्रयासों से भी परहेज नहीं बरता। ममता की इन्हीं नीतियों के कारण पश्चिम बंगाल आतंकियों की बड़ी शरणस्थली में तब्दील हो चुका है। उत्तर प्रदेश और बिहार के बाद एनआईए ने आतंकियों के खिलाफ सर्वाधिक कार्रवाई पश्चिम बंगाल में ही की है। यहां से भारी मात्रा में हथियारों के जखीरे बरामद किए हैं। ममता बनर्जी ने एनआईए की र्कारवाई का भी विरोध किया था। इसके लिए भी केन्द्र की मोदी सरकार को दोषी बताया था।

पश्चिम बंगाल ही देश का एकमात्र ऐसा राज्य बन गया है, जहां सिंडिकेट रंगदारी सरेआम वसूलता है। देश के दूसरे राज्यों में दबे−छिपे तरीके से भले ही अवैध उगाही होती हो किन्तु बंगाल में यह सब कुछ सरेआम सरकारी संरक्षण में होता है। भ्रष्टाचार और अराजकता का ऐसा उदाहरण देश में कहीं और मयस्सर नहीं है। यह निश्चित है कि चुनाव जीतने के लिए ममता बनर्जी जिस तरह के हथकंडे अपना रही हैं, वह देश की एकता−अखंडता के लिए घातक है। आश्चर्य तो यह है कि तृणमूल की ऐसी हरकतों में विपक्ष भी साथ दे रहा है। सवाल यह भी है सीबीआई हो या एनआईए, यदि राजनीतिक आधार पर भेदभाव बरतती भी हैं तो अदालत के दरवाजे खुले हुए हैं। अदालत ने कई बार इन जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाए हैं। एजेंसियों के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई तक की है। ऐसे में ममता और विपक्ष को अदालतों पर भरोसा क्यों नहीं है ? यह निश्चित है कि ममता ने सत्ता के लिए जो रास्ता अख्तियार किया है, वह आगे जाकर अंधेरी बंद गली में ही तब्दील होगा।

-योगेन्द्र योगी

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