कश्मीर की बात तो सब करते हैं लेकिन क्या कश्मीर और कश्मीरियों की समस्याओं को जानते भी हैं?
कश्मीर पर बोलना तो हर कोई चाहता है लेकिन कश्मीर को समझना है तो पहले कश्मीरियों को समझना होगा, उनके मन के भीतर झांकना होगा। हालिया कश्मीर यात्रा के दौरान अनेक कश्मीरियों से सीधे संवाद के दौरान मैंने जाना कि कश्मीरी चाहते क्या हैं, कश्मीरी सोचते क्या हैं।
जम्मू-कश्मीर की शांति भंग करने के लिए पाकिस्तान लगातार प्रयास करता रहता है लेकिन इन प्रयासों को विफल करने के लिए हमारे सुरक्षा बल पूरी तरह मुस्तैद रहते हैं। भारत के इस खूबसूरत राज्य पर कुदरत ने भले अपना पूरा प्यार उड़ेल रखा हो लेकिन कुछ स्वार्थी तत्व इसकी छवि नकारात्मक बनाये रखना चाहते हैं। यही कारण है कि इस राज्य की छवि के साथ आतंकवाद और हिंसा का ठप्पा ऐसे लगाया गया है कि वह सबके दिलो दिमाग पर छप-सा गया है। देखा जाये तो कश्मीर में लगभग सभी चीजें सकारात्मक ही सकारात्मक हैं, नकारात्मक अगर हैं तो सिर्फ मीडिया की खबरें। कश्मीर में अगर एक मुठभेड़ हो जाये तो वह मीडिया की सुर्खियां बन जाती है, ऐसे दर्शाया जाता है कि कश्मीर में बस मुठभेड़ ही मुठभेड़ हो रही है या चारों ओर सिर्फ आतंकवाद ही आतंकवाद फैला है। लेकिन कश्मीर में अगर डल झील इतिहास में पहली बार सबसे ज्यादा साफ नजर आ रही है तो वह कभी खबर नहीं बनती। कश्मीर में अगर सड़कों का तेजी से चौड़ीकरण हो रहा है या गांवों में सड़कों का जाल बिछ रहा है तो यह खबर कहीं पढ़ने को नहीं मिलेगी। कश्मीर में अगर प्रशासन में इस समय सर्वाधिक पारदर्शिता नजर आ रही है तो यह खबर कहीं पढ़ने को नहीं मिलेगी। कश्मीर में किसी विकास परियोजना से उस क्षेत्र की आबादी को बड़ा लाभ हो रहा है या होने वाला है तो वह खबर आपको कहीं नहीं मिलेगी। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो इस समय आतंकवाद कश्मीर की मुख्य समस्या है ही नहीं, वहां की मुख्य समस्या है बेरोजगारी। कश्मीर की असल पहचान आतंकवाद नहीं वहां की प्राकृतिक खूबसूरती है, कश्मीर की असल पहचान आतंकवाद नहीं वहां के लोगों की बेहतरीन मेहमाननवाजी है। कश्मीर की पहचान आतंकवाद नहीं वहां के लोगों की भारत भक्ति है।
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योजनाओं के क्रियान्वयन में खामियां
कश्मीर पर बोलना तो हर कोई चाहता है लेकिन कश्मीर को समझना है तो पहले कश्मीरियों को समझना होगा, उनके मन के भीतर झांकना होगा। हालिया कश्मीर यात्रा के दौरान अनेक कश्मीरियों से सीधे संवाद के दौरान मैंने जाना कि कश्मीरी चाहते क्या हैं, कश्मीरी सोचते क्या हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद भले केंद्र सरकार की ओर से यहां केंद्रीय योजनाओं की बाढ़ ला दी गयी हो, भले यहां केंद्रीय मंत्रियों के लगातार दौरे हो रहे हों, भले स्वयं केंद्रीय गृहमंत्री कश्मीर का दौरे करके आये हों, भले उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ग्राउण्ड पर उतर कर समस्याओं का हल करने में जुटे हों लेकिन फिर भी यहां बहुत कुछ करना बाकी है। दिल्ली की सरकार और उपराज्यपाल को चाहिए कि योजनाओं के क्रियान्वयन को पूरी तरह प्रशासन पर नहीं छोड़ें और कार्यों की लगातार समीक्षा हो। मैंने पाया कि बड़ी संख्या में ऐसे कश्मीरी हैं जिन्हें यह पता ही नहीं है कि केंद्र सरकार या राज्य प्रशासन उनके लिए क्या-क्या योजनाएं चला रहा है और वह उनका लाभ कैसे उठा सकते हैं। इसके अलावा प्रशासन की ढिलाई या टालने वाली आदत के चलते भी लोग सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने से कतराते हैं इसलिए सरकार को योजनाओं का लाभ आसानी से ऑनलाइन तरीके से मिल सके इसके प्रयास करने चाहिए।
क्या चाहता है कश्मीरी युवा?
कश्मीर के युवाओं को भटकाने के प्रयास भले सीमापार से होते हों लेकिन अधिकांश कश्मीरी युवा मुख्यधारा में रह कर अपनी रोजी-रोटी कमाने में यकीन रखते हैं। कश्मीरी युवाओं के मन की बात को समझने के दौरान यह बात उभर कर आयी कि वह अपने क्षेत्र में ही रह कर काम करना चाहते हैं, वह चाहते हैं कि वह अपने परिवार के साथ ही रहें, वह चाहते हैं कि सरकारी नौकरी मिले, अगर नहीं मिले तो स्वरोजगार में सरकार मदद करे। वह बाहरी कंपनियों के कश्मीर में प्रवेश के विरोधी नहीं हैं मगर यह जरूर चाहते हैं कि उन्हें नौकरी पर रखा जाये और उनके साथ असम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाये। कश्मीरी युवा चाहते हैं कि उनके लिए पढ़ाई-लिखाई का अच्छा प्रबंध हो, व्यवसायिक पाठ्यक्रम आसानी से उपलब्ध हों और वह अगर अन्य राज्यों में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं तो उन्हें संदेह की दृष्टि से नहीं देखा जाये। श्रीनगर में वैसे तो अनेक युवाओं से मैंने बातचीत की लेकिन आज विशेष रूप से मुराद कादरी का जिक्र करना चाहूँगा जिन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की लेकिन नौकरी नहीं मिली, सरकारी योजना का लाभ भी नहीं मिला तो अपना एक छोटा-सा कैफे ही खोल दिया और आज यह अच्छा चल रहा है। मुराद कादरी का अपने परिवार और राष्ट्र के प्रति स्नेह भी काफी प्रेरणादायी लगा। एक और युवा जोकि एमए कर चुका है जब उनसे यह पूछा कि आपने ड्राइवर पेशा ही क्यों चुना तो उनका कहना था कि यहां नौकरी है नहीं और मैं अपने परिवार को छोड़ कर बाहर जाना नहीं चाहता। साथ ही उनका कहना था कि मुझे पर्यटकों को अपने राज्य की खूबसूरती दिखाने में बहुत आनंद आता है इसलिए मैं इसी पेशे में बना रहूँगा। कश्मीर में खासतौर पर जिन परिवारों में एक ही लड़का है वह अपने परिवार के साथ ही रहना चाहता है जहां दो या तीन भाई हैं उनमें से जरूर कोई नौकरी के लिए बाहर चला जाता है।
सरकारी नीतियों पर उठ रहे सवाल!
कश्मीरी लोग यह भी चाहते हैं कि सरकार की नीतियां अटपटी-सी नहीं हों। जैसे कि एक कश्मीरी ने बातचीत में कहा कि एक ओर सरकार आतंकवाद की राह पर चलने वाले लोगों से आत्मसमर्पण करने को कहती है और उन्हें सामान्य जीवन जीने में मदद करने के लिए रोजगार का प्रबंध करने की बात कहती है लेकिन दूसरी ओर ऐसे लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है जिनका दस साल पहले आतंकवाद से संबंध रहा हो। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि जो आतंकवाद की राह पर चले गये हैं उन्हें लौटने में परेशानी यह है कि उन्हें सामान्य जीवन जीने का मौका नहीं मिलता। उनका कहना था कि नौकरी से लेकर किसी भी काम के लिए पुलिस से एनओसी नहीं मिलती।
क्या वाकई कम हुई दिल्ली और कश्मीर के बीच दिल की दूरी?
कश्मीर की राजनीतिक स्थिति की बात करें तो भले कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के प्रमुखों की बैठक बुला कर दिल्ली और कश्मीर के बीच दिल की दूरी को कम करने का प्रयास किया था। इस बैठक को लेकर राजनीतिक रूप से खूब चर्चा भी रही लेकिन जनता से बात करने पर पता लगा कि उन्हें इससे कोई ज्यादा मतलब नहीं था। जनता से बात करने पर पता चला कि लोग भाजपा से खासतौर पर इसलिए नाराज हैं क्योंकि भ्रष्टाचार के सारे सुबूत होने के बावजूद अब तक फारूक अब्दुल्ला को गिरफ्तार नहीं किया गया। जम्मू-कश्मीर की 'बदहाली' के लिए लोग नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को सर्वाधिक जिम्मेदार मानते हैं। लोगों की शिकायत यह है कि फारूक अब्दुल्ला कश्मीर में कुछ और कहते हैं, जम्मू में कुछ और कहते हैं और जब दिल्ली जाते हैं तो कुछ और ही कहते हैं। लोगों का कहना था कि जब भी केंद्र सरकार के लोग बात करते हैं तो यहां के राजनेताओं से करते हैं जबकि इन्हीं कश्मीरी राजनेताओं ने जनता को सर्वाधिक लूटा है, ठगा है। गुपकार गठबंधन के प्रति भी लोगों का कोई खास आकर्षण नहीं नजर आया। डीडीसी चुनावों में गुपकार गठबंधन में शामिल दलों को मिली सफलता के बारे में लोगों का कहना था कि स्थानीय चुनाव में लोग उम्मीदवार को देखते हैं पार्टी को नहीं इसलिए इन दलों को कई जगह सफलता जरूर मिली है।
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विकास की बात स्वीकार कर रहे लोग
कश्मीरी लोगों का यह भी कहना था कि जब दिल्ली से कोई नेता यहां लोगों से संवाद करने आता है तो आम लोगों से नहीं मिलवा कर उन्हें कुछ खास लोगों से मिलवा दिया जाता है। लोगों का सुझाव था कि जब दिल्ली से कोई नेता यहां आये तो उसे औचक रूप से किसी भी क्षेत्र में जाकर वहां के लोगों से बात करनी चाहिए ना कि अधिकारी या स्थानीय नेता जो बता दें उस पर विश्वास करना चाहिए। राजनीतिक रूप से पलड़ा किसी एक के पक्ष में यहां नहीं दिखा लेकिन एक बात साफ तौर पर नजर आई कि जनता इस बात को मान रही है कि कश्मीर में विकास हो रहा है। जैसे एक व्यक्ति ने कहा कि मैं भाजपा का विरोधी हूँ लेकिन यह मानता हूँ कि पहली बार डल झील इतनी साफ है वरना इसकी सफाई के नाम पर अब तक सिर्फ घोटाले ही हुए। एक व्यक्ति ने कहा कि मैं भाजपा का विरोधी हूँ लेकिन यह बात मानता हूँ कि बिजली सप्लाई की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है, एक व्यक्ति ने कहा कि मैं भाजपा का विरोधी हूँ लेकिन यह बात मानता हूँ कि सड़कें बहुत बेहतरीन हुई हैं। ऐसे ही अनेक लोगों से सीधा संवाद हुआ जोकि भाजपा के समर्थक नहीं थे लेकिन कश्मीर में चल रहे विकास कार्यों की बात को उन्होंने स्वीकार किया।
कश्मीर पुलिस की चुनौतियां
कश्मीर में इस समय सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण कार्य किसी का है तो वह है राज्य पुलिस का। जम्मू-कश्मीर पुलिस पर कानून व्यवस्था की स्थिति सही से बनाये रखने की जिम्मेदारी तो है ही आतंकवाद रोधी अभियानों में भी उसकी महती भूमिका होती है। आजकल आतंकवादियों के निशाने पर भी पुलिस बल के जवान ही हैं। इस लिहाज से देखें तो देशभर में जम्मू-कश्मीर पुलिस ही है जो सर्वाधिक बड़ी चुनौतियों से कुशलतापूर्वक जूझ रही है। खतरों की परवाह नहीं करते हुए जम्मू-कश्मीर पुलिस जिस दृढ़ता और जज्बे के साथ हालात का सफलता से सामना कर रही है उसके लिए वह प्रशंसा के योग्य है। हालांकि पुलिसकर्मियों के परिजन जरूर सदैव चिंतित रहते हैं। श्रीनगर में एक पुलिसवाले ने बातचीत के दौरान अपना फोन दिखाते हुए कहा कि पिछले एक घंटे में कई बार घर से फोन आया और हर बार यही कहा गया कि आसपास देखते रहो। उल्लेखनीय है कि पुलिस पर हमले अचानक ही किये जा रहे हैं ताकि उन्हें संभलने का अवसर नहीं मिले।
सुरक्षा जाँच से परेशान होते हैं कश्मीरी?
जहां तक सेना और अर्धसैनिक बलों की बात है तो उनके लिए भी चुनौतियां कम नहीं हैं। मौसम संबंधी विपरीत परिस्थितियों में भी कश्मीर की सुरक्षा बनाये रखने के लिए हमारे जवान तत्पर रहते हैं। यहां सुरक्षा बलों के जवानों से मुलाकात करके आपको पूरा भारत नजर आयेगा क्योंकि वह सभी विभिन्न प्रदेशों से संबंध रखते हैं। सुरक्षा बलों के जवान चाहे पुरुष हों या महिला, सभी मुस्तैदी के साथ अपने कर्तव्यों के निवर्हन में लगे हुए हैं। हालांकि कुछ उपद्रवी तत्वों की वजह से अक्सर होने वाली सुरक्षा जाँच के चलते लोगों को परेशानी जरूर होती है लेकिन यह जरूरी भी है क्योंकि कश्मीर की शांति भंग करने के लिए पाकिस्तान बस मौके की तलाश में ही रहता है। पाकिस्तान की कोशिश सिर्फ कश्मीर में अशांति फैलाने की नहीं रहती बल्कि वह चाहता है कि कश्मीरियों को संदिग्ध निगाह से देखा जाये। पाकिस्तान मानता है कि जब भारत के अन्य राज्यों के लोगों और कश्मीरियों के बीच 'दिल की दूरी' बढ़ेगी तभी उसका मिशन सफल होगा। यही नहीं संभवतः पाकिस्तान की शह पर ही एक ओर अभियान चल रहा है जिसके तहत खासतौर पर भाजपा नेताओं के खिलाफ मनगढ़ंत टाइप की खबरें और वीडियो बनाकर व्हाट्सएप पर भेजे जा रहे हैं। जैसे मैंने पहलगाम में एक ड्राइवर को एक वीडियो देखते पाया जिसका शीर्षक था- 'योगी आदित्यनाथ ने कैसे कत्ल किये?' जाहिर है एक जहर फैलाने का अभियान चल रहा है।
बेवजह का डर फैलाया जा रहा
हाल ही में सरकार ने संसद में बताया था कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद से अन्य राज्यों के लोगों ने सिर्फ जम्मू में जमीन खरीदी है कश्मीर में नहीं। यहां कहा जा सकता है कि ऐसा सिर्फ बेवजह के डर से हुआ होगा। दरअसल जब कश्मीरियों से बात की जाती है तो वह कहते हैं कि हमें यहां किसी बाहरी के आने से कोई दिक्कत नहीं है बस हमारे लिये रोजगार के अवसर बरकरार रहने चाहिएं। लोगों का कहना है कि हम भी चाहते हैं कि कश्मीर में बहु-संस्कृति दिखे लेकिन कश्मीरी संस्कृति की प्रधानता बनी रहे। लोग चाहते हैं कि कश्मीर में उद्योग-धंधे लगें लेकिन जैसे कुछ राज्यों ने रोजगार में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण कर रखा है वैसे ही यहां भी हो। इसलिए कश्मीर में यदि आप घूमना चाहते हैं या फिर वहां निवेश करना चाहते हैं तो जो भी फैसला लें वह मीडिया की खबर के आधार पर कभी नहीं लें।
कश्मीरी पंडितों की वापसी के पक्ष वाला माहौल
कश्मीरी पंडितों की जहां तक बात है तो जरूर कई इलाकों में उनके घर सूने दिखे लेकिन वहां रहने वाले अन्य लोग यही चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित घर लौटें। देखा जाये तो हालात उनके लिए पहले की अपेक्षा अनुकूल हुए हैं बस उनका विश्वास और बढ़ाने की जरूरत है। कश्मीरी पंडितों के इलाकों में यदि उनकी घर वापसी का एक अभियान गाजे-बाजे के साथ चलाया जाये तो उसके अच्छे नतीजे देखने को मिल सकते हैं। कश्मीर में सामाजिक और साम्प्रदायिक सद्भाव अन्य राज्यों की अपेक्षा बहुत अच्छा है और यह हमारी समृद्ध कश्मीरी संस्कृति को दर्शाता है। हालांकि जब-जब कश्मीरी पंडितों की वापसी की बात चलती है तो एकाध घटनाओं के जरिये डर का माहौल बनाया जाता है इसलिए कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के अभियानों के दौरान सुरक्षा को उच्च स्तर पर बनाये रखने की जरूरत है।
कश्मीर में पर्यटन की बात ही अलग है
देखा जाये तो कश्मीर ऐसी जगह है जहां हर किसी को सपरिवार जरूर जाना चाहिए। यह देश के किसी भी अन्य पर्यटक स्थल से ज्यादा सुंदर है, यहां किसी तरह का प्रदूषण नहीं है, यहां के लोग भी अच्छे हैं, यहां के रोड़ भी अच्छे हैं, आपके बजट मुताबिक यहां सभी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं, यदि आप वेजिटेरियन हैं तो भी यहां भोजन के बहुत से अच्छे रेस्टोरेंट, ढाबे और होटल हैं। कश्मीर इसलिए भी जाना चाहिए क्योंकि कश्मीरी संस्कृति को भी करीब से जानने-समझने की जरूरत है, जाना इसलिए भी चाहिए ताकि जम्मू-कश्मीर में पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों की आय होती रहे। हमें ध्यान रखना चाहिए कि खाली बैठे लोग ही इधर-उधर भटकते हैं, यदि जीवन अच्छे से चलता रहे तो शायद कोई गलत राह पर नहीं जायेगा। यहां एक कश्मीरी से बातचीत का जिक्र करना चाहूँगा जिन्होंने मुझसे वार्ता के दौरान दुख जताते हुए कहा कि जब परिवार में कोई बीमार होता है तो अन्य भाई उसकी मदद करते हैं ऐसे में यदि कश्मीर रूपी भाई बीमार है तो अन्य राज्यों को भी भाई की तरह मदद करनी चाहिए।
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सुरक्षित है कश्मीर
बहरहाल, जहां तक पर्यटकों की बात है तो उन्हें वैसे भी किसी बात का डर नहीं होना चाहिए क्योंकि एक तो बड़ी तादाद में यहां सुरक्षा बल मौजूद हैं दूसरा जब आप ड्राइवर, गाइड, काह्वा बेचने वाले, मैगी बेचने वाले, तमाम तरह की राइड कराने वालों से बात करते हैं तो वह यही कहते हैं कि हम पर्यटकों के सुरक्षा गार्ड भी हैं और किसी पर कोई आंच नहीं आने दे सकते। वैसे तो आतंकवाद रूपी समस्या की किसी से तुलना नहीं की जा सकती लेकिन इसे आप किसी अन्य प्रदेश में जैसे अपराध होते ही रहते हैं और पुलिस अपराधियों पर शिकंजा कसती ही रहती है उस तरह से भी देख सकते हैं। आतंकवाद कश्मीर की पहचान नहीं है और हमें इसकी यह पहचान बनने भी नहीं देनी है।
- नीरज कुमार दुबे
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