पाँच राज्यों के चुनाव को केंद्र की सत्ता का सेमीफाइनल कहना गलत है

assembly election 2023
ANI

साल 2023 की ही बात कर लें तो वर्ष की शुरुआत में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड विधानसभा के चुनाव हुए। इसमें त्रिपुरा में भाजपा अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही और नगालैंड तथा मेघालय में गठबंधन में शामिल होकर सत्ता में बरकरार रही।

पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का ऐलान होने के साथ ही सभी पार्टियों ने अपनी अपनी जीत के दावे पेश कर दिये हैं। देखा जाये तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले इन पांच राज्यों को जीतने के लिए भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम पार्टियां काफी समय से जीतोड़ प्रयास कर रही हैं। लेकिन यहां यह समझना होगा कि इन पांच राज्यों में सर्वाधिक या सभी राज्य जीतने वाली पार्टी ही अगला लोकसभा चुनाव जीत जायेगी इस बात की कोई गारंटी नहीं है। यदि पिछले चुनाव के नतीजे देखे जायें तो 2018 में इन पांच में से तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी थी और दो में क्षेत्रीय दलों की। यानि भाजपा को इन पांच में से एक भी राज्य की सत्ता हासिल नहीं हुई थी मगर फिर भी उसने 2019 के लोकसभा चुनावों में 2014 से भी ज्यादा शानदार परिणाम हासिल कर अकेले दम पर 303 सीटें हासिल कर ली थीं। दरअसल जो लोग विधानसभा चुनावों को केंद्र की सत्ता का सेमीफाइनल मान रहे हैं वह यह नहीं समझ रहे कि विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मुद्दे और नेतृत्व अलग होते हैं।

इस बात को यदि उदाहरण के साथ समझें तो 2019 के लोकसभा चुनाव को देख सकते हैं। उस दौरान लोकसभा के साथ ही ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए थे। लोकसभा चुनाव भले भाजपा जीत गयी थी लेकिन ओडिशा में बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को जीत हासिल हुई थी। अरुणाचल में जरूर भाजपा पहली बार अपने दम पर बहुमत हासिल करने में सफल रही थी। ऐसे कई और उदाहरण भी हैं जब जनता की पसंद केंद्र और राज्य के स्तर पर अलग-अलग पार्टियों की रही है। इस संदर्भ में सबसे सशक्त उदाहरण दिल्ली का है जहां 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने सातों सीटें जीत ली थीं लेकिन 2020 की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत हासिल हुआ था।

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साल 2023 की ही बात कर लें तो वर्ष की शुरुआत में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड विधानसभा के चुनाव हुए। इसमें त्रिपुरा में भाजपा अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही और नगालैंड तथा मेघालय में गठबंधन में शामिल होकर सत्ता में बरकरार रही। लेकिन जब मई में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव हुए तो भाजपा बुरी तरह हार कर सत्ता से बाहर हो गयी। इसलिए कभी भी यह नहीं माना जाना चाहिए कि अगर कोई पार्टी किसी राज्य में जीत गयी है तो वह हर राज्य में जीतती ही जायेगी। लोकतंत्र में हमेशा सत्ता में रहने का वरदान किसी को नहीं मिलता।

बहरहाल, पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को जो लोग केंद्र की मोदी सरकार पर जनमत संग्रह करार दे रहे हैं वह भी गलत हैं क्योंकि जनता को यह तय करना है कि राजस्थान में अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव और मिजोरम में जोरमथांगा के काम से वह खुश हैं या नहीं। जनता को यह तय करना है कि इन पांचों राज्यों में सत्ता में मौजूद पार्टियों ने अपने चुनाव घोषणापत्र में किये गये वादे पूरे किये हैं या नहीं। जनता को यह तय करना है कि स्थानीय विधायक ने उनके क्षेत्र के विकास कार्यों में रुचि ली थी या नहीं। जनता को यह तय करना है कि महामारी तथा मुश्किल की घड़ी में राज्य सरकार ने उनका साथ दिया या नहीं।

-नीरज कुमार दुबे

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