कभी दिल्ली, कभी हैदराबाद तो कभी कोई और शहर...अबला तेरी यही कहानी

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डॉ. वंदना सेन । Dec 2 2019 11:35AM

जिस भारत में ''बेटी है तो कल है'' और ''बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ'' जैसे नारे गुंजित होते हों, उसी भारत देश में एक पढ़ी लिखी बेटी दरिन्दों की हवस का शिकार हो जाती है। इतना ही नहीं उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है।

भारतीय संस्कृति में सनातन काल से नारी को सबला का दर्जा दिया जाता रहा है। वह सबला है भी, लेकिन वर्तमान में भारतीय समाज के कुछ व्यभिचारी लोगों ने इस परिभाषा को पूरी तरह से बदलने का मन बना लिया है। उसे अबला बनाने पर तुले हुए हैं। ऐसे लोग निश्चित ही भारतीय संस्कृति को मिटाने का ही कार्य करते हुए दिखाई दे रहे हैं। अभी हैदराबाद में एक प्रतिभावान चिकित्सक युवती के साथ समाज के बीच रहने वाले दरिन्दों ने जो कृत्य किया है, वह अत्यंत ही निंदनीय तो है ही, साथ ही शर्मसार कर देने वाला भी है। जिस देश में नारी को देवी का दर्जा दिया जाता हो, उस देश में उसी देवी के साथ घिनौना कृत्य हो जाए, यह निश्चित ही हमारे समाज के लिए अत्यंत ही गंभीर बात है। सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति तो यह है कि ऐसे मामलों में राजनीतिक नफा नुकसान के हिसाब से विरोध और समर्थन किया जाता है। हमारे देश की सरकारें नारी सुरक्षा के नाम पर कई प्रकार के अभियान चलाती हैं, यहां तक कि दुष्कर्म करने वाले दरिन्दों के खिलाफ भी कठोर कानून बनाने की बात भी की जाती रही है, लेकिन यह बातें घटना हो जाने के बाद कुछ समय तक ही सुनाई देती हैं। बाद में देश फिर से उसी राह पर चलता हुआ दिखाई देता है, जिस रास्ते पर ऐसे गुनाह होते हैं। देश में कठोर कानून होने के बाद भी असामाजिक व्यक्ति दुष्कर्म जैसा घिनौना कृत्य करने की ओर प्रवृत हो जाते हैं। इसलिए सवाल यह आता है कि ऐसे कानून से क्या फायदा, जिसका डर ही न हो। ऐसे कानूनों की सिरे से समीक्षा होनी चाहिए।

जिस भारत में 'बेटी है तो कल है' और 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे नारे गुंजित होते हों, उसी भारत देश में एक पढ़ी लिखी बेटी दरिन्दों की हवस का शिकार हो जाती है। इतना ही नहीं उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। इससे व्यभिचार करने वालों की मानसिकता का पता चल जाता है। उनके मन में बहन बेटियों की इज्जत के कोई मायने नहीं हैं। इसकी शिकार केवल 27 वर्षीय हैदराबाद की वह युवती ही हुई है ऐसा नहीं है, ये दरिन्दे मासूम बच्चियों के साथ भी ऐसा ही खेल खेलते दिखाई देते हैं। देश में कई बार ऐसी दिल दहला देने वाली घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं, जिसमें कभी छह माह की बच्ची के साथ बलात्कार होता है तो कभी पांच साल की बच्ची ऐसे लोगों का शिकार बन जाती है। ऐसे वातावरण में किस प्रकार से बेटी की सुरक्षा की जाए। कैसे बेटी को पढ़ाया जाए, यह चिंतन की बात है।

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इस दर्दनाक और शर्मनाक घटना के बाद सवाल यह भी उठ रहा है कि एक विशेष समुदाय के साथ घटित होने वाली ऐसी घटनाओं के बाद आसमान सिर पर उठाने वाली वे संस्थाएं अब चुप क्यों हैं, जो न्याय की मांग करती हैं। अब मोमबत्ती लेकर सड़कों पर क्यों नहीं आ रहे हैं? कहा जा रहा है कि इस कांड में जो अपराधी हैं, वह एक विशेष वर्ग से संबंधित हैं, इसलिए भी इनके विरोध में उतनी आवाज नहीं उठाई जा रही है जितनी उठाई जानी चाहिए। यह विसंगति ही है कि ऐसे मामलों को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। वास्तव में व्यभिचारी किसी भी समुदाय का हो, हमारे समाज और नारी सम्मान के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं को उसके विरोध में तीव्रतम आवाज मुखरित करनी ही चाहिए। ऐसे में उन सभी संगठनों को भी आगे आना चाहिए, जो हर बार सड़क पर आते हैं। नहीं तो अन्याय करने वालों के हौसले और ज्यादा बढ़ते जाएंगे और फिर किसी युवती को ऐसी ही दरिन्दगी का शिकार होना पड़ेगा।

इस घटना को लेकर जो बातें सामने आ रही हैं, उसे सच माना जाए तो यही लगता है कि हैदराबाद की युवती के साथ इस प्रकार का कृत्य करने के लिए पहले से ही योजना बन गई थी। उसके स्कूटर को अपराधियों ने पंचर कर दिया था, फिर उसे पंचर बनाने में मदद करने के नाम पर समाज के कुछ व्यक्ति सुनसान स्थान पर ले गए। इस दौरान युवती ने अपने घर भी फोन किया, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ और सात घंटे तक युवती के साथ दुष्कर्म करके उसे मौत के घाट उतार दिया। ऐसे में सवाल यह भी आता है कि क्या हमारे देश में बेटियां अकेले नहीं जा सकतीं, क्या वे इस देश में सुरक्षित हैं? ऐसी घटनाओं के बाद यह सवाल अनुत्तरित से लगते हैं।

हैदराबाद में चिकित्सक युवती के साथ घटित इस हृदय विदारक घटना के बाद भी शासन और प्रशासन की आंखें नहीं खुलीं। इसका ताजा उदाहरण यह है कि उसी क्षेत्र में ऐसा ही एक और मामला सामने आ गया। दूसरे दिन भी एक युवती की जली हुई लाश मिली। इसके बारे में भी यही कहा जा रहा है कि इस युवती के साथ भी दुष्कर्म हुआ है। सवाल यह है कि इस प्रकार के कृत्य कब तक होते रहेंगे। अगर ऐसे कृत्यों को रोकना है तो दुष्कर्मियों को ऐसी सजा देनी होगी, जिसे देखकर फिर किसी को देश की बेटियों के साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ करने का साहस न हो पाए। अगर ऐसा होता है तो फिर हम उस नारे के साथ न्याय कर पाएंगे, जिसमें कहा जाता है कि बेटी है तो कल है। वरना भारतीय नारियों के बारे में यही कहा जाना उचित होगा कि अबला तेरी यही कहानी।

-डॉ. वंदना सेन

(लेखिका सहायक प्राध्यापक और स्वतंत्र स्तंभकार हैं)

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