शिकागो की धर्मसभा की तालियों और ह्यूस्टन की सभा की तालियों में समानता
सारे पुराने नैरेटिव ध्वस्त हो गए। मोदी के नए भारत की तस्वीर उभर आई। विश्वगुरु भारत की पहली झलक। ह्यूस्टन अब विश्व इतिहास का ऐसा स्वर्णिम पृष्ठ बन गया है जहां से विश्व का नया इतिहास शुरू हो रहा है।
ये जो मुश्किलों का जो अम्बार है।
मेरे हौसलों की वही मीनार है।।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नयी कविता की ये दो पंक्तियाँ बहुत कुछ कहती हैं। ह्यूस्टन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की उपस्थिति में भारतीय प्रधानमंत्री का यह उद्घोष नए भारत का उद्घोष है। नए भारत का संकल्प है। यकीनन ह्यूस्टन में न कोई पारंपरिक प्रोटोकाल बचा और न ही कोई पुरानी कमजोरी नजर आयी। ऊर्जा और असीम संभावनाओं वाले भारत का जलवा। अमेरिका सहित विश्व भर की निगाहों में आश्चर्य। कौतूहल। विस्मय। विश्वगुरु भारत का यही स्वरूप कभी स्वामी विवेकानंद की संकल्पना में रहा होगा जब शिकागो की धर्मसभा में तालियां बजी होंगी। आज भारत के प्रधानमंत्री जब विश्वमहानायक के रूप में ह्यूस्टन के स्टेडियम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का परिचय करा रहे थे। उनके ही देश में खुद मेजबान बनकर उनका स्वागत कर रहे थे। जिसने भी इस दृश्य को देखा विस्मय में डूब गया। अद्भुत। अविस्मरणीय। अकल्पनीय।
हाउडी मोदी कार्यक्रम ने विश्व को नया इतिहास दिया, इसमें कोई संदेह नहीं। भारत और अमेरिका की ऐसी जुगलबंदी। गजब। एक तरफ प्रेसिडेंट ट्रम्प इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ हुंकार भर रहे थे तो दूसरी तरफ मोदी जी कश्मीर के विकास के लिए 370 के फेयरवेल की बात कह रहे थे। एक तरफ ट्रम्प दोनो देशों में रक्षा सहयोग और अंतरिक्ष सहयोग की बात कर रहे थे तो वहीं मोदी जी ऐलान कर रहे थे कि आतंकवाद के विरोध में प्रेसिडेंट ट्रम्प पूरे मन से साथ खड़े हैं। दोनों नेताओं के भाषण से भी ज्यादा आकर्षण भाषण के बाद भीड़ की परिक्रमा में दिखा। मोदी का हाथ पकड़े ट्रम्प पूरे गदगद भाव से कैसे स्टेडियम का चक्कर लगा रहे थे। मोदी जी तो ऐसे चल रहे थे जैसे ट्रम्प को चुनावी रैली में लोगों से कनेक्ट होने के गुर सिखा रहे हों। विश्व की राजनीति में किसी विश्लेषक ने शायद ही ऐसे दृश्य पहले कभी देखे हों। इसीलिए हाउडी मोदी कार्यक्रम के निहितार्थ अभी महीनों तक निकाले जाते रहेंगे।
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इस आयोजन ने विश्व मंच पर नए भारत को स्थापित किया है। यह नया भारत ऐसा है जो अब सीधे बड़ी से बड़ी चुनौतियों से टकराने वाला है। यह न रुकने वाला है न ही झुकने वाला है। इस भारत की शक्ति और क्षमता को देख कर दुनिया दंग है। अब जरा इस आयोजन के परिवेश पर नजर डालिये, बहुत कुछ साफ़ होता दिखने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात दिन (21-27 सितंबर तक) के दौरे पर अमेरिका में हैं। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ ह्यूस्टन में भारतीय समुदाय को उनका संबोधित करना कई मायने में अहमियत रखता है। मोदी अमेरिका में करीब 20 द्विपक्षीय बैठकों में हिस्सा लेंगे। साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र को संबोधित करेंगे। ह्यूस्टन के सन्देश को दुनिया ने बहुत सलीके से पढ़ा है। विश्व में मोदी की शक्ति को दुनिया ने स्वीकारा है। यह वह दौर है जब दुनिया में राष्ट्रवादी राजनीति का चलन बढ़ा है और उसके पैरोकार के रूप में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के नाम सामने आते हैं। इन सभी की राजनीति की प्रकृति कमोबेश एक जैसी है। लिहाजा ये सभी एक-दूसरे के करीब रहेंगे ही। नेतन्याहू यद्यपि चुनाव हर चुके हैं लेकिन इजरायल का नया निजाम भी मोदी का प्रशंसक है। इस समय दुनिया का कोई नेता इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि मोदी ने अपने दूसरे चुनाव में पहले की अपेक्षा ज्यादा बहुमत हासिल किया। ट्रम्प हमेशा से उन नेताओं के मुरीद रहे हैं, जिन्होंने जनता के बीच करिश्मा कायम रखा। ओसाका (जापान) में जी-20 समिट के दौरान ट्रम्प ने कहा भी था कि मैं मोदी के व्यक्तित्व से प्रभावित रहता हूं। जब भी उनसे मिलता हूं तो ऊर्जा प्राप्त करता हूं। इससे लगता है कि ट्रम्प मोदी की पर्सनैलिटी को फॉलो करते हैं। इसे प्रधानमंत्री मोदी के उस वाक्य से भी समझा जाना चाहिए जिसमे वह ट्रम्प द्वारा टफ निगोशियेटर और फिर तेज बारगेनेर की चर्चा कर रहे थे।
अब एक नजर अमेरिकी राजनीतिक स्थिति पर डाली जाये। 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में देखा गया कि ज्यादातर भारतीय-अमेरिकी ट्रम्प के पक्ष में देखे गए। भारतवंशियों की ट्रम्प को जिताने के लिए हवन-पूजा करती तस्वीरें सामने आई थीं। अब मोदी ह्यूस्टन में ट्रम्प के साथ भारतीय समुदाय के बीच पहुंचे। ह्यूस्टन का हाउडी मोदी कार्यक्रम न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वेयर (2014) के प्रोग्राम से अलग है। न्यूयॉर्क का कार्यक्रम भारतवंशियों से मुलाकात का कह सकते हैं। तब अमेरिका में रहने वाले भारतीय अमेरिकी चाहते थे कि उनका (भारत का) नेता उनसे मिले। अटल बिहारी वाजपेयी के समय यह परंपरा (अमेरिका के भारतवंशियों से मिलने की) शुरू हुई थी, लेकिन बाद में कमजोर पड़ती गई। अब जो भारतीय हैं, वे मोदी यानी भारत के सबसे बड़े नेता को दुनिया के सामने रॉकस्टार की तरह दिखाना चाहते हैं। 60 हजार लोगों ने मोदी के कार्यक्रम (हाउडी मोदी) के लिए बुकिंग कराई। हम अंदाजा लगा सकते हैं कि 60 हजार का मेंडेट कहां तक जाएगा। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद मोदी वैश्विक नेता के रूप में सामने आए हैं।
उधर ट्रम्प को दो उद्देश्य पूरे करने हैं। पहला- उन्हें दिखाना है कि वे प्रो-मोदी हैं। दूसरा- इस एटीट्यूड को आगे चलकर उन्हें अपने वोट में बदलना है। यहाँ ध्यान देने की बात है कि 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी- अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मामले की असलियत समझाना। क्योंकि पाकिस्तान ने कश्मीर को दुनिया में मानवाधिकार हनन का प्रोपैगेंडा बना रखा था। अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद आज भारत विजेता की स्थिति में है। अरब देश, यूरोपीय यूनियन, अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन सभी भारत के साथ खड़े नजर आते हैं। अब मोदी का अमेरिका दौरा भारत के नेता के तौर पर नहीं, बल्कि भारत को डिप्लोमैटिक विक्टोरियस नेशन (देश को कूटनीतिक जीत दिलाने वाले) बनाने वाले नेता के तौर पर हो रहा है। इसीलिए इस कार्यक्रम के बाद कुछ विशेषज्ञों ने कूटनीतिक स्ट्राइक की भी संज्ञा दे डाली।
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वस्तुतः यह दो महाशक्तियों का नया गठबंधन है जिसे दुनिया ने देखा। ट्रम्प ने तो डंके की चोट पर ऐलान भी किया कि भारत के साथ अमेरिका की इतनी गहरी दोस्ती इससे पहले कभी नहीं थी। यह दोस्ती अभी और भी प्रगाढ़ होने वाली है। इस्लामिक आतंकवाद के खात्मे की लड़ाई में अभी बहुत कुछ होना है। ट्रम्प ने एक-एक कर अपनी प्राथमिकताएं गिनायीं और मोदी जी के नेतृत्व में भारत की प्रगति की खुद ही बड़ी आख्या भी प्रस्तुत कर डाली। यह विश्लेषण योग्य बिंदु है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जिस अंदाज में अपनी सरकार की उपलब्धियां सामने रखीं तथा भारत से नए भारत की तीव्रगामी यात्रा का वृत्तांत प्रस्तुत किया वह विलक्षण रहा।
ऊर्जा और उत्साह से लबरेज भारतीय प्रधानमंत्री का गेस्चर देखने लायक था। यह गर्व का क्षण था। विश्वमंच पर भारत की ऐसी धाक पहली बार उभरी जिस पर दुनिया अब चर्चा करेगी। सारे पुराने नैरेटिव ध्वस्त हो गए। मोदी के नए भारत की तस्वीर उभर आई। विश्वगुरु भारत की पहली झलक। ह्यूस्टन अब विश्व इतिहास का ऐसा स्वर्णिम पृष्ठ बन गया है जहां से विश्व का नया इतिहास शुरू हो रहा है।
-संजय तिवारी
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