सोमनाथ से अयोध्या तक... तुष्टिकरण की राजनीति पर कायम है कांग्रेस

Somnath Ayodhya temple
Prabhasakshi

वर्तमान में देश में राम नाम की प्रचंड लहर के चलते अब कांग्रेस नेता, समर्थक और मीडिया का एक वर्ग यह साबित करने में जुटा है कि राम मंदिर में कांग्रेस का भी योगदान है। जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि, कांग्रेस ने राम के नाम पर घिनौनी राजनीति का प्रदर्शन किया है।

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी शामिल नहीं होंगी। कांग्रेस भले ही राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के शुभ अवसर को भाजपा और आरएसएस को इवेंट बताती रहे। लेकिन कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी बनाकर वही गलती की है, जो गलती कभी पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी। उस वक्त पंडित नेहरू सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में नहीं गए थे। असल में मुस्लिम तुष्टिकरण उसके एजेंडे में प्रथम स्थान पर है। उसके एजेंडे में न सोमनाथ था और न ही अयोध्या है।

इतिहास के पन्ने पलटे तो स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल ने मुहम्म्द गजनवी द्वारा तोड़े गए भगवान सोमनाथ के मंदिर का पुनः निर्माण कराया था। सोमनाथ मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होने तक सरदार स्वर्गवासी हो गए तो कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा 11 मई 1951 को सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन कराया। उस समय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के विरोध के बावजूद डॉ. राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ गए।

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वर्तमान में देश में राम नाम की प्रचंड लहर के चलते अब कांग्रेस नेता, समर्थक और मीडिया का एक वर्ग यह साबित करने में जुटा है कि राम मंदिर में कांग्रेस का भी योगदान है। जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि, कांग्रेस ने राम के नाम पर घिनौनी राजनीति का प्रदर्शन किया है। एक ऐसी राजनीति जिसने राम मंदिर मुद्दे को उलझाने का काम किया। कांग्रेस ने हमेशा वोट बैंक की राजनीति करते हुए केवल तुष्टिकरण का ही सहारा लिया। राम मंदिर केस में कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि अयोध्या मामले की जांच को कोर्ट 2019 के आम चुनाव तक टाल दे। 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस मामले में हलफनामा दाखिल कर सेतु समुद्रम परियोजना के लिए राम सेतु को तोड़ कर तय वर्तमान मार्ग से ही लागू किये जाने पर जोर देते हुए कहा था कि भगवान राम के अस्तित्व में होने के बारे में कोई पुख्ता साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। ये भी कहा था कि रामायण महज कल्पित कथा है।

हिंदू विरोध की भावना कांग्रेस के डीएनए में है। आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने पहली लोकसभा में 1955-56 में हिंदू कोड बिल्स पास किए। इस बिल को लेकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच राजनीतिक मतभेद उत्पन्न हो गया था। इसकी एक बड़ी वजह दोनों का धर्म को लेकर रवैया था। वर्ष 1976 में इंदिरा ने देश में आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में संशोधन किया, जिसमें सेक्युलर शब्द शामिल किया गया था। जिसका मतलब था कि भारत हिन्दू देश होते हुए भी हिन्दू देश नहीं कहा जा सकता। 1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यह कानून तब लाया गया जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम सीमा पर था।

स्वतंत्रता के बाद से वंदे मातरम राष्ट्रगान है। इसे लेकर कहा जाता है कि जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध किया था। उन्होंने इसे मुसलमानों के विरोध में बताया था। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में तत्कालीन शिक्षा मंत्री मोहम्मद करीम छागला राज्यसभा में एक प्रस्ताव लाये थे जिसमें काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदू शब्द हटाने की बात कही गई थी, जबकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से मुस्लिम शब्द हटाने की बात नहीं थी। इसके विरोध में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बेनियाबाग मैदान में 1965 में सभा की थी। साल 1966 को गोहत्या रोकने के लिए कानून बनाने की मांग कर रहे निहत्थों संतों पर इंदिरा गांधी सरकार ने गोलियां चलवाई थी। वर्ष 1976 में इंदिरा ने देश में आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में संशोधन किया, जिसमें सेक्युलर शब्द शामिल किया गया था। जिसका मतलब था कि भारत हिन्दू देश होते हुए भी हिन्दू देश नहीं कहा जा सकता।

कांग्रेस सरकार द्वारा 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट लागू किया गया। पूजा स्थल कानून कहता है कि पूजा स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 में थी वही रहेगी। इस कानून की परिधि से अयोध्या की राम जन्मभूमि को अलग रखा गया है। कानून कहता है अयोध्या राम जन्म भूमि मुकदमे के अलावा जो भी मुकदमे हैं वे समाप्त समझे जाएंगे। यह कानून अदालत के जरिये अपने धार्मिक स्थलों और तीर्थों को वापस पाने के अधिकार से वंचित करता है। कानून आक्रांताओं के गैर कानूनी कृत्यों को कानूनी मान्यता देता है। कानून हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों को अपने पूजा स्थलों और तीर्थों का वापस कब्जा पाने से वंचित करता है जबकि मुसलमानों को वक्फ कानून की धारा सात के तहत ऐसा अधिकार मिला हुआ है।

वर्ष 1992 में अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, इस कानून ने अल्पसंख्यक लोगों को बढ़ावा दिया और हिंदुओं को बांट दिया। भारत के अधिकांश मंदिरों पर सरकारों का नियंत्रण है। लेकिन, इसी देश में वक्फ एक्ट के तहत वक्फ बोर्ड को इतनी असीमित ताकतें दी गई हैं कि वो तमिलनाडु के तिरुचेंथुरई में स्थित एक 1500 साल पुराने मंदिर समेत पूरे गांव पर ही दावा ठोक सकता है। वक्फ बोर्ड के पास भारतीय सेना और रेलवे के बाद सबसे बड़ी मात्रा में जमीन है।

नवंबर 2004 में कांग्रेस के सत्ता में आने के कुछ महीनों के अंदर ही दिवाली के मौके पर कांची कोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को हत्या के एक केस में गिरफ्तार करवाया गया। यूपीए सरकार के दौरान मालेगांव ब्लास्ट मामले में उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को फंसाने की साजिश रची गई थी। समझौता ब्लास्ट केस में पाकिस्तानी आतंकवादी पकड़ा गया था, उसने अपना गुनाह भी कबूल किया था, लेकिन महज 14 दिनों में उसे चुपचाप छोड़ दिया। इसके बाद इस केस में स्वामी असीमानंद को फंसाया गया।

साल 2006 में मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। 16 मई, 2016 को तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी। सुनवाई के दौरान कांग्रेस नेता और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने तीन तलाक और हलाला जैसी घटिया परंपराओं की तुलना भगवान राम के अयोध्या में जन्म से कर डाली। 2016 में उत्तराखंड में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हर शुक्रवार मुस्लिमों को 90 मिनट का अतिरिक्त अवकाश देने का निर्णय किया। कांग्रेस सरकार ने ही हज पर जाने वाले मुसलमानों को सब्सिडी देने की शुरुआत की थी। दुनिया में किसी और देश में यह नियम कानून नहीं था। कांग्रेस ने अमरनाथ यात्रा पर टैक्स लगाया।

जुलाई, 2009 को राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर से कहा था, ‘भारत विरोधी मुस्लिम आतंकवादियों और वामपंथी आतंकवादियों से बड़ा खतरा देश के हिन्दू हैं।’ राहुल गांधी के बयान मंदिर जाने वाले छेड़खानी करते हैं, को भला कौन भूल सकता है। साल 2018 में तुगलक लेन स्थित अपने निवास पर राहुल गांधी ने लगभग दो घंटे तक मुस्लिमों नेताओं के साथ बैठक की। इस दौरान मुस्लिम नेताओं ने राहुल से आपत्ति दर्ज कराई और कहा कि आप तो सिर्फ मंदिर जा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने तो मुसलमानों को भुला ही दिया है। मुस्लिम नेताओं की बात सुनकर राहुल गांधी ने कहा कि मैं कर्नाटक में कई मस्जिदों में भी गया हूं। अब मस्जिदों में लगातार जा रहा हूं।

कांग्रेस और इंडिया गठबंधन में शामिल घटक दलों के कई नेता राम मंदिर और सनातन धर्म पर आपत्तिजनक बयानबाजी कर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व की चुप्पी पूरे हिंदू समाज को अखरती है। इससे यह संदेश भी जाता है कि अर्नगल बयानबाजी करने वालों को आलाकमान का समर्थन और मूक सहमति प्राप्त है। वास्तव में, सोमनाथ से अयोध्या तक कांग्रेस का चरित्र बिल्कुल भी बदला नहीं है। आम चुनाव सिर पर हैं। बड़ी सभांवना इस बात की है कि आने वाले दिनों में मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस अपने मूल चरित्र का बढ़-चढ़कर प्रदर्शन करेगी।

-आशीष वशिष्ठ

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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