राजस्थान में आंतरिक संकट सुलझाने की कगार पर पहुँच चुकी है कांग्रेस
कांग्रेस आलाकमान अब राजस्थान में गहलोत व पायलट के बीच चल रहे सत्ता के संघर्ष को पूरी तरह समाप्त करवाना चाहता है। इसीलिए सोनिया गांधी ने अचानक ही पार्टी के सबसे प्रभावशाली संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को गहलोत के नाम अपना संदेश देकर जयपुर भेजा था।
राजस्थान कांग्रेस में पिछले एक साल से चल रहे आंतरिक संघर्ष के समाधान होने के आसार नजर आने लगे हैं। हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल व राजस्थान के प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन ने जयपुर का दौरा कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य व जयपुर में उपस्थित मंत्रियों, विधायकों से व्यक्तिगत चर्चा कर उनसे सरकार व संगठन के बारे में फीडबैक लिया। दिल्ली से आए दोनों वरिष्ठ नेताओं ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनके सरकारी आवास पर करीबन ढाई घंटे तक चर्चा की व उन तक कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी का संदेश पहुंचाया।
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राजस्थान कांग्रेस में पिछले वर्ष जून माह में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व उप मुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट ने अपने समर्थक 18 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्यप्रणाली से नाराज होकर पार्टी से बगावत कर दी थी। उस दौरान सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के गुड़गांव स्थित एक होटल में एक महीने तक ठहरे थे। उस वक्त मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांगेस आलाकमान से सचिन पायलट की बगावत की शिकायत कर पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व उप मुख्यमंत्री के पद से तथा उनके समर्थक रमेश मीणा व महाराजा विश्वेंद्र सिंह को कैबिनेट मंत्री के पद से बर्खास्त करवा दिया था। पायलट की बगावत से प्रदेश में कांग्रेस पार्टी भारी दबाव में आ गई थी। उस वक्त कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व राहुल गांधी से बात कर सचिन पायलट को फिर से कांग्रेस के साथ आने के लिए तैयार किया था।
प्रियंका गांधी के आश्वासन पर सचिन पायलट ने अपनी बगावत समाप्त कर विधानसभा में कांग्रेस के विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था। पायलट की बगावत को समाप्त करवाने के दौरान कांग्रेस आलाकमान ने अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल और अजय माकन की तीन सदस्यों की हाई पावर कमेटी का गठन किया था। कमेटी को पायलट की बातें सुनकर उसका समाधान करवाने व गहलोत व पायलट में सामंजस्य करवाने की जिम्मेदारी दी गई थी। उक्त कमेटी की मीटिंग होने से पहले ही कमेटी के सबसे वरिष्ठ सदस्य अहमद पटेल का कोरोना से निधन हो गया था। उसके बाद कमेटी के सदस्य केसी वेणुगोपाल व अजय माकन ने कोई बैठक नहीं की थी। सचिन पायलट की मांगों पर गौर करके उसका समाधान भी नहीं करवाया गया। इससे पायलट समर्थक विधायकों व अन्य वरिष्ठ नेताओं में नाराजगी व्याप्त हो रही थी। दूसरी तरफ कांग्रेस के युवा नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के भाजपा में जाने से कांग्रेस पर दबाव बढ़ गया।
इधर पंजाब में भी कांग्रेस आलाकमान द्वारा नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने वीटो कर रखा था। जिससे पंजाब कांग्रेस की लड़ाई भी खुलकर सड़कों पर आ गई थी। चूंकि पंजाब में अगले 6 महीनों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने सबसे पहले पंजाब समस्या का समाधान करवाते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह की मर्जी के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना कर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी आलाकमान की ताकत का एहसास करा दिया। पार्टी आलाकमान के इशारे पर पंजाब के 80 में से 65 कांग्रेस विधायक नवजोत सिंह सिद्धू के समर्थन में आ गए थे। इससे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भारी दबाव में आ गए और अंततः अपनी कुर्सी बचाने के लिए उन्हें आलाकमान का फैसला मानते हुए सिद्धू को अध्यक्ष बनाने की रजामंदी देनी पड़ी थी।
पंजाब जैसे ही हालात राजस्थान में बने हुए हैं। यहां भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के बहुत वरिष्ठ नेता हैं तथा तीसरी बार मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाले हुए हैं। एक साल पहले सचिन पायलट की बगावत के दौरान मुख्यमंत्री गहलोत ने कांग्रेस आलाकमान को अपने तर्कों से पायलट के खिलाफ कर दिया था। मगर पायलट द्वारा पार्टी नहीं छोड़ने से सोनिया गांधी को पायलट की अहमियत व वफादारी का एहसास हो गया। इसीलिए उन्होंने सचिन पायलट को फिर से पार्टी की मुख्यधारा में लाने के लिए पहले उनसे मध्य प्रदेश विधानसभा के उपचुनाव में स्टार प्रचारक के तौर पर चुनाव प्रचार करवाया। फिर उनको असम विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारक बनाकर भेजा गया।
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कांग्रेस आलाकमान अब राजस्थान में गहलोत व पायलट के बीच चल रहे सत्ता के संघर्ष को पूरी तरह समाप्त करवाना चाहता है। इसीलिए कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अचानक ही पार्टी के सबसे प्रभावशाली संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को गहलोत के नाम अपना संदेश देकर जयपुर भेजा था। गहलोत को भेजे संदेश में सोनिया गांधी ने साफ बता दिया कि गहलोत व पायलट के झगड़े से प्रदेश में पार्टी को बहुत नुकसान हो रहा है। कांग्रेस आलाकमान अब आगे और झगड़े को लंबा नहीं चलने देने के मूड में है। ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पायलट समर्थकों को सरकार व संगठन में शामिल करना पड़ेगा।
चर्चा है कि जयपुर आने से पहले केसी वेणुगोपाल व अजय माकन की सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी से राजस्थान को लेकर लंबी चर्चा हो चुकी है। कांग्रेस आलाकमान ने केसी वेणुगोपाल को पूरा ब्लूप्रिंट बता दिया है कि राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच सत्ता व संगठन का बंटवारा किस तरह से किया जाना है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पायलट के प्रति पूरी तरह खार खाए हुए बैठे थे। मगर कांग्रेस आलाकमान का रुख भांप कर अपने तेवर नरम कर लिए हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने पंजाब में सिद्धू की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी का भी स्वागत करते हुए ट्वीट किया था कि कांग्रेस आलाकमान का फैसला सभी को मानना चाहिए।
राजस्थान मंत्रिमंडल में अभी नौ स्थान रिक्त हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वर्तमान में किसी मंत्री को पद से नहीं हटाना चाहते हैं। मगर कांग्रेस आलाकमान के पास कुछ मंत्रियों के खिलाफ गंभीर शिकायतें पहुंची हैं। ऐसे में चर्चा है कि 6-7 वर्तमान मंत्रियों को हटाकर करीबन 13-14 नए लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। जिनमें बसपा से कांग्रेस में आये राजेन्द्र सिंह गुढ़ा व एक दो निर्दलियों को भी मंत्री बनाया जायेगा। छत्तीसगढ़ की तर्ज पर राजस्थान में भी करीबन 20 से 25 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने तथा दो दर्जन विधायकों को बोर्डों, निगमों व अन्य लाभ के पदों पर बैठाने की चर्चा है। हालांकि सचिन पायलट खुद मंत्री नहीं बनना चाहते हैं। वह अपने समर्थक 6-7 विधायकों को मंत्री बनवाना चाहते हैं। ऐसे में आने वाले कुछ ही दिनों में प्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार व पुनर्गठन के साथ ही लाभ के पदों पर भी नियुक्तियां की जाएंगी। जिसका कांग्रेसी कार्यकर्ता पिछले ढाई साल से इंतजार कर रहे हैं।
यदि राजस्थान में कांग्रेस की आपसी गुटबाजी को शीघ्र ही समाप्त नहीं करवाया गया तो आने वाले समय में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। वैसे भी 1998 के बाद से प्रदेश में एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा सरकार बनाती रही है। यदि कांग्रेस के नेता इसी तरह लड़ते रहे तो अगली बार कांग्रेस की लड़ाई का फायदा भाजपा उठा सकती है। इसलिए सभी कांग्रेसजनों को एकजुटता के साथ प्रदेश में भाजपा से मुकाबला करना होगा। तभी कांग्रेस लगातार दूसरी बार सरकार बना कर वर्षों से चली आ रही हर बार सरकार बदलने की परिपाटी को तोड़ सकती है।
-रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)
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