वाकई जादूगर हैं अशोक गहलोत, पायलट को छकाने के चक्कर में बसपा को साफ कर दिया

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अशोक गहलोत की अगली परीक्षा अब कुछ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव और 52 नगर निगमों के चुनावों में होनी है। अगले साल जनवरी में पंचायत चुनाव भी होने हैं। माना जा रहा है कि इन चुनावों के परिणाम राज्य सरकार के कामकाज पर जनता की राय होंगे।

राजनीति बड़ी गजब की चीज है। कुछ सप्ताह पहले जब गोवा में दस कांग्रेस विधायकों ने भाजपा का दामन थामा था तो कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि सत्तारुढ़ पार्टी खरीद-फरोख्त की राजनीति कर रही है। अब जब राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी के छह के छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये हैं तो कांग्रेस कह रही है कि यह विधायक विकास के लिए राज्य सरकार के साथ जुड़े हैं। वाह गहलोत जी वाह ! आपको वैसे ही जादूगर नहीं कहा जाता। अशोक गहलोत ने जो आज किया है ठीक वैसा ही कारनामा उन्होंने वर्ष 2008 में तब दिखाया था जब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के हिस्से में 96 और भाजपा के हिस्से में 78 सीटें आई थीं। 200 सदस्यीय राज्य विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 100 का आंकड़ा पार करना जरूरी था और उस समय जनता ने बसपा के 6 विधायक चुन कर भेजे थे। अशोक गहलोत ने कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए छह के छह बसपा विधायकों को कांग्रेस में शामिल करा लिया था और उन सभी को मंत्री बनाया था। अब एक बार उन्होंने अपना पुराना इतिहास खुद दोहरा दिया है।

2018 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बहुमत तो हासिल करने में सफल रही थी लेकिन पार्टी के 101 सदस्यीय विधायक दल में उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट के समर्थकों की संख्या ज्यादा थी और इसीलिए जब-तब अशोक गहलोत की कुर्सी डोलने लगती थी। अब बसपा के 6 विधायकों का लाकर अशोक गहलोत ने विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति को तो मजबूत किया ही है, अपनी कुर्सी भी पहले से ज्यादा मजबूत कर ली है। सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच शह-मात का खेल सरकार बनने से पहले से चल रहा है और फिलहाल इस खेल में गहलोत भारी पड़ गये हैं।

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अशोक गहलोत की अगली परीक्षा अब कुछ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव और 52 नगर निगमों के चुनावों में होनी है। अगले साल जनवरी में पंचायत चुनाव भी होने हैं। माना जा रहा है कि इन चुनावों के परिणाम राज्य सरकार के कामकाज पर जनता की राय होंगे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मान कर चल रहे हैं कि बसपा विधायक दल के पूर्ण रूप से कांग्रेस में विलय से बसपा का वोट बैंक कांग्रेस के साथ इन चुनावों में जुड़ सकता है। लेकिन अशोक गहलोत यहीं गलती कर रहे हैं। बसपा का वोटबैंक बड़ा प्रतिबद्ध है। वह जब तक बहनजी नहीं चाहें, तब तक इधर से उधर नहीं होता। चुनाव आते जाते रहे, बसपा का वोटबैंक लगभग वहीं का वहीं रहा। बसपा के टिकट पर चुने गये विधायक भले दूसरी जगह चले गये लेकिन इस प्रतिबद्ध वोटबैंक ने पार्टी के दूसरे उम्मीदवारों को चुन कर भेज दिया।

अशोक गहलोत ने जब राजस्थान विधानसभा को बसपा मुक्त किया तो पार्टी मुखिया मायावती की स्वाभाविक प्रतिक्रिया सामने आई। उन्होंने बेहद तीखी प्रतिक्रिया देते हुये कांग्रेस को गैर-भरोसेमंद और धोखेबाज करार दिया है। मायावती ने अपना गुस्सा दिखाते हुए एक के बाद एक तीन ट्वीट किये। उनका पहला ट्वीट कहता है- ‘‘राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने एक बार फिर बसपा के विधायकों को तोड़कर गैर-भरोसेमन्द एवं धोखेबाज पार्टी होने का प्रमाण दिया है। यह बसपा मूवमेन्ट के साथ विश्वासघात है जो दोबारा तब किया गया है जब बसपा वहां कांग्रेस सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन दे रही थी।''

मायावती अपने दूसरे ट्वीट में कहती हैं- '‘कांग्रेस अपनी कटु विरोधी पार्टी/संगठनों से लड़ने की बजाए हर जगह उन पार्टियों को ही सदा आघात पहुंचाने का काम करती है जो उन्हें सहयोग/समर्थन देते हैं। कांग्रेस इस प्रकार एससी, एसटी, ओबीसी विरोधी पार्टी है तथा इन वर्गों के आरक्षण के हक के प्रति कभी गंभीर एवं ईमानदार नहीं रही है।’’

मायावती अपने तीसरे ट्वीट में कहती हैं- ‘‘कांग्रेस हमेशा ही बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर एवं उनकी मानवतावादी विचारधारा की विरोधी रही। इसी कारण डॉ. आम्बेडकर को देश के पहले कानून मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। कांग्रेस ने उन्हें न तो कभी लोकसभा में चुन कर जाने दिया और न ही भारत रत्न से सम्मानित किया। अति-दुःखद एवं शर्मनाक।''

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देखा जाये तो 2018 में तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद बसपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन दे दिया था लेकिन कांग्रेस ने मायावती की पार्टी के साथ जो कुछ राजस्थान में किया है वैसा ही मध्य प्रदेश में भी दोहराया जा सकता है। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले तक कांग्रेस जिस विपक्षी एकता की बात कर रही थी उसे अब खुद तोड़ती जा रही है। हाल ही में कर्नाटक में कांग्रेस के नेताओं ने जनता दल सेक्युलर के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार गिरा दी और अब राजस्थान में बसपा के साथ जो हश्र किया गया वह अन्य राज्यों में अन्य सहयोगियों के साथ भी किया जा सकता है। देखा जाये तो कांग्रेस का अपने घटक दलों के साथ इस तरह के व्यवहार का पुराना इतिहास रहा है।

बहरहाल...लोकसभा चुनावों के बाद विभिन्न राज्यों से विभिन्न पार्टियों के सांसद, विधायक जब भाजपा में शामिल हो रहे थे तो कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं ने अपने बयानों में कहा था- हॉर्स ट्रेडिंग हो रही है, लोकतंत्र की हत्या हो रही है, सरकारी एजेंसियों का डर दिखा कर भाजपा में शामिल कराया जा रहा है...लेकिन अब राजस्थान की घटना को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि जिनके घर शीशे के होते हैं उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए।

-नीरज कुमार दुबे

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