भारतीय राजनीति के जेंटलमैन, प्रखर वक्ता और यारों के यार थे जेटली

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नरेंद्र मोदी वैसे तो लालकृष्ण आडवाणी के प्रिय शिष्य रहे लेकिन जब मोदी ने दिल्ली की राजनीति में कदम रखना चाहा तो आडवाणी से पहले जैसे संबंध नहीं रहे। लेकिन इस दौरान भी अरुण जेटली पूरी तरह मोदी के साथ खड़े रहे।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का नयी दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में 66 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से लगातार अस्वस्थ चल रहे थे और उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया था। सांस लेने में परेशानी होने और बेचैनी महसूस होने के बाद उन्हें नौ अगस्त को अस्पताल में भर्ती किया गया था। डॉक्टरों के लगातार प्रयासों के बावजूद जेटली को बचाया नहीं जा सका। यह जेटली का बड़ा राजनीतिक कद ही था कि अस्पताल में उनका हाल जानने आने वालों में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित कई केंद्रीय मंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, भाजपा सांसद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत समेत संघ के कई बड़े नेतागण, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, कई राज्यों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री, बसपा प्रमुख मायावती, कांग्रेस और अन्य पार्टियों के बड़े नेता तथा एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ आदि शामिल थे।

अरुण जेटली का स्वास्थ्य पिछले कुछ समय से खराब चल रहा था और इस वर्ष जब लोकसभा चुनावों से पहले फरवरी में मोदी सरकार ने अंतरिम बजट पेश किया था तब अरुण जेटली की जगह कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बजट प्रस्तुत किया था। खराब स्वास्थ्य के कारण ही जेटली ने 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा और मोदी सरकार-2 में शामिल भी नहीं हुए थे। पिछले साल 14 मई को एम्स में अरुण जेटली के गुर्दे का प्रतिरोपण हुआ था। उस समय भी रेल मंत्री पीयूष गोयल को उनके वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गयी थी। अरुण जेटली के स्वास्थ्य में गिरावट पिछले साल मार्च से आनी शुरू हुई थी जिसके बाद वह अप्रैल की शुरुआत से ही कार्यालय नहीं आ रहे थे और फिर गुर्दा प्रतिरोपण के बाद वापस 23 अगस्त 2018 को वित्त मंत्रालय आए थे। लंबे समय तक मधुमेह रहने से वजन बढ़ने के कारण सितंबर 2014 में अरुण जेटली ने बैरिएट्रिक सर्जरी भी करायी थी।

अरुण जेटली भारतीय राजनेताओं में जेंटलमैन की छवि रखते थे और उनका हमेशा यह मानना रहा कि राजनीति पार्ट टाइम ड्यूटी नहीं है। इसलिए जब वह वकालत में रहे तो पूरी तरह उस पेशे के साथ ही न्याय किया और जब राजनीति में अहम पदों पर रहे तो उन पदों के साथ पूरा न्याय किया। ईमानदार, स्पष्ट वक्ता, गंभीर मुद्दों की गहरी जानकारी रखने वाले, कुशल संगठनकर्ता, चुनाव अभियान संचालनकर्ता, कुशल खेल प्रशासक, छात्र राजनीति से केंद्रीय राजनीति में अपनी मेहनत से बड़ा मुकाम बनाने वाले नेता, बेकार की बयानबाजी नहीं करने वाले और सभी को सम्मान के साथ संबोधित करने वाले, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष, नेता पक्ष, केंद्रीय मंत्री पदों पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ने वाले, अच्छे कामों के लिए हमेशा अधिकारियों को प्रोत्साहित करने वाले और अपने ब्लॉगों के जरिये मुद्दों का सटीक विश्लेषण करने वाले अरुण जेटली की कमी भारतीय राजनीति को बहुत खलेगी। इससे भी ज्यादा उनकी कमी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अखरेगी क्योंकि जेटली उनके अभिन्न मित्र थे। जिन पर वह पूरा भरोसा करते थे और जेटली भी मोदी के साथ हमेशा खड़े रहे।

तत्कालीन भाजपा महासचिव नरेंद्र मोदी को जब गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर दिल्ली से गांधीनगर भेजा गया था तब अरुण जेटली को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री बनाया गया था। उस समय उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली हर मौके पर मोदी के साथ खड़े रहे और इस बात का गुणगान करते रहे कि कैसे मोदी के राज में गुजरात हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है। अरुण जेटली उस समय चूंकि किसी सदन के सदस्य नहीं थे इसलिए मोदी ने अपने मित्र को गुजरात से राज्यसभा जाने का मौका दिया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार को कई मुद्दों को लेकर बदनाम करने का प्रयास किया गया और गुजरात दंगों, पुलिस मुठभेड़ों आदि के अलावा कई ऐसे मुद्दे रहे जिनके माध्यम से गुजरात सरकार खासकर नरेंद्र मोदी और गुजरात के गृहमंत्री रहे अमित शाह को घेरने का प्रयास किया गया। लेकिन इन सब मामलों में अरुण जेटली ने ना सिर्फ पूरी कानूनी सलाह मुहैया कराई बल्कि दिल्ली की राजनीति में मोदी सरकार का पूरी तरह से बचाव किया।

नरेंद्र मोदी वैसे तो लालकृष्ण आडवाणी के प्रिय शिष्य रहे लेकिन जब मोदी ने दिल्ली की राजनीति में कदम रखना चाहा तो आडवाणी से पहले जैसे संबंध नहीं रहे। लेकिन इस दौरान भी अरुण जेटली पूरी तरह मोदी के साथ खड़े रहे और भाजपा की ओर से उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। मोदी ने 2014 में लोकसभा चुनाव प्रचार कार्य की रूपरेखा तैयार करने और निगरानी का काम अपने विश्वस्त अरुण जेटली को सौंप दिया और उन्हें अमृतसर से लोकसभा चुनाव भी लड़वाया। यदि आपको ध्यान हो तो मोदी जब 2014 के चुनाव प्रचार में मशगूल थे तो वह हर रैली में इस बात का ऐलान करते थे कि वह सरकार में आने के बाद कैसे अच्छे दिन लाएंगे लेकिन अमृतसर में चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपने बारे में कुछ नहीं कहते हुए सिर्फ अरुण जेटली की ही तारीफ की थी और उन्हें अपने से ज्यादा बेहतर नेता बताया था और कहा था कि सरकार बनती है तो जेटली अहम मंत्रालय के मंत्री बनाये जाएंगे। लेकिन अरुण जेटली चुनाव हार गये और उन्होंने मंत्री बनने से इंकार कर दिया। तब संघ के बड़े नेता उन्हें मनाने पहुँचे थे जिसके बाद उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में आने की सहमति जताई। मोदी अरुण जेटली को कितना मानते थे यह इसी से साबित हो जाता है कि शुरू में अरुण जेटली को वित्त मंत्रालय के अलावा रक्षा मंत्रालय की भी जिम्मेदारी सौंपी गयी। यही नहीं मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कुछ समय के लिए जेटली के पास सूचना और प्रसारण मंत्रालय भी रहा। नोटबंदी के फैसले की भले बहुत आलोचना हुई लेकिन सारी आलोचना जेटली ने अपने जिम्मे ली और प्रधानमंत्री के इस फैसले का पूरी तरह बचाव किया। यही नहीं नोटबंदी के बाद हो रही परेशानियों से निजात दिलाने के लिए जेटली ने दिन-रात मेहनत की और जल्द ही हालात सामान्य हो गये। इसी प्रकार जीएसटी को लागू करने, उसका सरलीकरण करने का काम जिस कम समय में अरुण जेटली ने कर दिखाया वह काबिलेतारीफ है। लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव परिणाम आने के एक दिन पहले तक अरुण जेटली अपने मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठकें कर के काम निपटाने में लगे हुए थे जबकि उनका स्वास्थ्य उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता था। जब नयी सरकार के गठन से पहले जेटली ने ट्वीट कर नयी सरकार में शामिल नहीं होने का ऐलान किया तो प्रधानमंत्री मोदी तुरंत उनके घर गये थे।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी अरुण जेटली को काफी मानते थे। वह उनकी विद्वता और कार्यक्षमता और प्रतिबद्धता के कायल थे। बहुत वर्षों पहले जब अटलजी से एक साक्षात्कार में पूछा गया था कि उनके और आडवाणी के बाद वह भाजपा का भविष्य किसमें देखते हैं तो उन्होंने प्रमोद महाजन और अरुण जेटली का नाम लिया था। अटलजी ने जब अरुण जेटली को पहली बार अपनी कैबिनेट में बतौर सूचना प्रसारण राज्यमंत्री शामिल किया था तो वह उनके काम को देखकर हतप्रभ रह गये थे और जल्द ही जेटली का प्रमोशन कर उन्हें वाणिज्य एवं उद्योग, विनिवेश, नौवहन, कंपनी मामले और कानून मंत्रालय जैसे अहम विभागों का कैबिनेट मंत्री बना दिया था। यही नहीं जब 2004 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा संगठन को मजबूत करने की जरूरत महसूस हुई तो तत्कालीन मंत्री वेंकैया नायडू और अरुण जेटली को संगठन में भेज दिया गया था। संगठनकर्ता के रूप में भी जेटली ने अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवाया। एक समय तो ऐसा भी आया था जब जेटली को जिस राज्य का प्रभार मिलता वहां पार्टी का प्रदर्शन सुधर जाता और सरकार तक बन जाती थी। कर्नाटक में भी पहली भाजपा सरकार तब बन पायी थी जब अरुण जेटली वहां के चुनाव प्रभारी थे।

अरुण जेटली ने बतौर वित्त मंत्री कालेधन के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाया था और कई देशों के साथ इस संबंध में नये समझौते किये गये, अनेकों लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गयी और कार्रवाई करते वक्त यह नहीं देखा गया कि वह व्यक्ति अपनी पार्टी से संबंधित है या दूसरी पार्टी से। डिजिटल लेन-देन की दिशा में भारत दो-तीन सालों में ही दस साल आगे बढ़ गया है तो यह जेटली की ही मेहनत का प्रतिफल है। हमें याद होना चाहिए कि यह जेटली का ही वित्त मंत्री के रूप में कार्यकाल था जब अमेरिका की रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 13 साल बाद भारत की क्रेडिट रेटिंग को सुधारा था। 

वाकई अरुण जेटली जैसे नेता कम ही हुए हैं जो लंबे समय तक सत्ता में रहे लेकिन किसी भी प्रकार का दाग उनको छू नहीं पाया। जेटली के गुणों के बारे में जितना बताया जाये, उतना कम है। हमेशा ईमानदार करदाता रहे जेटली के बारे में शायद कम ही लोग जानते होंगे कि अपने बच्चों को खर्चे के लिए भी वह भुगतान चेक से ही करते थे ताकि पूरी पारदर्शिता रहे। केंद्र में मोदी सरकार-2 में उन्होंने चूँकि कोई पद नहीं लिया था इसलिए नयी सरकार बनते ही उन्होंने कैबिनेट मंत्री के रूप में खुद को मिला बंगला भी खाली कर दिया था। जबकि एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान में 200 सांसद ऐसे हैं जिन्होंने अपने बंगले या फ्लैट अब तक खाली नहीं किये हैं।

अरुण जेटली के व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो उनका जन्म महाराज किशन जेटली और रतन प्रभा जेटली के घर में हुआ था। उनके पिता भी एक वकील थे। उन्होंने अपनी विद्यालयी शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल, नई दिल्ली से पूरी की और 1973 में श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, नई दिल्ली से कॉमर्स में स्नातक की डिग्री ली। उन्होंने 1977 में दिल्ली विश्‍वविद्यालय के विधि संकाय से विधि की डिग्री हासिल की थी। छात्र के रूप में उन्होंने अकादमिक और पाठ्यक्रम के अतिरिक्त गतिविधियों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। अरुण जेटली 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संगठन के अध्यक्ष भी रहे। अरुण जेटली ने 24 मई 1982 को संगीता जेटली से विवाह किया और उनके दो बच्चे- पुत्र रोहन और पुत्री सोनाली हैं।

बहरहाल, अरुण जेटली का जाना भाजपा ही नहीं देश के लिए भी एक बड़ा नुकसान है। भाजपा के लिए बड़ा नुकसान इस तरह भी है कि एक वर्ष के भीतर ही पार्टी ने कई दिग्गज नेताओं को खो दिया है। पहले अटल बिहारी वाजपेयी, फिर अनंत कुमार और मनोहर पर्रिकर तथा उसके बाद सुषमा स्वराज और अब अरुण जेटली। देश का नुकसान इसलिए भी हुआ है क्योंकि संसद में गंभीर मुद्दों पर चर्चा के दौरान जब जेटली बोलने के लिए खड़े होते थे तो सब उन्हें ध्यान से सुनते थे क्योंकि उनके वक्तव्यों में राजनीतिक हितों से ज्यादा देशहित की बात रहती थी। मीडिया के लिए भी जेटली हमेशा सुलभ रहते थे और जेटली की एक खास बात और थी कि भले वह कितने भी बड़े से बड़े पद पर क्यों ना रहे हों उनके घर और कार्यालय के दरवाजे हमेशा आम कार्यकर्ताओं और जनता के लिए खुले रहते थे। ऐसी महान शख्सियत को हमारी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।

-नीरज कुमार दुबे

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