प्रकाशोत्सव पर दिखा राष्ट्रीय एकता का अद्भुत दृश्य

तरुण विजय । Jan 13 2017 3:53PM

विचारधाराएं अलग होंगी, राजनीतिक विरोध भी जम कर होगा लेकिन राष्ट्रीय विषयों पर एका दिखना लोकतंत्र के लिए शुभ है तो गुरु गोविंद सिंह के जीवन का भी प्रताप है कि उनका स्मरण भी सब में एकता स्थापित करने वाला सिद्ध हुआ।

गुरु गोविंद सिंह जी के 350वें प्रकाशोत्सव पर राष्ट्रीय एकता का अद्भुत दृश्य देखने को मिला जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री की मन से खुलकर प्रशंसा की और श्री नीतीश कुमार ने मोदी को सराहा- गुजरात में नशाबंदी के लिए। दोनों की विचारधाराएं अलग होंगी, राजनीतिक विरोध भी जम कर होगा लेकिन राष्ट्रीय विषयों पर एका दिखना लोकतंत्र के लिए शुभ है तो गुरु गोविंद सिंह के जीवन का भी प्रताप है कि उनका स्मरण भी सब में एकता स्थापित करने वाला सिद्ध हुआ।

वस्तुतः राष्ट्र का विजय गान है- गुरु गोविंद सिंह का जीवन। विश्व के इतिहास में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं- देश के लिए पिता वारे। दो नन्हे बच्चों का वारा। शुद्धता के प्रतीक खालसा पंथ की सर्जना की और देश को अद्भुत विजय गान दिया।

'देह शिवा वर मोहे इहै

शुभ करमन ते कबहुं न टरैं

न डरौ अरि सौ जब जाहि लरौं

निश्चे कर अपनी जीत करौं। (दशम ग्रंथ)'

गुरु गोविंद सिंह के पिता सच्चे पातशाह- गुरु तेग बहादुर साहब भारत के ऐसे एकमात्र महापुरुष हुए जिन्हें 'हिन्द की चादर' कहा गया। वे पंजाब की चादर नहीं थे, पंथ, भाषा, क्षेत्र या अपने शिष्यों मात्र के लिए रक्षक चादर नहीं थे। वे सारे हिंदुस्तान की चादर थे, सारे भारत वर्ष के रक्षक थे। ऐसे महिमा वाले पिता की संतान थे- गोविंद राय (गोविंद सिंह जी के बाल्यकाल का नाम)। जुल्म अत्याचार के शिकार कश्मीरी हिंदू जब गुरु तेग बहादुर साहब के पास प्राण रक्षा की गुहार लेकर आए तो सच्चे पातशाह ने क्या कहा था- कि आपकी रक्षा के लिए किसी महापुरुष को अपना बलिदान देना होगा। इस पर नन्हा गोविन्द राय बोल उठा हे सच्चे पातशाह, आपसे बढ़कर महापुरुष और कौन होगा?

मालूम था कि पिता का बलिदान होगा, फिर भी देश, धर्म और जन की रक्षा के लिए पिता का आह्वान करने वाले गोविंद राय की बात सुन गुरु तेग बहादुर जी ने उनको गले से लगा लिया- कश्मीरी पंडितों को अभय किया तथा अंततः अपना और भाई मतिदास और भाई सतीदास का बलिदान देकर समाज की रक्षा की। मुझे तो कई बार लगता है कि यदि भारत के हर घर और मंदिर में कोई चित्र अनिवार्य रूप से होना चाहिए तो वे चित्र होंगे- गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविंद सिंह जी के।

उनकी थी अद्भुत बलिदानी परम्परा। गुरु गोविंद सिंह के तेरह चौदह साल के बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह। उनकी दादी माता गूजरी उन्हें शत्रुओं से बचाते हुए जंगल-जंगल घूम रही थीं अचानक धोखे से दोनों साहिबजादे सरहिंद के किले ले जाए गए जहां उन्हें जिंदा दीवार में चिनने का शहर काजी ने हुक्म दिया। आप कल्पना करिए 13-14 साल की उम्र क्या होती है?

पर सिंह के बच्चे सिंह ही होते हैं। एक-एक ईंट चिनती गयी, पर जोरावर सिंह और फतेह सिंह अपने पिता की सीख से डिगे नहीं- जान दे दी पर धर्म नहीं दिया। वे हमारे, हमारी नयी पीढ़ी के महान आदर्श बन गए।

ऐसी पराक्रमी, बलिदानी परम्परा और राष्ट्रीय एकता के गौरव प्रतीक गुरु गोविंद सिंह साहब का एक ही वाक्य मुर्दों में जान फूंक देता है- राष्ट्र की नयी शक्ति देता है- 'सवा लाख से एक लड़ाऊं, तां मैं गुरु गोविन्द कहाउं।'

क्या गजब का आत्मविश्वास और सदा विजयी रहने का बल इस एक ललकार में है। जहां सच्चाई है, नैतिकता है, जन-बल है- वहां विजय होनी ही होनी है- चाहे फिर सारी दुनिया की ताकत विपरीत क्यों न हो- जीतूंगा मैं ही, विजय हमारी ही होगी।

यह एक वाक्य, गुरु गोविंद सिंह जी की बानी, हमारे राष्ट्र का मंत्र बन गया है। 'सवा लाख से एक लड़ाउं'- यह स्वयं में शक्ति का सम्पुट, हिम्मत का हिमालय और जागरण का जय गान है। उनकी दशम ग्रंथ की बानी- निश्चै कर अपनी जीत करौं' तो हमारा मानो राष्ट्रीय युवा गीत बना है जिसे सुनकर धमनियों में रक्त हिलौरे लेने लगता है और शुभ, मंगलकारी विचारों का आदर्श सामने उभर आता है। उन्हें मानवीय शक्ति और सीमाएं और दुर्बलताओं का भान था। इसीलिए कहा, 'गुरु मान्यो ग्रंथ'। श्री गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु स्थान में प्रतिष्ठित कर देश के विभिन्न भागों, जातियों, वर्णों के प्रतिनिधि पांच श्रेष्ठ महानुभावों को पंच-प्यारे के रूप में स्थान देकर खालसा पंथ की सर्जना की। अद्भुत, असाधारण, अभूतपूर्व। भाई दया सिंह लाहौर से, भाई धरम सिंह- हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश से, भाई हिम्मत सिंह उड़ीसा से, भाई मोहकम सिंह- द्वारा- गुजरात से और भाई साहिब सिंह कर्नाटक से। क्या अद्भुत महान दृष्टि। क्या राष्ट्रीय एकता का भाव, क्या सब समाज के लिए साथ में आगे हैं बढ़ते जाने वाला जुझारू पन! यह अन्यत्र दुर्लभ है।

खालसा पंथ की सर्जना कर गुरु गोविंद सिंह जी ने देश, धर्म और समाज की रक्षा की। वे भारत की रक्षक भुजा बन गए- मैं समझता हूं कि आज यदि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है तो उस युवा देश के युवाओं का युवा आदर्श यदि कोई हो सकता है, होना चाहिए तो वह आदर्श दशम गुरु गोविंद सिंह जी ही हैं। जरा देखिये उनकी जीवन कथा किस प्रकार हमारा राष्ट्रगीत बन गयी है- पटना साहिब में जन्मे, कश्मीर से लेकर दक्षिण तक के भारतीयों की रक्षा की, हर जाति-वर्ण को एक सूत्र में पिरोया, अपनी सभी रचनाएं ब्रज भाषा में कीं, अत्याचारी शासकों आक्रमणकारियों के विरुद्ध देश के जन-जन को सैनिक बनाया और शास्त्र के साथ जोड़ा। यदि राष्ट्र धर्म के कोई सच्चे जनक हैं तो वे सच्चे पातशाह, दशम गुरु गोविंद सिंह जी साहब ही हैं। जरा सोचिए- संत-सिपाही-राष्ट्रधर्म के लिए युद्ध भी कर रहे हैं और आध्यात्मिक साधना भी। दोनों अलग नहीं हो सकते। अध्यात्म का अर्थ अपने लिए गिरि-कंदराओं में तपस्या करना नहीं हो सकता। अध्यात्म का अर्थ है- जन कल्याण, जन रक्षा, जन सेवा, जन संगठन।

आज देश जिन चुनौतियों से गुजर रहा है उसमें से निखर कर, संवर कर, उभर कर देश गुरु गोविंद सिंह की बानी से प्रेरित होकर ही आगे बढ़ेगा। कालिमा के दूत गुरु साहेब की ललकार के सामने परास्त होंगे- सवा लाख से एक लड़ाने का साहस लेकर भारत 'निश्चै कर अपनी जीत करेगा' यह विश्वास गुरु गोविंद सिंह के स्मरण से पैदा होता है। यदि उनके पिता 'हिंद की चादर' थे, तो गुरु गोविंद सिंह जी 'हिंद की हिम्मत' हैं।

- तरुण विजय

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