पूंजी बाजार नियमों को और सख्त बनाने पर सेबी ने लिए ये अहम फैसले
उल्लेखनीय है कि आईएलएंडएफएस समेत कई कंपनियों द्वारा समय पर कर्ज का भुगतान नहीं कर पाने जैसी कई घटनाएं सामने आई हैं। कई मामलों में कर्ज चुकाने में देरी की जानकारी बहुत देरी से दी गई।
मुंबई। बाजार नियामक सेबी ने निवेशकों के हित में पूंजी बाजार नियमों को और सख्त बनाने की दिशा में बुधवार को कई कदम उठाए। सेबी ने सूचीबद्ध कंपनियों के लिए कर्ज नहीं चुका पाने की जानकारी देने संबंधी नियमों को सख्त बनाने, राइट इश्यू की समय सीमा कम करके 31 दिन करने और पोर्टफोलियो प्रबंधन योजना के तहत न्यूनतम निवेश सीमा को बढ़ाकर 50 लाख करने का फैसला किया है।
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सेबी ने कंपनी संचालन नियमों का बेहतर तरीके से अनुपालन करने के लिए व्यावसायिक उत्तरदायित्व रिपोर्ट (बीआरआर) तैयार करने के दायरे को भी बढ़ाया है। नियामक ने शीर्ष 1,000 कंपनियों के लिए वार्षिक बीआआर तैयार करने को अनिवार्य बनाया है। इसमें पर्यावरण और हितधारकों के संबंधों से जुड़ी गतिविधियां शामिल होंगी। सेबी निदेशक मंडल की यहां हुई बैठक इस संबंध में पेश किये गये प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई।
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सेबी चेयरमैन अजय तयागी ने निदेशक मंडल की बैठक के बाद कहा कि कर्ज भुगतान में असफलता को लेकर नए खुलासा नियमों का उद्देश्य निवेशकों की मदद के लिये और पारदर्शिता लाना है। नियामक ने कहा कि कर्ज के मूलधन या ब्याज की अदायगी में 30 दिनों से ज्यादा की देरी होने पर सूचीबद्ध कंपनियों को 24 घंटे के भीतर समय पर कर्ज भुगतान नहीं कर पाने के बारे में तथ्यों का खुलासा करना होगा।
त्यागी ने कहा कि कहना यह है कि यदि ब्याज या मूलधन चुकाने में चूक होती है और 30 दिन के बाद भी जारी रहता है तो 30वें दिन के बाद 24 घंटे के अंदर सूचीबद्ध कंपनियों को शेयर बाजार के सामने इसका खुलासा करना होगा। इसके पीछे वजह है कि ज्यादा से ज्यादा जानकारी सार्वजनिक मंच पर होनी चाहिए ताकि निवेशकों और अन्य हितधारकों को यह पता चलता रहे कि क्या चल रहा है।
सेबी ने कहा कि यह फैसला सूचीबद्ध कंपनियों के समय पर कर्ज किस्त का भुगतान नहीं कर पाने से जुड़ी जानकारी की कमी को दूर करने के लिए किया गया है। नया नियम एक जनवरी 2020 से लागू होगा। उन्होंने कहा कि निदेशक मंडल कर्ज अदायगी में एक दिन की भी देरी होने पर जानकारी देने के नियम पर सहमत नहीं था और 30 दिन की अवधि वाला नियम लागू करने योग्य है।
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उल्लेखनीय है कि आईएलएंडएफएस समेत कई कंपनियों द्वारा समय पर कर्ज का भुगतान नहीं कर पाने जैसी कई घटनाएं सामने आई हैं। कई मामलों में कर्ज चुकाने में देरी की जानकारी बहुत देरी से दी गई। बैठक में लिए गये अन्य फैसलों के तहत, सेबी मौजूदा शेयरधारकों को उनके अधिकार के मुताबिक शेयर जारी करने के नियमों को संशोधित करेगा। राइट इश्यू की समय सीमा को 55 दिन से घटाकर 31 दिन किया जाएगा।
नियामक ने राइट इश्यू की प्रकिया को दक्ष बनाने और इसमें लगने वाले समय को कम करने के उद्देश्य से इश्यू की समयसीमा को 55 दिन से घटाकर 31 दिन करने का फैसला किया है। इसके अतिरिक्त नियामक ने एएसबीए (एप्लीकेशन सर्पोटेड बाई ब्लॉक्ड अमाउंट) सुविधा को अधिकार के आधार पर शेयरों का आवेदन करने वाली सभी निवेशकों के लिए भुगतान का अनिवार्य माध्यम बनाया है। नियामक ने कहा कि भौतिक रूप में शेयर रखने वाले शेयरधारकों को राइट इश्यू के शेयर के लिए डीमैट अकाउंट की जानकारी देनी होगी।
बाजार नियामक सेबी ने पोर्टफोलियो प्रबंधन योजना (पीएमएस) से खुदरा निवेशकों को दूर रखने के लिये कदम उठाया है। नियामक ने बुधवार को ऐसी योजनाओं में आने वाले निवेशकों की न्यूनतम निवेश राशि को 25 लाख रुपये से बढ़ाकर 50 लाख रुपये करने का निर्णय किया। त्यागी ने कहा कि इसके अलावा पोर्टफोलियो प्रबंधकों की निवल नेटवर्थ जरूरतों को 2 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये करने का निर्णय किया है। मौजूदा पोर्टफोलियो प्रबंधकों को 36 महीनों के भीतर बढ़ी हुई जरूरतों को पूरा करना होगा।
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