कर्मचारियों पर अधिक दबाव डालने वाली कंपनियों के लिए गति बनाये रखना मुश्किल: जोहो सीईओ

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उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना ​​है कि हमें भौगोलिक दृष्टि से विविधता लानी होगी। प्रत्येक गतिविधि एक ही स्थान पर नहीं होनी चाहिए और हमें अलग-अलग तरीके से सोचना होगा कि हम दीर्घकालिक कंपनियों का निर्माण कैसे करें।’’

कार्यस्थल पर दबाव को लेकर उद्योग जगत में जारी चर्चा के बीच प्रौद्योगिकी कंपनी जोहो के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और सह संस्थापक श्रीधर वेम्बू ने कहा है कि जो कंपनियां कर्मचारियों पर ‘बहुत अधिक’ दबाव डालती हैं, वे बाजार में अपनी गति को बनाये नहीं रख पाएंगी।

उन्होंने कहा कि दीर्घकालिक और टिकाऊ संगठन बनाने के लिए एक ‘अलग’ मानसिकता की आवश्यकता है। उद्योगपति और सामाजिक उद्यमी वेम्बू ने पीटीआई-के साथ विशेष बातचीत में कहा कि बड़े शहरों में प्रवास के बाद थकान, अकेलापन, लंबी यात्राएं और तनावपूर्ण काम की स्थिति लोगों को बहुत दबाव वाली जैसी स्थिति डाल में रही है।

उन्होंने यह भी कहा कि बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों को विनियमित किया जाने की जरूरत है। उन्होंने डिजिटल एकाधिकार की स्थिति बनने से रोकने और उसपर लगाम लगाने के लिए ‘मानकों’ के महत्व पर जोर दिया। कार्यस्थल पर तनाव के मुद्दे पर वेम्बू ने कहा कि हालांकि उन्होंने 27-28 साल काम किया है और यदि संभव हुआ तो 28 साल और काम करने को इच्छुक हैं।

लेकिन वह निश्चित रूप से अंधाधुंध तरीके से काम के पक्ष में नहीं हैं, जिससे खुद या फिर उनके कर्मचारी अत्यधिक दबाव तथा थकान महसूस करें। उनकी यह बात प्रमुख परामर्श कंपनी में एक युवा कर्मचारी की दुखद मौत के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। इस घटना के बाद कार्यस्थलों पर तनाव के मुद्दे पर व्यापक स्तर पर चर्चा हो रही है। वेम्बू ने कहा कि अवसाद और अंधाधुंध तरीके से काम करना वास्तविक मुद्दे हैं।

इसके निपटने का तरीका ‘संतुलन’ बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘कर्मचारियों पर बहुत अधिक दबाव डालने वाली कोई भी कंपनी बाजार में लंबे समय में अपनी गति बनाये नहीं रख सकती।’’ वेम्बू ने कहा, ‘‘और फिर एक दूसरा कारक है।

हम विभिन्न स्थानों, छोटे शहरों से युवाओं को बड़े शहरों में ला रहे हैं। और पहली समस्या, निश्चित रूप से, अकेलापन है। वे कार्यबल में अकेले आते हैं। और हम इस समस्या को स्वयं में देखते हैं। हमने इसका सामना किया है। दूसरी बात, हमारे शहरों में कार्यस्थल और कार्यस्थल से घर तक पहुंचने के लिए एक-दो घंटे की यात्रा आम बात है। बेंगलुरु इसका अच्छा उदाहरण है।’’

उन्होंने कहा कि अकेलापन, लंबी यात्राएं, तनावपूर्ण कार्य स्थितियां के साथ अत्यधिक काम का बोझ मामले को और भी बदतर बना देता है। वेम्बू ने कहा, ‘‘इन सब चीजों के साथ आप लोगों को एक बहुत बड़े ‘प्रेशर कुकर’ जैसी दबाव वाली परिस्थिति में डाल रहे हैं। और यह बहुत दुखद है कि कुछ लोग टूट जाते हैं। इसका हल यह है कि कंपनियों विविधता लाएं। उन्हें छोटे कस्बों और शहरों में मौजूदगी बनाने की आवश्यकता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना ​​है कि हमें भौगोलिक दृष्टि से विविधता लानी होगी। प्रत्येक गतिविधि एक ही स्थान पर नहीं होनी चाहिए और हमें अलग-अलग तरीके से सोचना होगा कि हम दीर्घकालिक कंपनियों का निर्माण कैसे करें।’’

वेम्बू की कंपनी जोहो इस दर्शन पर काम करती है कि वैश्विक स्तर के उत्पाद कहीं भी बनाये जा सकते हैं। उन्होंने भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे (डीपीआई) को ‘चमकती सफलता की कहानी’ बताया। वेम्बू ने कहा, ‘‘भारत इस क्षेत्र में एक बहुत मजबूत देश के रूप में उभरा है। वास्तव में, हम इसमें एक वैश्विक अगुवा हैं।

मुझे नहीं लगता है कि किसी अन्य देश में डिजिटल बुनियादी ढांचे में इतना निवेश हो रहा है और इतने सारे मानक सामने आ रहे हैं... चाहे ओएनडीसी (ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स) हो या फिर स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रौद्योगिकी ढांचा। इन सबके साथ हम इसमें, हम विकसित दुनिया से बहुत आगे निकल रहे हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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