पैसे की होगी बचत, प्रदूषण से भी दिलाएगी राहत, कैसी है फ्लैक्स इंजन वाली कार, जिस पर 3-4 महीने में बड़ा फैसला लेने वाली है सरकार
महाराष्ट्र में एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह अगले तीन से चार महीनों में एक आदेश जारी करेंगे, जिसमें सभी ऑटो निर्माताओं को अपने वाहनों को फ्लेक्स इंजन के साथ चलाने के लिए अनिवार्य किया जाएगा, जो एक से अधिक ईंधन पर चल सकते हैं।
आपने देखा होगा कि लोग इलेक्ट्रिक कार की ओर शिफ्ट कर रहे हैं। कई लोगों ने पेट्रोल-डीजल की गाड़ियों के स्थान पर इलेक्ट्रिक इंजन वाली कार को ऑपशन के तौर पर चुना है। इसी बीच एक और इंजन की बात हो रही है और वो है फ्लैक फ्यूल इंजन कार। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने पुणे में एक फ्लाईओवर की आधारशिला रखने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में उपस्थित हुए। इस दौरान उन्होंने ऐसी बात कही कि जिससे इस बात की चर्चा चल पड़ी कि क्या महंगे पेट्रोल-डीज़ल से लोगों को छुकारा मिलने वाला है। दरअसल, महाराष्ट्र में एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह अगले तीन से चार महीनों में एक आदेश जारी करेंगे, जिसमें सभी ऑटो निर्माताओं को अपने वाहनों को फ्लेक्स इंजन के साथ चलाने के लिए अनिवार्य किया जाएगा, जो एक से अधिक ईंधन पर चल सकते हैं। जिसके अंतर्गत बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज से लेकर टाटा और महिंद्रा जैसी कार निर्माता कंपनियों को फ्लेक्स इंजन बनाने के लिए कहा जाएगा। गडकरी ने कहा कि उन्होंने बजाज और टीवीएस कंपनियों को अपने वाहनों में फ्लेक्स इंजन लगाने के लिए कहा है और यह भी निर्देश दिया है कि जब तक वे ऐसा नहीं करते, तब तक उनसे संपर्क न करें।
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बता दें कि गडकरी का यह बयान लगभग एक महीने बाद आया है जब गडकरी ने कहा था कि केंद्र सरकार जल्द ही ऑटो निर्माताओं के लिए जैव-ईंधन पर 100 प्रतिशत चलने वाले वाहनों की पेशकश करना अनिवार्य कर देगी। गडकरी ने कहा कि हॉर्न बजाने से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे से निपटने के लिए कार के हॉर्न को संगीत वाद्ययंत्र की तरह बनाने के लिए नियम बनाए जाएंगे। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने सभी कार निर्माताओं को संगीत वाद्ययंत्र की आवाज का इस्तेमाल करके हॉर्न बनाने का आदेश दिया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वैकल्पिक ईंधन से न केवल प्रदूषण कम होता है और विदेशी मुद्रा की बचत होती है, बल्कि यह ग्राहकों के लिए किफायती भी है। गडकरी ने पिछले महीने के पेट्रोल की 110 रुपये कीमत के मुकाबले एक लीटर बायोएथेनॉल की कीमत 65 रुपये होने की ओर इशारा करते हुए कहा, “हम फ्लेक्स इंजन मानदंडों के साथ वाहन देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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फ्लेक्स इंजन क्या है?
ये खास तरीके की कार होती है जो कि पेट्रोल-डीजल से ही नहीं बल्कि इलेक्ट्रिक कार से भी काफी अलग है। अभी विदेश में इन कारों का इस्तेमाल हो रहा है लेकिन भारत सरकार जल्द ही इसे अपने यहां लाने की तैयारी में है। कई लोग इसे बायोफ्यूल इंजन कार से भी जोड़कर देखते हैं। ये इंजन खास तरह से डिजाइन किया जाता है और इस इंजन की खास बात ये होती है कि इसमें दो तरह के फ्यूल डाले जाते हैं। ये आईसीई इंजन जैसा ही होता है। लेकिन ये एक या एक से अधिक तरह के फ्यूल से चलने में सक्षम होता है। कई मामलों में इस इंजन को मिक्स फ्यूल के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। आसान भाषा में अगर समझें तो आप इसमें दो तरह के फ्यूल डाल सकते हैं और ये इंजन अपने हिसाब से इसे काम में ले लेता है। इस इंजन में ईंधन मिश्रण सेंसर का इस्तेमाल होता है जो कि मिश्रण में ईंधन की मात्रा के अनुसार खुद को एडजस्ट कर लेता है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा तो अभी भी कई गाड़ियों में होता है। जिसमें आप एक बार में सीएनजी और पेट्रोल से गाड़ी चला सकते हैं। लेकिन फ्लैक्स ईंजन वीआई फ्यूल से अलग होते हैं। वीआई फ्यूल ईंजन में अलग-अलग टैंक होते हैं जबकि फ्लैक्स फ्यूस में ऐसा नहीं है। इसके साथ ही आप एक ही टैंक में कई तरह के फ्यूल डाल सकते हैं।
फ्लैक्स इंजन भारत में क्यों प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं?
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार, ग्राहकों को पारंपरिक पेट्रोल से चलने वाले इंजन और बायोएथेनॉल पर चलने वाले इंजनों के बीच एक विकल्प प्रदान किया जाएगा। इथेनॉल मूलत: गन्ने से बनता है मगर शुगर वाली बाकी चीजों से भी बनता है। भारत में चावल, गेंहू, जौ, मक्का और ज्वार जैसे अनाज से इथेनॉल बनाने को मंजूरी दी जा चुकी है। अमेरिका में इथेनॉल मक्के से बनाया जाता है, वहीं ब्राजील में इसे चीनी से बनाया जाता है। बायो फ्यूल को सरकार इसलिए बढ़ावा दे रही है कि डीजल और पेट्रोल के अलावा ईंधन का एक और विकल्प मिलेगा। अभी देश में डीजल-पेट्रोल की जितनी खपत होती है, उसमें से ज्यादातर विदेश से खरीदकर लाना पड़ता है। इससे देश की विदेशी मुद्रा बड़े पैमाने पर खर्च होती है। वहीं अगर इथेनॉल जैसे ईंधन का इस्तेमाल गाड़ियों में किया गया तो ये रकम विदेश कंपनियों के पास जाने की बजाय किसानों की जेबों में जाएगी।
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