मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए ‘वृद्धि का असहनीय बलिदान’ न होः एमपीसी सदस्य

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जयंत वर्मा का मानना है कि मुद्रास्फीति पर अचानक काबू पाने के लिए वृद्धि का असहनीय बलिदान नहीं किया जाना चाहिए।

नयी दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जयंत वर्मा का मानना है कि मुद्रास्फीति पर अचानक काबू पाने के लिए वृद्धि का असहनीय बलिदान नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने पीटीआई-को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी के प्रकोप से मुश्किल से ही उबर पाई है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मुद्रास्फीति पर ‘‘अचानक’’ काबू पाने की कोशिश में ‘‘वृद्धि का असहनीय बलिदान’’ न हो।

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देश की अर्थव्यवस्था के लिए सतर्क आशावादी दृष्टिकोण के साथ वर्मा ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 और 2023-24 के लिए वृद्धि की संभावनाएं ‘‘तर्कसंगत’’ हैं, भले ही भूराजनीतिक तनाव और जिंस की ऊंची कीमतें लंबे समय तक बनी रहें। बढ़ती मुद्रास्फीति के दबाव में मौद्रिक नीति तय करने वाली एमपीसी ने कठोर रुख अपनाया है और प्रधान उधारी दर रेपो दो बार में कुल 0.90 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ दो साल के उच्च स्तर 4.90 प्रतिशत पर पहुंच गई है। उन्होंने कहा, ‘‘हम जितना चाहते थे, मुद्रास्फीति का प्रकरण उससे अधिक समय तक चला है और जितना हम चाहेंगे, उससे अधिक समय तक चलेगा, लेकिन, मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति को लक्षित स्तर तक लाया जाएगा।’’ आरबीआई ने खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत से छह प्रतिशत के बीच रखने का लक्ष्य तय किया है। छह सदस्यीय एमपीसी इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए नीतिगत दरों पर फैसला करती है। एमपीसी में बाहरी सदस्य के तौर पर शामिल वर्मा ने कहा कि कोविड महामारी मौद्रिक प्रणाली के लिए अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा थी।

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उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय अर्थव्यवस्था मुश्किल से महामारी से उबर पाई है, और हमें इस बात से सावधान रहना होगा कि मुद्रास्फीति पर अचानक काबू पाने की कोशिश में वृद्धि का असहनीय बलिदान न हो।’’ आईआईएम अहमदाबाद में वित्त और लेखा के प्रोफेसर वर्मा ने कहा कि वह इस समय मुद्रास्फीति के जोखिमों को संतुलित मानते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘वित्तीय स्थितियां विश्व स्तर पर और घरेलू स्तर पर सख्त हो गई हैं, और इससे मांग-पक्ष के दबाव उभर रहे हैं।’’

वर्मा के अनुसार वैश्विक अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है और दुनिया को उच्च वृद्धि के रास्ते पर वापस आने में कुछ समय लगेगा। उन्होंने आगे कहा, ‘‘लेकिन इस निराशाजनक संदर्भ में, मैं आज भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में सतर्क रूप से आशावादी हूं... यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न झटकों के बावजूद भारत में आर्थिक सुधार लचीला रहा है। वर्ष 2022-23 और 2023-24 के लिए वृद्धि के पूर्वानुमान तार्किक हैं।’’ आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि अनुमान को 7.2 प्रतिशत पर बरकरार रखा है, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी को लेकर आगाह भी किया है।

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