न्यायालय का 32 साल पुराने विवाद में नोएडा को 844 भूखंड मालिकों को फ्लैट देने का निर्देश दिया

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उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को जमीन आवंटन से संबंधित 32 साल पुराने कानूनी विवाद मामले में फैसला सुनाया है। इसके तहत न्यू ओखला औद्योगिक प्राधिकरण (नोएडा) को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के 844 सदस्यों को शहर के सेक्टर 43 में 1800 वर्ग फुट का फ्लैट देने का निर्देश दिया गया है।

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को जमीन आवंटन से संबंधित 32 साल पुराने कानूनी विवाद मामले में फैसला सुनाया है। इसके तहत न्यू ओखला औद्योगिक प्राधिकरण (नोएडा) को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के 844 सदस्यों को शहर के सेक्टर 43 में 1800 वर्ग फुट का फ्लैट देने का निर्देश दिया गया है। मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी और न्यायाधीश के एम जोसेफ की पीठ ने कहा कि नोएडा सेक्टर 43 के हिस्से फिर से तैयार करने और 844 व्यक्तियों लिये बहुमंजिला फ्लैटों का आवंटन करने के लिये सहमत है।

उन फ्लैटों में से प्रत्येक 1800 वर्ग फुट का होगा। पीठ ने कहा कि नोएडा अपार्टमेंट की कीमत अपनी नीति और नियमों के अनुसार तय करेगा। न्यायालय ने कहा, ‘‘यह मामला 1990 के दशक में शुरू हुआ और तब से यह विभिन्न अदालतों में लंबित रहा। तीन रिट याचिकाएं और पहली अपील अभी भी उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘...हमारे विचार में इस पूरे विवाद का निपटान इस आधार पर हो सकता है कि प्रतिवादी सोसायटी के 844 सदस्यों को लगभग 1800 वर्ग फुट का अपार्टमेंट प्रदान किया जाएगा। नोएडा ने न्यायालय के 23 अगस्त, 2021 के पारित आदेश पर अपने हलफनामे में यह कहा है।’’

न्यायालय ने कहा कि इससे न केवल लंबे समय से जारी कानूनी विवाद पर विराम लगेगा बल्कि 844 लोगों को घर मिलेगा। पीठ ने केंद्रीय कर्मचारी सहकारी गृह निर्माण समिति की इस बात पर गौर किया कि दावा 977 सदस्यों तक सीमित है। इसमें 133 लोगों ने नोएडा से जरूरी मंजूरी के बिना उसे बेच दिया। नोएडा के अनुसार ये लोग कोई दावा नहीं कर सकते। न्यायालय ने नोएडा से 133 लोगों के दावों पर गौर करने को कहा। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश पर नोएडा की तरफ से दायर अपील पर आदेश जारी किया।

उच्च न्यायालय ने ग्रुप हाउसिंग सोसायटी की रिट याचिका पर अंतरिम आदेश दिया था। रिट याचिकाओं में सीलिंग कार्रवाई के दौरान जारी आदेश को चुनौती दी गयी थी। उसमें कहा गया था कि सोसायटी के पास अतिरिक्त जमीन है जो राज्य की है। कुछ जमीन हाउसिंग सोसायटी ने व्यक्तिगत भूमि मालिकों से ली थी, लेकिन प्राधिकरण के अनुसार सोसायटी के पक्ष में जमीन का हस्तांतरण अवैध था। प्राधिकरण का कहना था कि इस तरह के हस्तांतरण उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 के प्रावधानों का उल्लंघन है और इसीलिए यह राज्य सरकार के अंतर्गत आती है।

दूसरा सीमा निर्धारण (सीलिंग) कानून है, जिसके तहत 12.5 एकड़ से अधिक जमीन राज्य सरकार की होगी। हाउसिंग सोसायटी ने दूसरी तरफ इसका विरोध किया था। उनका तर्क था कि संबंधित प्राधिकरण द्वारा गठित एक समिति की सिफारिशों के अनुसार जब भी किसी सहकारी समिति की भूमि नोएडा अधिग्रहण करता है तो अधिग्रहीत भूमि का 40 प्रतिशत भूखंडों के रूप में संबंधित सोसायटी के सदस्यों को आवंटित किया जाएगा।

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