सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक संघीय व्यवस्था के प्रतिकूलः केरल सरकार
नए संशोधन से राज्य के सहकारी क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो आम लोगों के लिए अच्छा काम कर रहा है। वासवन ने कहा, ‘‘यह राज्यों की स्वतंत्रता पर हमला है। संशोधन उन सहकारी समितियों के लिए खतरा है जो इस क्षेत्र के लिए एक आदर्श बन गए हैं। इनका कड़ा विरोध किया जाना चाहिए।
केरल सरकार ने हाल ही में लोकसभा द्वारा पारित बहु-राज्य सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक का शुक्रवार को कड़ा विरोध करने के साथ ही आरोप लगाया कि केंद्र सरकार नए कानून से देश की संघीय व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है। राज्य के सहकारिता मंत्री वी एन वासवन ने एक बयान में कहा कि केंद्र सरकार का सहकारिता कानून में नया संशोधन संविधान के तहत राज्यों को दी गई स्वतंत्रता को छिनने की एक कोशिश है। उनका यह बयान लोकसभा द्वारा विधेयक पारित करने के कुछ दिनों बाद आया है। यह विधेयक सहकारी समितियों के कामकाज को अधिक पारदर्शी बनाकर, नियमित चुनाव प्रणाली लागू कर और संबंधित व्यक्तियों की नियुक्ति पर रोक लगाकर उन्हें मजबूत करने का प्रयास करता है।
केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने 25 जुलाई को यह विधेयक पेश करते हुए कहा था कि विधेयक के प्रावधान उस क्षेत्र के लिए एक नए युग की शुरुआत करेंगे जिसे पिछली सरकारों ने नजरअंदाज कर दिया है। संक्षिप्त चर्चा के बाद हंगामे के बीच विधेयक को लोकसभा ने ध्वनि मत से मंजूरी दे दी। विधेयक के प्रावधानों की आलोचना करते हुए वासवन ने कहा कि केंद्र सरकार को उच्चतम न्यायालय में लगे झटके से उबरने के लिए नया संशोधन लाया गया है। उन्होंने कहा कि केंद्र का यह दृष्टिकोण लोकतंत्र को कमजोर करता है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने ऐसे प्रावधानों को भी शामिल किया है जिनमें राज्य सहकारी रजिस्ट्रार के तहत काम करने वाली वैधानिक समितियों को भी समाप्त किया जा सकता है और बहु-राज्य समितियों में परिवर्तित किया जा सकता है।उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सहकारी समितियां नई पीढ़ी के वाणिज्यिक बैंकों के समान हो जाएंगी, जो केवल वित्तीय लाभ के लिए काम करते हैं। नए संशोधन से राज्य के सहकारी क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो आम लोगों के लिए अच्छा काम कर रहा है। वासवन ने कहा, ‘‘यह राज्यों की स्वतंत्रता पर हमला है। संशोधन उन सहकारी समितियों के लिए खतरा है जो इस क्षेत्र के लिए एक आदर्श बन गए हैं। इनका कड़ा विरोध किया जाना चाहिए।
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