RBI के बाहर निकलने के बाद NHB और नाबार्ड में सरकार की शत प्रतिशत हिस्सेदारी
इसके बाद ये दोनों कंपनियां पूरी तरह से सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियां बन गई हैं। रिजर्व बैंक ने एनएचबी में 19 मार्च को अपनी हिस्सेदारी बेच दी थी जबकि नाबार्ड की हिस्सेदारी 26 फरवरी को ही सरकार को बेच दी गई थी।
मुंबई। भारतीय रिजर्व बेंक ने राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) में अपनी पूरी हिस्सेदारी सरकार को क्रमश: 1,450 करोड़ रुपये और 20 करोड़ रुपये में बेच दी है। इसके बाद ये दोनों कंपनियां पूरी तरह से सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियां बन गई हैं। रिजर्व बैंक ने एनएचबी में 19 मार्च को अपनी हिस्सेदारी बेच दी थी जबकि नाबार्ड की हिस्सेदारी 26 फरवरी को ही सरकार को बेच दी गई थी। केन्द्रीय बैंक ने बुधवार को एक वक्तव्य में यह जानकारी दी।
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यह कदम दूसरी नरसिम्हन समिति की रिपोर्ट में की गई सिफारिश के अनुरूप उठाया गया है। इसमें नियामकीय संस्थानों की एक दूसरे में शेयरधारिता को समाप्त करने की सिफारिश की गई है। यह रिपोर्ट 2001 में सौंपी गई थी। रिजर्व बैंक के अपने स्तर पर भी इस संबंध में एक परिचर्चा पत्र जारी किया गया था। नरसिम्हन समिति ने कहा था कि रिजर्व बैंक को उन संस्थानों में हिस्सेदारी नहीं रखनी चाहिये जिनका वह नियमन करता है।
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केन्द्रीय बैंक के पास नाबार्ड में 72.5 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। इसमें से 71.5 प्रतिशत हिस्सेदारी को अक्टूबर 2010 में ही सरकार के सुपुर्द कर दिया गया था जबकि शेष बची हिस्सेदारी 26 फरवरी 2019 में सरकार को बेची गई। राष्ट्रीय आवास बैंक में पूरी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी आरबीआई के पास थी जिसे 19 मार्च 2019 को बेच दिया गया। रिजर्व बैंक ने दूसरी नरसिम्हन समिति की सिफारिशों के आधार पर ही इससे पहले स्टेट बैंक, एनएचबी और नाबार्ड में मालिकाना हक सरकार को हस्तांतरित करने का प्रस्ताव अक्टूबर 2001 में कर दिया था।
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इसी के तहत 29 जूनको सरकार ने सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक भारतीय स्टेट बैंक में रिजर्व बैंक से उसकी पूरी 59.7 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया था। सरकार ने दोनों वित्तीय संस्थानों के पूंजी ढांचे में बदलाव के लिये नाबार्ड कानून 1981 और एनएचबी कानून 1987 में संशोधन के जरिये कर दिये हें। इन बदलावों को जनवरी 2018 और मार्च 2018 में अधिसूचित कर दिया गया है।
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