यूं ही कोई नहीं बन जाता सदी का महानायक अमिताभ बच्चन
अमिताभ ने अपनी पढ़ाई शेरवुड कॉलेज, नैनीताल और दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोरीमल कॉलेज से पूरी की है। पढ़ाई में काफी अव्वल होने के बाद भी उनकी रुचि सिनेमा की तरफ ज्यादा रही। हालांकि पिता हरिवंश राय बच्चन उन्हें बाबू बनाना चाहते थे।
5 दशकों से सिल्वर स्क्रीन पर उम्दा रोल्स से लोगों के हिलों पर राज कर रहे अमिताभ बच्चन को भारत सरकार ने दादासाहेब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा की है। अब तक कई पुरस्कारों को अपने नाम कर चुके अमिताभ आज भी उतने ही जोश और सादगी के साथ खुद को पेश कर रहे हैं। तभी तो 76 वर्ष की उम्र में भी उनकी एनर्जी देखते बनती है। पर यह सफर आसान नहीं रहा। कई उतार-चढ़ाव के बाद ही अमिताभ बच्चन सदी के महानायक बने हैं। लोगों के प्यार ने उन्हें बिग बी और शहंशाह भी बना दिया। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 11 अक्टूबर 1942 को जन्मे अमिताभ के पिता हरिवंश राय बच्चन हिंदी जगत के मशहूर कवि रहे हैं। पिता के साथी रहे कवि सुमित्रानंदन पंत के कहने पर ही उनका नाम अमिताभ रखा गया। अमिताभ ने अपनी पढ़ाई शेरवुड कॉलेज, नैनीताल और दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोरीमल कॉलेज से पूरी की है। पढ़ाई में काफी अव्वल होने के बाद भी उनकी रुचि सिनेमा की तरफ ज्यादा रही। हालांकि पिता हरिवंश राय बच्चन उन्हें बाबू बनाना चाहते थे।
The legend Amitabh Bachchan who entertained and inspired for 2 generations has been selected unanimously for #DadaSahabPhalke award. The entire country and international community is happy. My heartiest Congratulations to him.@narendramodi @SrBachchan pic.twitter.com/obzObHsbLk
— Prakash Javadekar (@PrakashJavdekar) September 24, 2019
बात अमिताभ की फिल्मी सफर की करते हैं। बच्चन ने अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत 1969 में मृणाल सेन की राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म 'भुवन शोम' में एक वॉयस नैरेटर के तौर पर की थी। अभिनेता के तौर पर उनकी पहली फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' थी। फिल्म असफल हुई और ऐसा कहा जाने लगा कि फिल्मों में अमिताभ हिरो के रूप में फिट नहीं बैठते हैं। और यहां से शुरू होती है अमिताभ की संघर्ष भरी दास्तान। उनका कद और चॉकलेटी छवि का ना होना उनके खिलाफ जाता था। काम पाने के लिए अमिताभ को फिल्म निर्माता और निर्देशकों के दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे। फिल्में जो मिलती थीं वह चल नहीं पाती थीं। हां, 1971 में राजेश खन्ना के साथ आई आनंद से अमिताभ को पहचान भी मिली और सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी। पर स्टारडम राजेश खन्ना के साथ था। और तब तक उनकी 12 फिल्में फ्लॉप हो चुकी थीं। 1973 मानों अमिताभ बच्चन की कामयाबी के लिए इंतजार कर रहा था। 1973 में आई प्रकाश मेहरा के फिल्म जंजीर ने उन्हें एंग्री यंग मैन बना दिया। इस फिल्म में प्राण के साथ उनकी जुगलबंदी लोगों को खूब पसंद आई। इस फिल्म में उनके साथ थीं बाद में उनकी धर्मपत्नी बनीं जया भादुड़ी। इसी फिल्म के बाद दोनों ने शादी कर ली थी। जंजीर फिल्म के स्क्रिप्ट राइटर सलीम और जावेद की जोड़ी आज भी कहती हैं कि वह फिल्म उन्होंने अमिताभ बच्चन के लिए लिखी थी।
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1975 में आई दीवार और शोले में अमिताभ बच्चन को और बड़ा बना दिया इसके बाद से अमिताभ बच्चन मनमोहन देसाई प्रकाश मेहरा और यश चोपड़ा के पसंदीदा हीरो बन गए और इनकी जोड़ी दर्शकों को भी खूब भाई। अमर अकबर एंथनी, डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, त्रिशूल, शान, कूली, शराबी, तूफान, अग्निपथ, हम, मोहब्बतें, अश्क, ब्लैक, पा, और पीकू जैसी फिल्में अमिताभ बच्चन के इस सफर में चार चांद लगाती हैं। अमिताभ बच्चन का खुमार लोगों पर इतना चढ़ा कि आज भी उनके फिल्मी डायलॉग लोगों के जुबान पर रहते हैं। रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं नाम है शहंशाह, डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, यह तुम्हारे बाप का घर नहीं पुलिस स्टेशन है इसलिए सीधी तरह खड़ा रहो, हमारे पास तो मां है, हम हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरु हो जाती हैं। पर ऐसा नहीं है कि अमिताभ बच्चन के लिए सब कुछ समान्य चलता गया। इस दौरान अमिताभ बच्चन ने कई चुनौतियों का सामना किया। चुनौतियां उनकी राहों में आई और उन सब से वह उबर कर आगे बढ़ते गए। इस दौरान उनके दोस्तों ने भी उनकी काफी मदद की।
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वह राजीव गांधी से दोस्ती के कारण राजनीति में आए, कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन किया और इलाहाबाद से एचएन बहुगुणा को हराकर सांसद भी बने। पर राजनीति में वह ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाए। तीन साल में ही उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इसके अलावा फिल्म कुली की शूटिंग के दौरान उन्हें एक्शन सीन करते वक्त जबरदस्त चोट लगी थी। वह जिंदगी और मौत से जूझने के बाद वापस फिल्मों में आए। 90 के दशक में अमिताभ बच्चन को उस समय करारा झटका लगा जब उनकी कंपनी अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन डूब गई। साथ ही 90 के दशक में उनकी एक के बाद एक कई फिल्में फ्लॉप साबित हुईं। अमिताभ को इस संकट से उबारने में मदद की यश चोपड़ा ने। यश चोपड़ा ने अमिताभ को अपनी फिल्म मोहब्बतें में मौका दिया और उसके बाद से उनकी दूसरी पारी की शुरुआत होती है। इसके अलावा इसी दौर में अमिताभ बच्चन ने छोटे पर्दे पर काम करना शुरू किया और केबीसी के जरिए घर-घर तक पहुंचे। अमिताभ ने अपनी आवाज के दम पर भी खूब लोकप्रियता पाई है। उन्होंने अपने पिता की कविताओं का भी रेसिटेशन किया है। 1984 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री दिया, 2001 में पद्मभूषण और 2015 में पद्म विभूषण। उन्हें कई आइफा और फिल्म फेयर अवार्ड मिल चुके हैं। उम्मीद करते हैं कि यूं ही अमिताभ बच्चन की कामयाबी का कारवां चलता रहे और वह सदी के महानायक बने रहें।
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