Lakhamandal Shiv Temple: सावन में भगवान शिव के इस रहस्यमई मंदिर के करें दर्शन, यहां मुर्दे भी हो जाते हैं जिंदा
देहरादून से करीबन 128 किमी दूर पर स्थित लाखामंडल जगह पर भोलेनाथ का यह मंदिर स्थित है। यमुना नदी के तट पर बर्नीगाड़ नामक जगह से कुछ दूरी पर स्थित यह मंदिर है। इस मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू है।
सावन का महीना चल रहा है और यह महीना शिव भक्तों के लिए काफी खास है। बता दें कि इस साल सावन महीने में 75 साल बाद दुर्लभ संयोग बन रहा है। दरअसल, इस बार सावन महीने की शुरूआत सोमवार के दिन से हुआ है औऱ इसकी समाप्ति भी सोमवार के दिन होगी। इस बार सावन महीने में पांच सोमवार के व्रत किए जाएंगे। सावन का महीना दिव्य ऊर्जा से जुड़ने के लिए बेहद अनुकूल माना जाता है।
इस महीने शिव भक्त महादेव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको ऐसे शिव मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कई रहस्यों और चमत्कारों से भरा पड़ा है। हम आपको उत्तराखंड के लाखामंडल शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर मुर्दे भी जिंदा हो जाते हैं। आइए जानते हैं उत्तराखंड के अनोखे शिव मंदिर के बारे में...
इसे भी पढ़ें: Statue of Belief: दुनिया की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा 'विश्वास स्वरूपम' का करें दर्शन, दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
भगवान शिव का अनोखा मंदिर
बता दें कि देहरादून से करीबन 128 किमी दूर पर स्थित लाखामंडल जगह पर भोलेनाथ का यह मंदिर स्थित है। यमुना नदी के तट पर बर्नीगाड़ नामक जगह से कुछ दूरी पर स्थित यह मंदिर है। इस मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू है। मान्यता है कि इस शिवलिंग में पूरा संसार दिखाई दे जाता है। सावन के महीने में यहां पर शिव भक्तों की भारी भीड़ लगती है। इस मंदिर में एक अलग नजारा देखने को मिलता है। यह जगह गुफाओं और भगवान शंकर के प्राचीन अवशेषों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि इस मंदिर में प्रार्थना करने से जातक को पापों से मुक्ति मिल जाती है।
मंदिर के पास लक्षागृह गुफा
महादेव का यह नागर शैली का मंदिर करीब 12-13वीं शताब्दी में बनाया गया था। बताया जाता है कि इस जगह पर खुदाई के समय विभिन्न आकार और विभिन्न ऐतिहासिक काल के कई शिवलिंग मिले हैं। जिस कारण इस शिव मंदिर को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया - ASI की निगरानी में रखा गया है। बता दें कि परिस्थितियों के अनुसार कभी-कभी इस स्थान को खाली भी करवाया जाता है। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर लाक्षागृह गुफा है। यहां पर शेषनाग के फन के नीचे विराजमान शिवलिंग पर पानी टपकता रहता है।
दुर्योधन ने कराया था लाक्षागृह का निर्माण
महाभारत काल में कौरवों ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए यहां लाक्षागृह का निर्माण किया था। लेकिन कौरवों के षड़यंत्र से बचकर निकलने में पांडव कामयाब हो गए थे। जिसके बाद अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठिर ने यहां पर शिवलिंग की स्थापना की थी। इस मंदिर में आप आज भी इस शिवलिंग को देख सकते हैं। एक मान्यता के अनुसार, यूपी में लाक्षागृह बताया जाता है। वहीं एक अन्य कथा के मुताबिक महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद जब पांडव हिमालय गए तो उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इस दौरान पांडवों ने एक लाख शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसके कारण इस मंदिर का नाम लाखामंडल रखा गया था।
मंदिर के गर्भगृह में हैं इन देवी-देवताओं की मूर्ति
बता दें कि लाखामंडल शिव मंदिर केदारनाथ मंदिर की शैली की तरह निर्मित है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शंकर, मां पार्वती, कार्तिकेय, काल भैरव, गणेश, सरस्वती, दुर्गा, विष्णु, सूर्य और हनुमानजी की मूर्तियां स्थापित हैं। इस मंदिर का संबंध द्वापर और त्रेता युग से भी है। बताया जाता है कि मंदिर के गर्भगृह में मां पार्वती के पैरों के निशान बताए जाते हैं। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण ग्रेफाइट लिंगम है। यह गीला होने पर चमकता है और अपने परिवेश को प्रतिबिंबित करता है।
शिवलिंग के सामने हैं द्वारपाल
इस मंदिर में शिवलिंग के सामने दो द्वारपालों की मूर्तियां दिखाई देगीं। यह मूर्तियां पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके खड़े हैं। मान्यता के अनुसार, अगर इन दोनों द्वारपालों के सामने शव को रख दिया जाए और पंडित उस शव पर पवित्र जल छिड़क दे, तो मृत व्यक्ति कुछ समय के लिए फिर से जीवित हो सकता है। मान्यता के अनुसार, मृत व्यक्ति जीवित होने के बाद भगवान का नाम लेता है और पवित्र जल को लेने के बाद आत्मा फिर से शरीर छोड़कर चली जाती है।
अन्य न्यूज़