Gyan Ganga: रावण की किस बात को सुन कर वीर अंगद हक्के बक्के रह गये थे?

Ravana
Creative Commons licenses
सुखी भारती । Aug 8 2023 3:01PM

वीर अंगद ने रावण के इस मिथ्या भ्रम की बक-बक सुनी, तो वे भी आश्चर्य में पड़ गए। कारण कि वैसे तो संपूर्ण संसार ही भ्रम में जीता है, लेकिन कोई भ्रम में इस स्तर पर भी डूब सकता है, यह हमने रावण के रूप में प्रथम बार देखा था।

वीर अंगद ने रावण के मिथ्या ऐश्वर्य की, भरी सभा में ऐसी छीछा लीदर की, कि ऐसी अगर किसी गाँव के कुत्ते के साथ हो जाये, तो वह गाँव ही छोड़ कर भाग जाये। लेकिन रावण है, कि सत्य से अवगत होने को तैयार ही नहीं है। उसे स्वयं के सर्व समर्थवान होने के भ्रम ने ऐसे जकड़ा है, कि उसे संपूर्ण जगत ही भ्रम में भ्रमण करता हुआ प्रतीत हो रहा है। उसे आश्चर्य हो रहा है कि आखिर यह वानर मेरी प्रभुता को समझ क्यों नहीं पा रहा है। जबकि, वास्तविकता में तो, सर्वप्रथम मूर्ख रावण को ही यह समझने की आवश्यक्ता थी, कि उसका बल व सामर्थ एक कीट से अधिक कुछ नहीं है और वह भिड़ने की मूर्खता कर रहा है पक्षीराज गरुड़ से? तभी तो वीर अंगद की महान सीख पर उसे गर्व नहीं, अपितु क्रोध आ रहा है। अबकी बार वीर अंगद ने रावण को इतना अधिक धोया, कि रावण आपे से बाहर हो गया, और बोला-

‘रे कपि अधम मरन अब चहसी।

छोटे बदन बात बड़ि कहसी।।

कटु जल्पसि जड़ कपि बल जाकें।

बल प्रताप बुधि तेज न ताकें।।’

रावण क्रोध से कंपित होंठो पर, शब्दों के दूषित छींटे छिड़कते बोला, कि अरे नीच बंदर! अब तू मरना ही चाहता है। इसी से छोटे मुँह बड़ी बात कहता है। अरे मूर्ख बंदर! तू जिसके बल पर कडुए वचन बक रहा है, उसमें बल, प्रताप, बुद्धि अथवा तेज कुछ भी नहीं है।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: रावण को किसके सद्गुणों के बारे में अंगद समझा रहे थे?

वीर अंगद ने दुष्ट रावण के यह वचन सुने, तो उन्हें भी यह आश्चर्य हुआ, कि रावण आखिर क्या सोच कर यह दावा कर रहा है? वीर अंगद ने पूछ ही लिया, कि हे रावण, तेरे इस दावे का क्या आधार है? तो रावण व्यर्थ की बकवास करता हुआ कहता है-

‘अगुन अमान जानि तेहि दीन्ह पिता बनवास।

सो दुख अरु जुबती बिरह पुनि निसि दिन मम त्रस।।’

रावण ने श्रीराम जी के संबंध में जो धारणा को पाल रखा है, उसे श्रवण कर निश्चित ही हँसी आये बिना नहीं रह सकती। रावण प्रभु श्रीराम जी को इतने हलके में लेता होगा, इसकी तो हमने कल्पना भी नहीं की होगी। जी हाँ! रावण वीर अंगद को कहता है, कि अरे दुष्ट बंदर! तुझे नहीं पता। दरअसल राजा दसरथ अपने पुत्र राम के बारे में बहुत पहले ही भाँप गए थे। वीर अंगद ने कहा कि निश्चित ही राजा दसरथ को, श्रीराम जी के प्रभु होने का ज्ञान हो गया होगा। तो रावण तपाक से बोला, कि नहीं रे! राजा दसरथ को ऐसा कोई भ्रम नहीं हुआ था। बल्कि उनका तो इस भ्रम से पर्दा उठा था, कि मेरा बेटा कोई सयाना अथवा ज्ञानी नहीं है। उल्टे वह तो निरा गुणहीन व मानहीन है। यह अयोध्या में रहेगा, तो नाहक ही कलेश का कारण बना रहेगा। तो क्यों न इसे वनवास ही दे दिया जाये। यह सोच कर राजा दसरथ ने राम को वनों में भटकने को भेज दिया था। वनों में आकर उस वनवासी राम के दुखों का अंत निश्चित ही हो जाता। लेकिन उस वनवासी राम ने एक गलती करदी। वह मेरे से नाहक ही भिड़ गया। भिड़ गया, तो भी कोई बात नहीं थी। लेकिन अगर वह मेरी प्रभुता को स्वीकार कर लेता, तो मैं निश्चित ही उसे अभय दान दे देता। लेकिन अज्ञानता वश वह तो एक से एक अनीतियां व अपराध करता रहा। जिस कारण मैंने उसकी पत्नी का हरण कर लिया। अब उस वनवासी राम की स्थिति यह है, कि एक तो उसे पिता द्वारा घर से निकालने का दुख है। उस पर उसे अपनी पत्नि के बिछुड़ने का दुख, उसे निरंतर व्याकुल किए हुए है। वह पल प्रतिपल उसी की याद में, अपनी आँखों को नम किए रखता है। भूख प्यास का भी उसे कोई भान नहीं है। इन दुखों को तो फिर भी सहा जा सकता है, लेकिन इन सबसे बड़ा व भयंकर दुख तो एक और है, जो कि उसके प्राण ही लिए जा रहा है। और उस दुख का कोई उपचार भी दिखाई प्रतीत नहीं होता। वह दुख यह है, कि उसे दिन रात मेरा ही भय सताता रहता है। उसे ठीक से नींद भी नहीं आती। किसी क्षण वह वनवासी अगर नींद को अपने नेत्रों में पाता भी है, तो उसमें भी उसे स्वप्न में मेरा चेहरा डराये रखता है। जिस कारण उसे नींद भी नहीं आती।

वीर अंगद ने रावण के इस मिथ्या भ्रम की बक-बक सुनी, तो वे भी आश्चर्य में पड़ गए। कारण कि वैसे तो संपूर्ण संसार ही भ्रम में जीता है, लेकिन कोई भ्रम में इस स्तर पर भी डूब सकता है, यह हमने रावण के रूप में प्रथम बार देखा था।

वीर अंगद रावण के वाक्यों की क्या प्रतिक्रिया देते हैं, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।

- सुखी भारती

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़