Brihaspativar Vrat Katha: इस कथा के बिना अधूरा माना जाता है बृहस्पतिवार का व्रत, ऐसे करें पूजन तो पूरी होगी हर मनोकामना

Brihaspativar Vrat Katha
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हिंदू धर्म में कई लोग जीवन में सुख शांति और मनोकामना की पूर्ति के लिए गुरुवार का व्रत करते हैं। गुरुवार की व्रत कथा करने से व्यक्ति को जीवन की सभी परेशानियों से छुटाकार मिल जाता है।

हिंदू धर्म में कई लोग जीवन में सुख शांति और मनोकामना की पूर्ति के लिए गुरुवार का व्रत करते हैं। व्रत कथा के नियम के मुताबिक गुरुवार के व्रत के दौरान पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए, पीला भोजन करें, भगवान श्रीहरि विष्णु को पीले रंग का भोग चढ़ाएं। इसके साथ ही श्रीहरि विष्णु और केले के पेड़ का विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। मान्यता के अनुसार, बृहस्पतिवार व्रत कथा के पाठ करने से मनुष्य के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बृहस्पतिवार व्रत कथा का संपूर्ण पाठ बताने जा रहे हैं। जिसे गुरुवार को व्रत के दौरान जरूर पढ़ना चाहिए।

बृहस्पतिवार व्रत कथा

पुराने समय में एक बड़ा ही दानी व प्रतापी राजा राज करता था। राजा स्वभाव से बहुत ही दानी और दयालु और हमेशा धर्म-कर्म के मार्ग पर चलना पसंद करता था। लेकिन उसकी रानी को राजा की यह सारी बातें अच्छी नहीं लगती थी। रानी न तो व्रत करती और न ही दान-पुण्य करती। इसके साथ ही वह राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी। एक बार जब राजा शिकार खेलने के लिए घए हुए थे, तो रानी और दासी घर पर अकेले थी। तभी भगवान बृहस्पति साधु का वेश धारण कर भिक्षा मांगने आए। साधु को देख रानी ने कहा कि हे महाराज, मैं इस दान-पुण्य से तंग आ गई हूं। इसके लिए तो मेरे पति ही काफी हैं। कृपया आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं। जिससे कि यह सारा धन नष्ट हो जाए और वह आराम से रह सकें, साथ ही उसके पास करने के लिए कोई काम न हो।

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रानी की बात सुन साधु महाराज ने कहा कि हे रानी, तुम तो बड़ी विचित्र हो। क्योंकि संतान और धन से कोई दुखी नहीं होता है। अगर तुम्हारे पास अधिक धन है, तो इसे दान-पुण्य और शुभ कामों मे लगाओ। लेकिन रानी साधु की यह बात अच्छी न लगी और कहने लगी कि मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं, जिसे रखने-संभालने में ही मेरा सारा समय बीत जाए। रानी की बात सुन साधु के वेष में आए बृहस्पति भगवान ने कहा कि यदि तुम ऐसा चाहती हो, तो ऐसा ही होगा। जैसा मैं बताता हूं तुम्हे वैसा करना होगा। साधु महाराज ने रानी से कहा कि तुम 7 बृहस्पतिवार अपने घर को गोबर से लीपना, भोजन में मांस मदिरा का सेवन करना, कपड़ा धोबी के यहां धुलवाना। इन कार्यों को करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा और तुम आराम से रह सकोगी। इतना कह साधु देव अंर्तध्यान गए।

रानी ने साधु के बताए मार्ग पर चलना शुरू कर दिया। तीन बृहस्पतिवार बीतने पर ही राजा की धन-संपदा नष्ट हो गई। राजा का परिवार भोजन के लिए तरसने लगे। गरीबी को देखने हुए एक दिन राजा ने रानी से कहा कि यहां पर उसे सब जानते हैं, इसलिए वह परदेस जाकर कोई काम कर लेंगे। ऐसा कह कर राजा परदेस चले गए। परदेस में राजा जंगल से लकड़ी काटकर लाता और उसे बाजार में बेच देता। वहीं रानी और दासी घर पर अकेली रह गईं। एक समय बात रानी और दासी को लगातार 7 दिनों तक बिना भोजन के रहना पड़ा। इस पर रानी ने दासी से कहा कि पास में ही उसकी बहन का घर है। वह काफी धनवान है, तू उसके घर जा और खाने के लिए कुछ सामान ले आ। ताकि कुछ दिन गुजर-बसर हो सके। 

जब दासी रानी की बहन के घर गई तो उस दिन बृहस्पतिवार का दिन था। रानी की बहन भगवान बृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी। जब दासी ने रानी का संदेश उसकी बहन को सुनाया तो उसने कोई उत्तर न दिया। बहन से उत्तर न मिलने पर दासी को गुस्सा आया और वह दुखी भी हुई। दासी ने वापस आकर सारी बात रानी को सुनाई तो रानी अपने भाग्य को कोसने लगी। वहीं रानी की बहन ने सोचा कि बहन की दासी आई थी, लेकिन तब वह कथा सुनने के कारण उसे उत्तर नहीं दे पाई थी। क्योंकि जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न कुछ बोलते हैं। ऐसा सोच वह रानी के घर चल दी। बहन ने रानी से पूछा कि दासी क्यों आई थी। तो रानी ने कहा कि तुमसे कुछ छिपा नहीं है। हमारे घर में खाने के लिए कुछ नहीं था। ऐसा कह रानी की आंखे भर आईं।

तब रानी की बहन ने कहा कि भगवान बृहस्पति सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। तो रानी की दासी ने कहा कि वैसे तो हम रोज ही व्रत करते हैं। यदि आप अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछ लें तो हम भी इस व्रत को किया करेंगे। तब रानी की बहन ने बताया कि बृहस्पतिवार के व्रत में केले की जड़ में चने की दाल और मुनक्का से पूजन करें। दीपक जलाएं, कथा सुने और पीला भोजन करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। रानी की बहन ने उसे बृहस्पतिवार व्रत करने की सलाह दी और व्रत की विधि, कथा और पूजन के बारे में बताकर अपने घर चली आई। एक सप्ताह बाद जब गुरुवार का दिन आया तो रानी और दासी ने व्रत किया। दासी ने घुड़साल जाकर चना-गुड़ बीन लाई। फिर केले की जड़ व भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा कर कथा सुनी।

रानी और दासी ने व्रत कर लिया अब वह दुखी हुईं कि पीला भोजन कहां से आए। लेकिन उन दोनों को व्रत करता देख गुरु भगवान ने प्रसन्न होकर एक व्यक्ति के रूप में दो थालों में सुंदर पीला भोजन दे गए। तब रानी और दासी दोनों ने भोजन ग्रहण किया। इसके बाद रानी और दासी दोनों गुरुवार का व्रत और पूजन करने लगीं। देव गुरु बृहस्पति की कृपा से उनके पास धन संपत्ति आ गई। जिसके बाद रानी फिर से आलस करने लगी। तब दासी ने रानी से कहा कि तुम पहले भी आलस करती थी। जिसके कारण सारा धन नष्ट हो गया। अब बड़ी मुश्किल से धन मिला है, तो इसे दान पुण्य के कार्यों में लगाओ। भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह करवाओ। रानी ने दासी की बात मानकर यह कार्य करने शुरू किए तो पूरे नगर में रानी और दासी का यश बढ़ने लगा।

वहीं राजा जंगल में दुखी होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और पुरानी बातों को याद कर रोने लगा। तभी गुरु भगवान साधु का वेष रख राजा के पास आए और उससे रोने का कारण पूछने लगे। राजा ने दोनों हाथ जोड़कर कहा कि आप तो सब जानते हैं। ऐसा कह राजा ने अपनी पूरी बात साधु देव को बताई। तो साधु देव ने कहा कि राजन् तेरी रानी ने देव गुरु का निरादर किया था। जिसके कारण तुम्हारी यह दशा हुई है। लेकिन अब तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे। तुम पहले से अधिक धनवान होगेय़ जीवन में सुख और यश की प्राप्ति के लिए बृहस्पतिवार व्रत कथा करना शुरू कर दो। 

साधु ने राजा से कहा कि तुम बृहस्पतिवार के दिन चना और मुनक्का से केले के पेड़ और बृहस्पति देव की पूजा कर व्रत कथा करना। इससे तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे। यह बात सुन राजा बोला कि लकड़ी बेचकर इतने पैसे नहीं मिलते, जिससे कि भोजन के बाद कुछ बचा सकूं। राजा ने कहा कि रात्रि को स्वप्न में मैनें अपनी रानी को दुखी देखा। मेरे पास कोई साधन भी नहीं जिससे मैं उसकी खबर ले सकूं। ललकड़हारे की बात सुन साधु महाराज ने कहा कि तुम चिंता न करो। रोजाना की तरह लकड़ी बेचने जाना तुम्हे दोगुना धन मिलेगा। उस पैसे से तुम पूजा का सामान ले लोगे और भोजन भी कर पाओगे।

समय बीतने के साथ ही जब गुरुवार का दिन आया तो लकड़हारा लकड़ी बेचने के लिए शहर पहुंचा। उस दिन उसे अन्य दिनों से अधिक धन मिला। जिससे राजा ने भोजन कर पूजा का सामान ले लिया और गुरुवार का व्रत किया। इससे उसके दुख के दिन दूर हो गए। लेकिन अगले गुरुवार को राजा व्रत करना भूल गया, जिसके कारण गुरु भगवान उससे नाराज हो गए। तभी उसी दिन उस नगर के राजा ने एक घोषणा करवाई कि कोई भी व्यक्ति अपने घर भोजन नहीं बनाएगा। साथ ही जो राजा की आज्ञा नहीं मानेगा उसको फांसी की सजा दी जाएगी। नगर के लोग राजा की आज्ञा मानकर भोजन करने गए। लेकिन लकड़हारे को कुछ देर हो गई तो राजा उसे अपने साथ भोजन के लिए ले गए। तभी रानी की दृष्टि खूंटी पर पड़ी जहां पर उनका हार लटका हुआ था। 

रानी ने जब खूंटी पर हार नहीं देखा तो उन्होंने कहा कि इस लकड़हारे ने मेरा हार चुरा लिया है। इस पर राजा ने लकड़हारे को कारागार में डलवा दिया। जेल पहुंच राजा बहुत दुखी हुई और मन ही मन साधु महाराज को ध्यान करने लगा। तभी साधु के रूप में बृहस्पति देव ने प्रकट होकर कहा कि गुरुवार व्रत कथा न करने के कारण तेरी यह दशा हुई है। तू चिंता मत तक गुरुवार के दिन तुझे कारागार के द्वारा पर पैसे पड़े मिलेंगे। जिससे तू व्रत कथा करना, इससे तेरे सारे दुख दूर हो जाएंगे। गुरुवार को लकड़हारे को पैसे पड़े मिले तो उसने बहस्पतिवार की कथा सुनी। उसी रात उस नगर के राजा को भगवान बृहस्पतिदेव ने स्वप्न में कहा कि लकड़हारे ने हार नहीं चुराया है, वह निर्दोष है। अगर तू उसे नहीं छोड़ेगा तो मैं तेरा राज्य नष्ट कर दूंगा।  

जब अगले दिन राडा उठा तो उसने खूंटी पर हार लटका देख लकड़हारे के आजाद कर उससे क्षमा मांगी। फिर सुंदर वस्त्र और आभूषण देकर विदा किया। गुरु भगवान की आज्ञा मानकर राजा अपने राज्य को लौट आया। लेकिन जब वह राज्य के निकट पहुंचा तो राज्य में पहले से अधिक बाग और धर्मशाला देख हैरान रह गया। राजा ने नगरवासियों से पूछा कि यह सब किसका तो नगरवासियों ने रानी का नाम लिया। यह सुन राजा को आश्चर्य के साथ गुस्सा भी आया। जब रानी ने सुना कि राजा आ रहे हैं, तो उसने दासी से कहा कि देख राजा हमें कितनी बुरी हालत में छोड़ गए थे। ऐसा न हो कि यह सब देख वह वापस लौट जाएं। इसलिए तू द्वार पर खड़ी हो जा और जब राजा आएं तो उन्हें अपने साथ ले आना।

जब दासी राजा को लेकर आई तो राजा ने तलवार निकाल रानी से पूछा कि यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ। तो रानी ने कहा कि यह धन गुरु भगवान की कृपा से प्राप्त हुआ है। रानी की बात सुन राजा ने निश्चय किया कि सभी गुरुवार को व्रत कथा करते हैं, लेकिन वह हर दिन गुरु भगवान का व्रत करेगा और दिन में तीन बार कथा करेगा। अब राजा हर समय अपने दुपट्टे में चने की दाल बांधे रहता और दिन में तीन बार कथा कहता। एक दिन राजा ने सोचा कि अपनी बहन के यहां हो आएं। इस तरह से वह घोड़े पर सवार होकर चल दिया। रास्ते में कुछ लोद एक मुर्दे को लेकर जा रहे थे। तो राजा ने उन्हें रोक कर अपनी कथा सुनाने के लिए कहा।

कुछ लोगों ने कहा कि हमारा आदमी मर गया है और उसे अपनी कथा की पड़ी है। तो वहीं कुछ लोगों ने कहा कि हम तुम्हारी कथा सुनेंगे। इस तरह से राजा ने दाल निकाली और कथा कहना शुरू किया। जब कथा आधी हुई तो मुर्दा हिलने लगा। वहीं कथा की समाप्ति पर मुर्दा राम-राम कह उठ खड़ा हुआ। आगे बढ़ने पर राजा को किसान खेत में हल चलाता मिला। राजा ने किसान से कथा सुनने को कहा तो किसान ने कहा कि जब तक वह कथा सुनेगा तब तक तीन हरैया खेत जोत लेगा। राजा के आगे बढ़ते ही किसान के पेट में दर्द होने लगा और बैल पछाड़ खाकर गिर गए। तभी किसान की मां खेतों पर पहुंची तो उसे सारी बात पता लगी। तब बुढ़िया दौड़ी-दौड़ी राजा के पास जाकर कहने लगी कि वह कथा सुनेगी। लेकिन कथा उसके खेत पर कहें। राजा की कथा सुन बैल भी ठीक हो गए और किसान का पेट दर्द भी बंद हो गया।

जब राजा अपनी बहन के घर पहुंचा, बहन ने अपने भाई की खूब खातिरदारी की। दूसरे दिन जब राजा जगा तो उसने देखा कि सभी लोग भोजन कर चुके हैं। तो राजा ने अपनी बहन से पूछा कि क्या कोई ऐसा होगा जिसने अभी तक भोजन न किया हो। तो बहन बोली कि यहां तो सब सुबह ही भोजन कर लेते हैं। लेकिन अगर कोई आसपास होता है तो मैं देख आती हूं। बहन ने पता किया कि पास में कुम्हार के घर में उसका बेटा बीमार है और उसके घर में किसी ने भोजन नहीं किया। बहन ने आग्रह किया कि भाई की सुन लें। जब राजा ने कुम्हार के घर जाकर कथा कही तो उसका बीमार लड़का ठीक हो गया। यह देख चारो तरफ राजा की प्रशंसा होने लगी।

इसके बाद एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा कि वह अपने घर को जाएंगे और तुम भी तैयार हो जाओ। जब राजा की बहन ने अपनी सास से पूछा तो उसने कहा कि तू चली जा, लेकिन अपने बच्चों को मत ले जाना। क्योंकि तुम्हारे भाई के बच्चे नहीं है। इस पर बहन अपने भाई से बोली कि भइया मैं तो चलूंगी लेकिन कोई बालक नहीं जाएगा। यह सुन राजा दुखी हो गया और कहने लगा कि जब एक भी बालक नहीं जाएगा तो तुम साथ चलकर क्या करोगी। यह कहकर राजा दुखी मन से अपनी बहन के घर से वापस आ गया। रानी ने राजा को दुखी देख कारण पूछा तो राजा ने सारी कहानी सुना दी और कहा कि हर निरवंशी हैं। इस पर रानी ने कहा कि बृहस्पति भगवान हमें संतान अवश्य देंगे।

उसी रात भगवान बृहस्पति देव ने राजा को सपने में कहा कि हे राजन् उठ सोच त्याग। तेरी रानी गर्भ से है। देव गुरु बृहस्पति की बात सुन राजा खुश हुआ। रानी ने 9 महीने बाद एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। इसके बाद राजा ने रानी से कहा कि स्त्री बिना भोजन रह सकती है, लेकिन बात कहे बिना नहीं रह सकती। इसलिए जब मेरी बहन आए तो उससे कुछ मत कहना। लेकिन जब राजा की बहन बधाई देने आई तो रानी ने कहा कि घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चढ़ी आई। तो बहन ने कहा कि भाभी अगर मैं ऐसे न कहती तो तुम्हें संतान कैसे होती। बृहस्पति भगवान सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। जो भी भक्तिपूर्वक बृहस्पतिवार कथा को पढ़ता, सुनता और दूसरों को सुनाता है। गुरु भगवान सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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