Gyan Ganga: संपूर्ण धरा ही श्रीपार्वती जी के दिव्य आभामण्डल से सुशोभित हो रही थी

maa parvati ji
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सुखी भारती । Aug 20 2024 2:37PM

पर्वजराज ने मुनि का आदर सम्मान करते हुए, पहले तो उनके चरण धोये, फिर उन्हें उत्तम सम्मान दिया। इसके पश्चात पर्वतराज एक ऐसे संस्कार का निरवाह करते हैं, जिसका अभाव आज संपूर्ण समाज में देखने को मिलता है।

श्रीपार्वती जी का जब से हिमालय पर्वत के महल में जन्म हुआ है, तब से उनके आँगन में सिवा उत्सव में कुछ हो ही नहीं रहा। ऐसा नहीं कि श्रीपार्वती जी के गुणों की महिमा केवल हिमाचल नगरी में ही हो रही थी, अपितु संपूर्ण धरा ही श्रीपार्वती जी के दिव्य आभामण्डल से सुशोभित हो रही थी। पुष्प की सुगंध जैसे चारों ओर पुष्प की उपस्थिति का अहसास करवा देती है। ठीक वैसे ही श्रीपार्वती जी के दिव्य गुणों की चर्चा श्रीनारद जी के कर्णद्वारों तक भी पहुँची।

निःसंदेह श्रीनारद जी से भला क्या रहस्य छुप सकता था? वो तो पहले से ही जानते थे, कि श्रीपार्वती जी कोई हिमालय अथवा माता मैना की बेटी नहीं थी, अपितु केवल उन्हीं की माता न होकर, वे तो संपूर्ण जगत की माता थी। और माता के दर्शन श्रीनारद जी न करें ऐसा भला कैसे हो सकता था? किंतु अपने प्रभुत्व के प्रभाव को छोड़ कर, वे सामान्य मुनि भाव में ही हिमालय के यहाँ पहुँचे।

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पर्वजराज ने मुनि का आदर सम्मान करते हुए, पहले तो उनके चरण धोये, फिर उन्हें उत्तम सम्मान दिया। इसके पश्चात पर्वतराज एक ऐसे संस्कार का निरवाह करते हैं, जिसका अभाव आज संपूर्ण समाज में देखने को मिलता है। वह संस्कार यह था, कि पर्वतराज ने केवल स्वयं ही मुनि के चरण नहीं धोये, अपितु उसके पश्चात अपनी पत्नि के साथ भी मुनि चरणों में प्रणाम किया। प्रायः ऐसा होता है, कि अगर हम अपने पैर धोयें, तो हम उस पानी को फेंक देते हैं। क्योंकि वह जल मलिन हो जाता है। किंतु हिमालय ने जिस जल से मुनि के चरण सुंदर पात्र में रख कर धोये, उन्होंने उस जल को गिराने की बजाए, उस जल को अपने संपूर्ण महल में छिड़का। ऐसा इसलिए, क्योंकि संतों के चरण की धूली में अपार दिव्यता का संगम होता है। उनकी चरण धूली जब जल का संग कर लेती है, तो वह जल, साक्षात गंगा जल से भी अधिक पवित्र हो जाता है। ऐसा गंगामय जल, जब हिमवान के घर में स्वयं चल कर आया हो, तो संपूर्ण घर में उसका छिड़काव कर, सारे घर को पवित्र करने का सुअवसर क्यों न किया जाये?

हिमवान वह पावन जल छिड़कते-छिड़कते, बड़ी प्रसन्नता से अपने अहोभाग्य का बखान कर रहे हैं। गीत गा रहा है, कि मेरे जैसे सुंदर व बड़े भाग्य तो किसीके होंगे ही नहीं, जिसके घर में संत मुनि पधारे हों। पर्वतराज इसके पश्चात अपनी पुत्री श्रीपार्वती जी को लेकर आ गए, और मुनि के चरणों में पुत्री को ऐसे सोंप दिया, मानों वे ईष्ट देवता के चरणों में पुष्प प्रसादी चढ़ा रहे हों। श्रीपार्वती जी भी इस सुंदर क्रिया का बड़े आदर भाव से पालन करती हैं-

‘नारि सहित मुनि पद सिरु नावा।

चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा।।

निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना।

सुता बोलि मेली मुनि चरना।।’

पर्वतराज ने पूछा! हे मुनिवन आप त्रिकालदर्शी व महाज्ञानी हैं। आप तो सबका भूत, भविष्य व वर्तमान जानते हैं। कृपया हमारी प्रिय कन्या का भविष्य बताने का कष्ट करें।

तब मुनि ने रहस्ययुक्त कोमल वाणी से कहा-आपकी कन्या सब गुणों की खान है। यह स्वभाव से ही सुंदर, सुशील और समझदार है। उमा, अम्बिका और भवानी इनके नाम हैं। कन्या सब सुलक्षणों से सम्पन्न होगी। यह अपने पति को सदा प्यारी होगी। इसका सुहाग सदा अचल रहेगा और इसके माता पिता यश पावेंगे। केवल इतना ही नहीं, कन्या सारे जगत में पूज्य होगी, और इसकी सेवा करने से कुछ भी दुर्लभ न होगा। संसार में स्त्रियाँ इनका नाम स्मरण करके पतिव्रता रुपी तलवार पर चढ़ जायेंगी।

हे पर्वतराज! तुम्हारी कन्या सुलक्षणी है। अब इनमें दो-चार अवगुण भी हैं, तो अब उन्हें भी सुन लें। गुणहीन, मानहीन, माता-पिताविहीन, उदासहीन, संशयहीन, योगी, जटाधारी, निष्काम, हृदय, नंगा और अमंगल वेष वाला, ऐसा पति इनको मिलेगा। इनकी हस्तरेखा ऐसा ही कहती है-

‘सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी।

दुख दंपतिहि उमा हरषानी।।’

नारद मुनि की वाणी सुनकर और उसको हृदय में सत्य जानकर पति-पत्नि को दुख हुआ, किंतु श्रीपार्वती जी ऐसा सुनकर भी प्रसन्न हो गई। देवर्षि की वाणी झूठी नहीं होगी, ऐसा विचार कर हिमवान, मैना और सारी चतुर सखियाँ चिंता करने लगीं। फिर हृदय में धीरज धरकर, हिमवान ने मुनि से कहा-हे नाथ! अब कहिए, क्या उपाय किया जाये?

मुनि ने कहा-हे हिमवान! सुनो, विधाता ने ललाट पर जो कुछ लिख दिया है, उसको देवता, दानव, मनुष्य, नाग और मुनि कोई भी नहीं मिटा सकते। तो भी एक उपाय मैं बताता हुँ। यदि दैव सहायता करें तो वह सिद्ध हो सकता है। उमा को वर तो निःसंदेह वैसा ही मिलेगा, जैसा मैंने तुम्हारे समक्ष वर्णन किया है। किंतु वर में जो दोष व कमीयाँ मैंने गिनााई हैं, मेरे अनुमान से वे सब भगवान शंकर में हैं। यदि उमा का भोलेनाथ जी के साथ विवाह हो जाये, तो दोषों को भी सब लोग गुणों की दृष्टि से ही देखेंगे।

क्या पार्वती जी के घर वाले मुनि की बात को स्वीकार कर लेते हैं, अथवा नहीं? जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।

- सुखी भारती

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