Gyan Ganga: सद्गति श्रीराम जी के साथ लड़ने से नहीं, अपितु पावन श्रीचरणों में न्योछावर होने से मिलती है

Lord Rama
Prabhasakshi
सुखी भारती । Dec 5 2023 4:34PM

सद्गति श्रीराम जी के साथ लड़ने से नहीं, अपितु श्रीराम जी के पावन श्रीचरणों में न्योछावर होने से होगी। अहल्या को ऋर्षि का शाप मिलने के पश्चात भी वह कभी कुछ नहीं बोली। किंचित भी अपने साथ हुई अनहोनी का उलाहना नहीं दिया।

भगवान श्रीराम जी का समस्त जीवन चक्र है ही ऐसा, कि उन्हें आम जन मानस अपना श्रेष्ठ आदर्श न बनाये तो और क्या करे। संसार में मानव को जितने भी लाभान्वित पक्ष मिलने चाहिए, वे सभी एक ही छत्र तले मिलने का प्रबंध, श्रीराम जी ने कर रखा है। 

श्रीराम जी का मत है कि दिखने में तो रावण के पास सब कुछ हैए जिसमें बुद्धि, कीर्ति, सद्गति, ऐश्वर्य व भलाई आते हैं। लेकिन हम विगत अंकों में पहले ही जान चुके हैं, कि रावण की बुद्धि व कीर्ति तो बस कहने को ही है। ऐसे ही सद्गति ऐश्वर्य व भलाई भी रावण ने नहीं कमाई।

मति कीरति गति भूति भलाई।

जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई।।

सो जानब सतसंग प्रभाऊ।

लोकहुँ बेद न आन उपाऊ।।’

सद्गति की बात करें, तो समाज के भीतर एक भ्रम ने स्थान बना रखा है, कि रावण श्रीराम जी से इसलिए बैर करता था, क्योंकि वह मुक्ति चाहता था। उसका तर्क था, कि वह श्रीराम जी के हाथों मृत्यु प्राप्त करके, मोक्ष को प्राप्त हो जाएगा।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: श्रीराम ने श्रीजटाऊ जी को सम्मान देकर उनकी कीर्ति में अपार इजाफा किया

अगर रावण सचमुच ऐसा सोचता था, तो रावण की सोच कितनी अपरिपक्व थी, आप स्वयं सोच सकते हैं। क्योंकि रावण के बारे में आता है, कि वह चारों वेदों और छः शास्त्रों का ज्ञाता था। अब वेदों में ही आता है, कि-

‘वेदाहमेतंपुरुषं महंतं आदित्यवर्णं तमसः परस्तात―(यजु०३१ध१८)’

अर्थात मैं ऐसे महान पुरुष को जानता हूँ, जो सूर्य की भाँति प्रकाशमान है। जिसे जान कर ही मृत्यु से पार जाया सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं है।

सोचिए रावण को तो पूरे वेद कंठस्थ थे। फिर वह यर्जुवेद का यह मंत्र क्यों याद नहीं रख पाया? उसने क्यों ठान लिया, कि श्रीराम जी के साथ युद्ध करके ही मोक्ष को प्राप्त करुँगा? 

भले ही रावण अपनी हठ पर अडिग रहा, लेकिन अपना सर्वनाश करवाने के पश्चात भी, क्या उसका मनोरथ पूर्ण हो पाया? 

इसका उत्तर है नहीं। क्योंकि रावण को अगर मोक्ष प्राप्त हुआ होता, तो उसका अगला जन्म शिशुपाल के रूप में क्यों होता? इसलिए कोई इस भ्रम में न रहे, कि रावण श्रीराम जी के हाथों मरा, तो उसका कल्याण अथवा सद्गति हो गई होगी।

सद्गति श्रीराम जी के साथ लड़ने से नहीं, अपितु श्रीराम जी के पावन श्रीचरणों में न्योछावर होने से होगी। अहल्या को ऋर्षि का शाप मिलने के पश्चात भी वह कभी कुछ नहीं बोली। किंचित भी अपने साथ हुई अनहोनी का उलाहना नहीं दिया। उल्टा वह तो ऋर्षि का धन्यवाद देती है, कि मुनि ने अति भला किया, जो उन्होंने यह शाप दिया, कि मैं पत्थर हो जाऊँ। 

साथ ही यह भी आशीर्वाद दिया, कि त्रेता युग में श्रीराम जी आयेंगे, और वे मुक्ति प्रदान करेंगे। अहल्या ने कहा, कि वैसे तो पता नहीं मुझे श्रीराम जी के दर्शन होते, अथवा न होते, लेकिन ऋषि के वचनों से यह तो पक्का हो गया, कि श्रीराम जी स्वयं मुझे दर्शन देने आयेंगे, और मुझे पत्थर की योनि से मुक्त करेंगे। 

समय आने पर श्रीराम जी अहल्या के पास पहुँचे, और अपनी कृपा से अहल्या को केवल पत्थर योनि से ही नहीं, अपितु भवसागर से भी मोक्ष प्रदान किया। इसे कहते हैं सद्गति।

संसार में भले ही देवी अहल्या को कुछ लोग अपमान की दृष्टि से देखते हों, लेकिन श्रीराम जी ने तो उन्हें सम्मान दिया। भगवान जिसे सम्मान के साथ-साथ मोक्ष प्रदान करें, वह श्रेष्ठ है, अथवा संसार के मायावी व अपरिपक्व लोग कुछ कहें, वह उचित है? इसलिए रावण की कोई गति नहीं हुई। कबीर जी की वाणी तो आपने सुनी ही होगी-

‘एक लख पूत सवा लख नाती।

तह रावण घर दीया न बाती।।’

अगले अंक में हम रावण के ऐश्वर्य की चर्चा करेंगे...(क्रमशः)...जय श्रीराम।

-सुखी भारती

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़