Gyan Ganga: देवकी मैय्या के मन का भय प्रभु ने किस तरह भगाया था?
बालक अद्भुत क्यों? बोले- बच्चे दो हाथ वाले होते हैं, यह चारभुजा वाला है, बालक जन्म के समय आंख बंद किए रहते हैं, यह प्रस्फुटन आंखों वाला है, बालक नग्न पैदा होते हैं, यह तो पीतांबर पहन कर आया है। दूसरे बालक निहत्थे होते हैं, यह तो शंख चक्र गदा पद्म लिए खड़ा है।
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥
प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर सांसारिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।
पिछले अंक में हम सबने कंस और देवकी का संवाद तथा देवताओं के द्वारा की गई गर्भ स्तुति की कथा सुनी और पढ़ी थी।
आइए ! आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं---
देवताओं ने गर्भस्थ गोविंद की स्तुति करते हुए कहा— हे प्रभु ! तीनों कालों में आपकी ही सत्ता है। हे सच्चिदानंद ! तुमको हम बारंबार प्रणाम करते हैं। आपके चरण रूपी नौका का जो आश्रय लेता है, वह इस भवसागर को बछड़े के पैर के गड्ढे के समान आराम से पार कर जाता है, आप के भक्तों का कभी पतन नहीं होता है। गोवर्धन पर्वत का दृष्टांत देते हुए कहते हैं– एक बार सभी गोकुलवासी गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के लिए गए थे, उनमें एक छोटा-सा बालक भी था। किसी ने उस बच्चे से पूछा- परिक्रमा करने तुम भी गए थे? उसने कहा- ''हाँ, मैं भी गया था।'' लेकिन तुम तो थके नहीं, बच्चे ने उत्तर दिया- अपने पैरों पर नहीं, बल्कि पिताजी के कंधों पर गया था। यात्रा तो उस छोटे-से बच्चे ने भी की, किंतु कहीं कोई थकान नहीं, क्योंकि वह अपने पैरों पर तो चला ही नहीं, जो अपने बल का घमंड लेकर चलेगा वह गिरेगा, थकेगा, फिसलेगा, समस्याएं उसके जीवन में आएंगी, लेकिन जो गोविंद की कृपा के सहारे चलेगा वह कठिनाइयों और मुश्किलों के सिर पर पैर रखते हुए दौड़ता हुआ चला जाएगा, उसको कुछ पता भी नहीं चलेगा।
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हे प्रभु ! आपके भक्तों का कभी पतन नहीं होता, रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी वेद भगवान की स्तुति करते हुए उत्तरकांड में कहते हैं—
जे ग्यान मान बिमत्त तव भव हरनि भक्ति न आदरी।
ते पाइ सुर दुर्लभ पदादपि परत हम देखत हरी॥
बिस्वास करि सब आस परिहरि दास तव जे होइ रहे।
जपि नाम तव बिनु श्रम तरहिं भव नाथ सो समरामहे॥
अभिमान छोड़ कर भगवान के चरण कमलों का चिंतन स्मरण और भगवान के गुणानुवाद करना चाहिए। स्मरण और चिंतन में क्या फर्क है जिस को याद करने के लिए चित्त पर जोर लगाना पड़ेगा वह चिंतन है और चित्त पर जोर लगाए बिना याद आ जाए वह स्मरण है। इस प्रकार जिसने अपने चित्त को प्रभु के चरणों में चिपका दिया वह जन्म जन्मांतर के लिए मुक्त हो गया।
देवताओं ने मां देवकी की स्तुति की। मां आप इतनी सौभाग्य शालिनी हैं। जो अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक सबको अपने पेट में धर कर सो जाता है वही परमात्मा तुम्हारे पेट में समा गया तुम्हारे उदर में साक्षात भगवान श्री कृष्ण हैं, इसलिए तुमको अब कंस से डरने की कोई जरूरत नहीं है। कंस को अब तुम मरा हुआ समझो इस प्रकार महादेव और ब्रह्मा जी को आगे कर सभी देवता अंतर्ध्यान हो गए।
शुकदेव जी महाराज कहते हैं--- परीक्षित !
काल: परम् शोभनम् भगवान के जन्म का शुभ समय आ गया। भादों का महीना आ गया कृष्ण पक्ष आ गया, अष्टमी तिथि आ गई, बुधवार आ गया रोहिणी नक्षत्र आ गया, हर्षण योग आ गया, शुभकरण आ गया और देखते देखते मध्यरात्रि आ गई चतुर्भुज नारायण रूप में देवकी वसुदेव के समक्ष प्रकट हो गए हैं। देखिए! यहाँ कृष्ण जन्म के समय चंद्रमा का पूरा परिवार उपस्थित है। सच यह है कि--- राम जन्म के समय चंद्रमा भगवान श्री राम का भरपूर दर्शन नहीं कर पाए थे। भगवान ने वचन दिया था, मेरा अगला अवतार आपके वंश में होगा भरपूर दर्शन कर लेना। उस समय केवल तीन लोग ही जागते रहेंगे— देवकी, वसुदेव और आप यानी चंद्रमा। चंद्रमा समझ गया आज वह समय आ गया है, बहुत प्रसन्न है। अष्टमी का होते हुए भी पूर्णिमा की तरह चमक रहा है। वास्तव में संसार जब भी मिलता है अधूरा ही मिलता है और परमात्मा जब भी मिलता है पूरा मिलता है।
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बोलिए-- लक्ष्मी नारायण भगवान की जय।
शुभ वेला में भगवान का जन्म हुआ।
इस अद्भुत बाल छवि को देख कर देवकी वसुदेव स्तुति करने लगे।
तमद्भुतम बालकमम्बुजेक्षणम चतुर्भुजमशंखगदार्युदायुद्धम ।
श्रीवत्स लक्ष्मं गलशोभिकौस्तुभम पीतांबरम सान्द्रपयोदसौभगम
बालक अद्भुत क्यों? बोले- बच्चे दो हाथ वाले होते हैं, यह चारभुजा वाला है, बालक जन्म के समय आंख बंद किए रहते हैं, यह प्रस्फुटन आंखों वाला है, बालक नग्न पैदा होते हैं, यह तो पीतांबर पहन कर आया है। दूसरे बालक निहत्थे होते हैं, यह तो शंख चक्र गदा पद्म लिए खड़ा है। हर तरह से अद्भुत बालक हैं। ऐसे दिव्य बालक को देखकर वसुदेव जी ने प्रणाम किया आप प्रकृति से परे नारायण हैं, साक्षात् आनंद स्वरूप हैं। मैया डर रही हैं। आप जल्दी शिशु रूप में आ जाइए। कहीं मेरा भैया ना आ जाए। प्रभु हंस कर बोले- माताजी मामाजी की चिंता मत करें सुदर्शन चक्र है। जो कहना हो अभी कहो, जब मैं बाल रूप में आ जाऊँ तब मेरा ध्यान रखना इतना सुनकर देवकी का भय भाग गया। हाथ जोड़कर देवकी मैया भी स्तुति करने लगीं। हे प्रभु मृत्यु रूपी नागिन प्राणी के पीछे पड़ी हैं। जब तक प्राणी भागता-भागता आपके चरणों के सुखद छाया प्राप्त ना करें तब तक मृत्यु रूपी नागिन उसका पीछा नहीं छोड़ती। इस मृत्यु रूपी भयंकर रोग से कैसे बचें। धन्वंतरि भगवान की शरण में जाएं सारा इलाज कर देंगे। धनवंतरी कौन हैं? तो धन्वंतरी भगवान के चरणांबुज हैं। धन्वंतरी का जन्म समुद्र से और अंबुज भी जल से उत्पन्न होता है। धनवंतरी रूपी भगवान के कमलवत् चरणों का जो आश्रय ले लेगा वह भव रोग की पीडा से सर्वदा के लिए मुक्त हो जाएगा।
शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित ! जगत को जन्म देने वाला आज स्वयं जन्म ले रहा है।
जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो, बाजे बधाई,
जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई।।
यमुना भी धन्य हुई,
छूके चरण को,
लेके वासुदेव चले,
प्यारे ललन को,
वो दिए कान्हा को ब्रज पहुंचाई ,
गोकुल में देखो बाजे बधाई,
जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई।।
शेष अगले प्रसंग में । --------
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
- आरएन तिवारी
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