Adi Shankaracharya: हिन्दू धर्म के महान प्रतिनिधि आदि शंकाराचार्य
वैशाख महीने की शुक्ल पंचमी को गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है। इस साल शंकराचार्य जयंती 25 अप्रैल को मनाई जा रही है। आदि शंकराचार्य का जन्म को दक्षिण भारत के राज्य केरल के कालड़ी नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
आज शंकराचार्य जयंती है, शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के संस्थापक, महान हिन्दू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, तो इस विशेष अवसर पर आइए हम आपको शंकराचार्य के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं।
जानें शंकराचार्य के बारे में
वैशाख महीने की शुक्ल पंचमी को गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है। इस साल शंकराचार्य जयंती 25 अप्रैल को मनाई जा रही है। आदि शंकराचार्य का जन्म को दक्षिण भारत के राज्य केरल के कालड़ी नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु। नामपुद्रि और माता विशिष्टा देवी थीं। विशिष्टा देवी को विवाह के उपरांत बहुत समय तक संतान नहीं हुई तब उन्होंने शिव जी की आराधना की। उनकी कठोर उपासना से शिव जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उनके घर पुत्र के रूप में जन्म लिया। इसलिए बालक का नाम शंकर रखा गया। लेकिन शंकर के जन्म के कुछ समय बाद उनके पिता का निधन हो गया और इन हालातों में मां ने ही पालन-पोषण किया।
मां ने दी शंकाराचार्य को संन्यास ग्रहण करने की अनुमति
शंकाराचार्य विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने सात साल की उम्र में संन्यास ग्रहण करने की जिद की। लेकिन उनकी मां नहीं मान रहीं थीं। एक दिन जंगल में किसी मगरमच्छ ने उनका पैर अपने मुंह में ले लिया तभी शंकराचार्य ने मां से कहा कि अगर आप मुझे संन्यास लेने की अनुमति नहीं देगी ये मुझे खा जाएगा। इस बात से शंकाराचार्य की मां बहुत डर गयीं और उन्होंने संन्यास ग्रहण करने की अनुमति दे दी। लेकिन मां ने शंकाराचार्य से वचन लिया कि वह उनका अंतिम संस्कार जरूर करेंगे जिसे आदि गुरु ने पूरा भी किया था।
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शंकराचार्य जयंती पर होते हैं विभिन्न आयोजन
आदि शंकराचार्य जयन्ती के पावन पर्व पर देश भर में मौजूद शंकराचार्य मठों में विभिन्न प्रकार के पूजन हवन का आयोजन किया जाता है। साथ ही प्रवचनों तथा सत्संगों का भी आयोजन होता है। सनातन धर्म के महत्व से सम्बन्धित चर्चा और गोष्ठियां भी की जाती है। इसके अलावा शंकराचार्य जयंती पर विशेष प्रकार की यात्राएं भी निकाली जाती है। यात्रा करते समय भक्त रास्ते भर गुरु वन्दना और भजन-कीर्तन करते रहते हैं। इस अवसर पर अनेक समारोह आयोजित किए जाते हैं जिसमें वैदिक विद्वानों द्वारा वेदों का सस्वर गान प्रस्तुत किया जाता है।
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता प्रचलित है कि किसी मुश्किल परिस्थिति में अद्वैत सिद्धांत का पाठ करने से व्यक्ति परेशानियां से मुक्त होता है। इसके अलावा इस दिन धर्म यात्राएं तथा शोभा यात्राएं भी निकाली जाती हैं। आदि शंकराचार्य जी ने अद्वैत वाद के सिंद्धांत को प्रतिपादित किया था। अद्वैत वेदांत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। शंकराचार्य को हिंदू धर्म के महान प्रतिनिधि के तौर पर जाना जाता है।
आदि शंकराचार्य के बारे में कुछ रोचक तथ्य
ब्राह्मण दंपति के विवाह होने के कई साल के बाद भी कोई संतान नहीं हुई। संतान प्राप्ति के लिए ब्राह्मण दंपति ने भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठिन तपस्या से खुश होकर भगवान शंकर ने सपने में उनको दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। इसके बाद ब्राह्मण दंपति ने भगवान शंकर से ऐसी संतान की कामना की जो दीर्घायु भी हो और उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैले। तब भगवान शिव ने कहा कि या तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो सकती है या फिर सर्वज्ञ, जो दीर्घायु होगा वो सर्वज्ञ नहीं होगा और अगर सर्वज्ञ संतान चाहते हो तो वह दीर्घायु नहीं होगी। तब ब्राह्मण दंपति ने वरदान के रूप में दीर्घायु की बजाय सर्वज्ञ संतान की कामना की।
वरदान देने के बाद भगवान शिव ने ब्राह्मण दंपति के यहां संतान रूप में जन्म लिया। वरदान के कारण ब्राह्राण दंपति ने पुत्र का नाम शंकर रखा। शंकराचार्य बचपन से प्रतिभा सम्पन्न बालक थे। जब वह मात्र तीन साल के थे तब पिता का देहांत हो गया। तीन साल की उम्र में ही उन्हें मलयालम का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। आठ साल की उम्र में उन्हें वेदों का पूरा ज्ञान हो गया था और 12 वर्ष की उम्र में शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था। 16 वर्ष की अवस्था में 100 से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। बाद में माता की आज्ञा से वैराग्य धारण कर लिया था। मात्र 32 साल की उम्र में केदाननाथ में उनकी मृत्यु हो गई। आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की थी जिसे आज शंकराचार्य पीठ कहा जाता है।
शंकराचार्य की भक्ति यात्रा रही विशेष
शंकराचार्य का जीवन काल बहुत कम था। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही शरीर त्याग दिया था। लेकिन अपने जीवन में उन्होंने न केवल ज्ञान प्राप्त किया बल्कि अद्वैत वेदांत जैसे महान सिद्धांत का प्रतिपादन भी किया। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। देश के विभिन्न स्थानों पर जाकर उन्होंने हिन्दू धर्म तथा दर्शन से सम्बन्धित विषयों पर भी गहन चर्चा की। उन्होंने देश भर में यात्रा कर विभिन्न हिस्सों में चार मठों की भी स्थापना की थी। ये चार मठ देश के विभिन्न हिस्से में हैं तथा हिंदू धर्म में इनका बहुत महत्व है। हिन्दू धर्म को मानने वाले अनेक भक्त अपने जीवन में इन मठ के दर्शन अवश्य करना चाहते हैं।
श्रृंगेरी मठ- श्रृंगेरी शारदा पीठ शंकाराचार्य द्वारा स्थापित विशेष मठ है। यह भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है। श्रृंगेरी मठ को कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक माना जाता है।
गोवर्धन मठ- गोवर्धन मठ उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित है। गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से भी है।
शारदा मठ- द्वारका मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। इसे शारदा पीठ भी कहा जाता है।
ज्योतिर्मठ- ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में स्थित है।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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