मोदी को 2019 का चुनाव जिताने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं योगी

By अजय कुमार | Dec 22, 2018

नया साल आने वाला है। इसको लेकर लोगों में उमंग है तो सियासी गलियारों में भी नव वर्ष का बेताबी से इंतजार हो रहा है। 2019 में आम चुनाव होना है। देश को नई सरकार मिलेगी। नई सरकार मोदी के नेतृत्व में बनेगी या फिर जनता किसी और पर अपना विश्वास जतायेगी, यह प्रश्न कौतूहल पैदा करता है। आम चुनाव को लेकर सभी दलों में सरगर्मी तेज है। कहीं महागठबंधन की बात हो रही है तो कहीं ठगबंधन की चर्चा है। हां, इतना जरूर तय है कि 2019 के चुनावी दंगल में एक पाले में मोदी ताल ठोंकते नजर आयेंगे तो दूसरे पाले में मोदी विरोधी तमाम दलों के नेता ताल ठोंकते नजर आयेंगे। ऐसा नजरा इसलिये देखने को मिलेगा क्योंकि आज की तारीख में कोई भी नेता मोदी को अकेले दम पर चुनौती देने की हिम्मत नहीं रखता है। इन चुनावों की सबसे बड़ी विशेषता है कि अबकी बार राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त कांग्रेस से अधिक क्षेत्रीय क्षत्रप महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आ रहे हैं। कांग्रेस को इन क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना पड़ रहा है। क्षेत्रीय सूरमाओं की वजह से ही कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तक घोषित नहीं कर पा रही है। कांग्रेस के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब उनका नेता प्रधानमंत्री पद की दौड़ में प्रत्यक्ष रूप से मौजूद नजर नहीं आ रहा है।

 

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आम चुनाव हों और उत्तर प्रदेश की चर्चा न हो ऐसा नहीं हो सकता है क्योंकि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जो जाता है। 2014 में अगर मोदी की सरकार बनी तो इसमें उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। बीजेपी गठबंधन को यहां 80 में से 73 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस सहित सपा−बसपा का लगभग सफाया हो गया था। यह और बात है कि तब पूरा देश मोदीमय था, लेकिन बीजेपी की मजबूरी यह है कि उसे यहां से कम से कम 50−55 सीटें तो जीतना ही पड़ेंगी। बिना इसके बीजेपी का बेड़ा पार होना मुश्किल होगा। एक तरफ से मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने का पूरा दारोमदार योगी के कंधों पर है। इस बात का अहसास राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित सीएम योगी को है भी।

 

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सियासी जरूरत को समझते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कमर कस भी ली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले विकास के साथ−साथ जातीय गणित आदि सभी मोर्चों पर कील−कांटे दुरूस्त कर लेना चाहते है। इसीलिये किसानों की नाराजगी को दूर करने की भरपूर कोशिश हो रही है। प्रदेश में आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगाने के लिये अधिकारियों के पेंच कसे जा रहे हैं। प्रदेश के किसी भी कोने में साम्प्रदायिक हिंसा न फैले इसके लिये काफी तत्परता बरती जा रही है। हिन्दी भाषी तीन राज्यों से सत्ता हाथ से निकलने के बाद सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी से बचा जा रहा है। महिलाओं के लिये कल्याणकारी योजनाएं, बेरोजगारी को दूर करने के लिये बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान चल रहा है। लोकसभा चुनाव की आहट के साथ ही यूपी सरकार ने विकास के कामों की रफ्तार बढ़ा दी है। इसलिए योगी सरकार पूर्ण बजट से पहले मौजूदा वित्तीय वर्ष में दूसरी बार छोटा अनुपूरक बजट ले आई है ताकि आंगनबाड़ी कार्यकताओं और सहायिकाओं के मानदेय के लिए पैसे का इंतजाम किया जा सके।

 

स्वच्छता मिशन के तहत गांवों में शौचालय निर्माण की रफ्तार बरकरार रखने के लिए सरकार ने अपनी पोटली खोल दी है। दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के लिए भी भरपूर धनराशि देने का प्रस्ताव है। जो मतदाता विकास की बात करते हैं उनको लुभाने के लिये विकास पर ध्यान दिया जा रहा है तो धर्म से जुड़े लोगों की आस्था को ध्यान में रखते हुए यूपी में छोटे मंदिर−मठों और गोशालाओं को बिजली के बिलों में भारी छूट दी गई है। पांच किलोवाट तक के कनेक्शन वाले धार्मिक आश्रम या मठ आदि जो चौरिटेबल ट्रस्ट में पंजीकृत हैं, उनसे अब घरेलू टैरिफ के अनुसार बिल लिया जाएगा। पहले इनकी बिलिंग कमर्शियल टैरिफ में होती थी। इसी प्रकार पांच हॉर्स पावर तक गोशालाओं की बिलिंग भी नलकूप के टैरिफ के अनुसार की जाएगी। बिलिंग घरेलू टैरिफ व नलकूप श्रेणी में होने से इन छोटे संस्थाओं−गोशालाओं को हर महीने 500 से 1000 रुपये का सीधा फायदा होगा। विद्युत नियामक आयोग ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं।

 

योगी सरकार द्वारा सड़कों और पुलों के अधूरे काम जल्द से जल्द पूरा करने पर जोर दिया जा रहा है। वहीं अयोध्या समेत पांच जिलों में बन रहे नए मेडिकल कॉलेजों के लिए प्रतीक रूप में धनराशि आवांटित कर दी गई है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर लखनऊ के चिकित्सा विश्वविद्यालय के लिए 10 करोड़ तो स्वच्छ भारत मिशन के लिए तीन हजार करोड़ की भारी भरकम राशि का इंतजाम किया गया है।

 

उधर, जातीय वोट बैंक की सियासत को मजबूती प्रदान करने के लिये योगी सरकार द्वारा कोटे में कोटा का नया प्रावधान किया जा रहा है। ताकि पिछड़ों में अति−पिछड़ों को तलाश कर उनके लिये अलग से आरक्षण व्यवस्था की जा सके। इसी क्रम में गैर−यादव (वह वोट बैंक जिस पर अभी किसी भी पार्टी का पूरा कब्जा नहीं है) ओबीसी वोटरों को लुभाने के लिए योगी सरकार बड़ा दांव खेलने जा रही है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इसी साल जून में चार सदस्यीय समिति का गठन करके ओबीसी आरक्षण को अलग−अलग श्रेणियों में बांटे जाने के मामले में रिपोर्ट मांगी थी। पिछड़ों के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक पिछड़ेपन और नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी के अध्ययन के लिए हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी। इसमें बीएचयू के प्रोफेसर भूपेंद्र विक्रम सिंह, रिटायर्ड आईएएस जेपी विश्वकर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता अशोक राजभर शामिल थे। विश्वकर्मा 2002 में राजनाथ सरकार में बनी सामाजिक न्याय अधिकारिता समिति में भी सचिव थे।

 

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करीब छह माह बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट में 27 फीसदी पिछड़ा आरक्षण को तीन हिस्सों- पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा में बांटने की सिफारिश की है। पहली श्रेणी को 7 प्रतिशत, दूसरी श्रेणी को 11 प्रतिशत और तीसरी श्रेणी को 9 प्रतिशत आरक्षण वर्ग में रखा जाना प्रस्तावित है। इसी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि यादवों और कुर्मियों को 7 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है। समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि यादव और कुर्मी न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से बल्कि आर्थिक और राजनीतिक रसूख वाले हैं। यादव समाजवादी पार्टी का कोर वोटर है जबकि कुर्मी बीजेपी समर्थित अपना दल का कोर वोटर है। जस्टिस राघवेंद्र कमिटी की रिपोर्ट में ओबीसी को 79 उपजातियों में बांटा गया था।

 

 

इस रिपोर्ट में समिति ने सबसे ज्यादा आरक्षण की मांग अति पिछड़ा वर्ग के लिए की है, जो 11 फीसदी है। उन्होंने लोध, कुशवाहा, तेली जैसी जातियों को इस वर्ग में रखा है। 400 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अति पिछड़ा जाति के लोगों के लिए रोजगार की संभावनाएं उनकी जनसंख्या से आधी हैं। इस जाति की श्रेणी में आने वाले कुछ खास वर्ग हैं जिन्हें सबसे ज्यादा नौकरियां मिल रही हैं। अति पिछड़ा जाति में राजभर, घोसी और कुरैशी को 9 फीसदी आरक्षण दिए जाने की मांग की गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि इन जाति के लोगों को या तो थर्ड और पांचवीं श्रेणी की नौकरियां मिलती हैं या फिर ये बेरोजगार रहते हैं। इसमें यह भी मुद्दा उठाया गया है कि ओबीसी की कुछ उपजातियों को आरक्षण का लाभ मिलने के बाद उनका सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्तर ऊंचा उठा है। उनकी शिक्षा और जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होने के बाद से उनका राजनीति में हस्तक्षेप बढ़ा है। रिपोर्ट में लिखा है, 'ऐसा देखा गया है कि सिर्फ कुछ उप जातियों को आरक्षण का लाभ मिला जबकि अधिकांश इसके लाभ से अछूते रहे।'

 

-अजय कुमार

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