Matrubhoomi: संस्कृत को देवताओं की भाषा क्यों कहा जाता है? जानें कैसे हुई थी उत्पत्ति

By रेनू तिवारी | Apr 26, 2022

संस्कृत भाषा का इतिहास लाखों साल पुराना है। इस भाषा की उत्पत्ति कहा से और कैसे हुई इसके बारे में अभी सही तथ्य नहीं उपलब्ध है लेकिन इस भाषा का जड़े अन्नत काल तक जुड़ी है। भारत की संस्कृत भाषा से वर्तमान समय सेकड़ों भाषाएं निकली हैं और देश विषेश में बोली जा रही हैं। ग्रंथों की बात करें तो सबसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ ॠग्वेद है जो कम से कम ढाई हजार ईसापूर्व की रचना है। इससे आगे की खोज की खोज की जा रही है। संस्कृत केवल एक भाषा ही नहीं बल्कि अपने आप में शब्द और ज्ञान का सागर है। संस्कृत एक ऐसी भाषा है जो इंडो-आर्यन समूह से संबंधित है और सभी भारतीय भाषाओं की जड़ है। लेकिन विडंबना यह है कि आज के समय में संस्कृत 1% से भी कम भारतीयों द्वारा बोली जाती है। ज्यादातर धार्मिक समारोहों के दौरान हिंदू पुजारियों द्वारा इसका उपयोग किया जाता है। यह केवल एक भारतीय राज्य उत्तराखंड में आधिकारिक भाषाओं में से एक है। 

 

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पिछली जनगणना के अनुसार अरबों लोगों में से केवल 14,000 लोगों ने संस्कृत को अपनी प्राथमिक भाषा के रूप में वर्णित किया। देश के उत्तर-पूर्व, उड़ीसा, जम्मू और कश्मीर, तमिलनाडु, केरल और यहां तक कि गुजरात में लगभग कोई भी वक्ता नहीं था। स्कूलों में, इसे केवल एक वैकल्पिक भाषा के रूप में पेश किया जाता है, अधिकांश छात्र फ्रेंच, जर्मन और यहां तक कि मंदारिन को चुनना पसंद करते हैं, जिन्हें दुनिया में अधिक उपयुक्त माना जाता है। आज ऐसा लगता है मानों सभी भाषाओं को जन्म देने वाली संस्कृत बूढ़ी हो गयी है और अब यह सम्मान के लिए घर के अंदर शो पीस की तरह है। किसी भी सरकार ने संस्कृत भाषा के विस्तार के लिए कोई पुख्ता कदम नहीं उठाएं हैं न ही इसे पढ़ाने पर जौर दिया गया है। 

 

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पर आज हम संस्कृत भाषा कितनी श्रेष्ठ है इसके बारे में आपको बताएंगे आखिर क्यों संस्कृत को भगवान की भाषा कहा जाता है।


'संस्कृत' का अर्थ

संस्कृत को हिंदू धर्म में प्राचीन भाषा के रूप में माना जाता है, जहां इसे हिंदू आकाशीय देवताओं और फिर इंडो-आर्यों द्वारा संचार और संवाद के साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया था। जैन, बौद्ध और सिख धर्म में भी संस्कृत का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। 'संस्कृत' शब्द उपसर्ग 'सम' अर्थात 'सम्यक' के संयोजन से बना है जो 'संपूर्ण' होने की ओर इशारा करता है, और 'कृत' जो 'पूर्ण' को इंगित करता है। एक विशाल शब्दावली के साथ एक असाधारण जटिल भाषा, आज भी पवित्र ग्रंथों और भजनों के पढ़ने में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।


संस्कृत की उत्पत्ति और शुद्धता

संस्कृत भाषा को देव-वाणी ('देव' देवताओं - 'वाणी' भाषा) के रूप में कहा जाता था क्योंकि ऐसा माना जाता था कि इसे भगवान ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न किया गया था। ब्रह्मा द्वारा धरती सहित आकाशीय  ऊर्जा में रहने वाले ऋषियों को एक विद्या के तौर पर दी गयी। इन्हीं ऋषियों ने इस भाषा को धरती पर अमर किया। ऋषियों ने आपस में संचार के लिए संस्कृत भाषा का ही प्रयोग किया था। यहा भाषा ऋषियों के शिष्यों के माध्यम से धरती पर फैलती गयी।


वैदिक संस्कृत

संस्कृत को उसके साहित्यिक जुड़ाव के संदर्भ में दो अलग-अलग अवधियों में वर्गीकृत किया गया है, वैदिक और शास्त्रीय। वैदिक संस्कृत वेदों के पवित्र ग्रंथों, विशेष रूप से ऋग्वेद, पुराणों और उपनिषदों में पाई जाती है, जहां भाषा का सबसे मूल रूप इस्तेमाल किया गया था। वेदों की रचना का पता 1000 से 500 ईसा पूर्व की अवधि तक लगाया जाता है, जब तक कि संस्कृत का मौखिक रूप से संचार किए जाने की जोरदार परंपरा थी। यह प्रारंभिक संस्कृत शब्दावली, ध्वन्यात्मकता, व्याकरण और वाक्य-विन्यास में समृद्ध है, जो आज भी इसकी शुद्धता में एकरूप है। इसमें कुल 52 अक्षर, 16 स्वर और 36 व्यंजन हैं। इन 52 अक्षरों को कभी भी संशोधित या परिवर्तित नहीं किया गया है और माना जाता है कि यह शुरुआत से ही स्थिर रहे हैं, इस प्रकार यह शब्द निर्माण और उच्चारण के लिए सबसे उत्तम भाषा है।


संस्कृत भाषा हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म में संचार का पारंपरिक साधन रही है। संस्कृत साहित्य को प्राचीन कविता, नाटक और विज्ञान के साथ-साथ धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों में इस्तेमाल होने का विशेषाधिकार प्राप्त है। माना जाता है कि भाषा मानव मुंह में निर्मित ध्वनियों की प्राकृतिक प्रगति को देखकर उत्पन्न हुई है, इस प्रकार ध्वनि को भाषा निर्माण का एक महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है। मुंह से निकलने वाली ध्वनियों से बनीं संस्कृत में जब कविताएं पढ़ी जाती है तो वह एक लय से ही निकलती हैं और संस्कृत में मानव कान के लिए सुखद ध्वनि के माध्यम से सर्वोत्तम अर्थ निकालने की अभिव्यक्तिपूर्ण गुणवत्ता है। वैदिक संस्कृत में अमूर्त संज्ञा और दार्शनिक शब्द भी हैं जो किसी अन्य भाषा में नहीं मिलते हैं। व्यंजन और स्वर इतने लचीले होते हैं कि सूक्ष्म विचारों को व्यक्त करने के लिए एक साथ समूहबद्ध किए जा सकते हैं। कुल मिलाकर, भाषा अपनी पहुंच, जटिलता और एक ही अर्थ या वस्तु को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्दों के कारण बिना आधार के एक अंतहीन महासागर की तरह है।


शास्त्रीय संस्कृत - अष्टाध्यायी

शास्त्रीय संस्कृत की उत्पत्ति वैदिक काल के अंत में हुई थी जब उपनिषद लिखे जाने वाले अंतिम पवित्र ग्रंथ थे, जिसके बाद पाणिनि, पाणि के वंशज और व्याकरण और भाषाई शोधकर्ता, ने भाषा के परिष्कृत संस्करण की शुरुआत की। पाणिनि की समयरेखा चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास मानी जाती है, जब उन्होंने अपना काम 'अष्टाध्यायी' पेश किया, जिसका अर्थ है आठ अध्याय, जो संस्कृत व्याकरण का एकमात्र उपलब्ध मूलभूत और विश्लेषणात्मक पाठ है। इसे आज संस्कृत व्याकरण और शब्दावली का एकमात्र स्रोत माना जाता है, क्योंकि पाणिनि की अष्टाध्यायी में उनके उल्लेख के अलावा जो कुछ भी पहले मौजूद था वह कभी भी दर्ज नहीं किया गया था।

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