By अंकित सिंह | Jul 05, 2023
महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल का दौर जबरदस्त तरीके से जारी है। एनसीपी के शक्ति प्रदर्शन में पार्टी को लेकर अजित पवार गुट और शरद पवार गुट के अपने-अपने दावे हैं। जबसे अजित पवार भाजपा और शिवसेना गठबंधन वाली सरकार में शामिल हुए हैं, महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। सबसे बड़ा दावा तो यही किया जा रहा है कि भाजपा ने एकनाथ शिंदे पर लगाम लगाने के लिए यह बड़ा दांव खेला है। कहीं ना कहीं एनसीपी के अजित पवार गुट के सरकार में शामिल होने के बाद शिंदे खेमे में भी बेचैनी देखी जा रही है।
महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है। हालांकि, अपने दम पर वह सरकार नहीं बना सकती। उसके लिए किसी न किसी पार्टी का सहारा लेना जरूरी है। एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना से बगावत करने के बाद भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए। एकनाथ शिंदे के पास 40 के आसपास विधायकों का समर्थन था। भाजपा 105 विधायकों की पार्टी है। बावजूद इसके भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया। शिंदे भाजपा सरकार के पास 166 विधायकों का समर्थन हासिल है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर अजित गुट के एनसीपी का समर्थन सरकार ने इतनी जल्दबाजी में क्यों लिया? बिना किसी भनक के अचानक अजित पवार और उनके साथी विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिला दी गई। उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत साफ तौर पर कह रहे हैं कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री बदलने वाला है। एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री पद से विदाई होगी। भाजपा के देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनेंगे।
2019 में जब महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे तो उस वक्त भाजपा और शिवसेना गठबंधन में एक साथ चुनावी मैदान में थी। भाजपा की ओर से बार-बार और साफ तौर पर कहा गया कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनेंगे। चुनावी नतीजों के बाद शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद को लेकर आपत्ति जतानी शुरू कर दी। इसके बाद यह गठबंधन टूट गया। अचानक एक दिन देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार ने शपथ ले ली। फडणवीस मुख्यमंत्री बने और अजित पवार उपमुख्यमंत्री। हालांकि, 3 दिन बाद यह सरकार गिर गई। शरद पवार की एनसीपी भाजपा को समर्थन नहीं दिया। फडणवीस 2014 से 2019 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रहे हैं। यही कारण है कि फडणवीस को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। हालांकि फडणवीस को लेकर की चर्चा जोरों पर है कि उन्हें दिल्ली में मंत्रालय दिया जा सकता है। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ दावा करते हैं कि महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में फडणवीस भाजपा के सधे हुए नेता साबित हुए हैं। ऐसे में उन्हें दिल्ली बुलाना नुकसानदेह हो सकता है।
एक सवाल यह भी है कि आखिर भाजपा को अजित पवार की जरूरत क्यों? अजित पवार 5 बार महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बन चुके हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में महज 9 से 10 महीने का वक्त बचा हुआ है। भाजपा किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहती है। भाजपा मिशन 400 पार की तैयारी में जुटी हुई है। भाजपा के लिए महाराष्ट्र बेहद जरूरी है। उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 48 लोकसभा की सीटें हैं। पिछली बार भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने 41 सीटों पर जीत हासिल की थी। शिवसेना में बिखराव हो चुका है। अब उद्धव ठाकरे और भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़ेगी। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व से अलग होने के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना जमीन पर उतनी मजबूत नहीं हो सकी है। भाजपा किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती। इसलिए अजित पवार को भी साधने की कोशिश की गई है और सरकार में शामिल किया गया है। भाजपा के लिए सीट साझेदारी का फार्मूला भी आसान रह सकता है। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे पहले ही कमजोर हो चुके हैं। अब शरद पवार कमजोर हो गए हैं। भाजपा के लिए बेहतर स्थिति बना सकते हैं। इसके साथ ही विपक्षी एकता को जो बनाने की कोशिश हो रही है उसे भी बड़ा झटका दिया गया है।
उद्धव ठाकरे की पार्टी में टूट के बाद भी एनसीपी खुद की स्थिति को जमीन पर मजबूत कर रही थी। शरद पवार विपक्षी एकता की अगुवाई कर रहे थे। वह लगातार कई दलों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे थे। वदीं, इन दिनों एक सर्वे भी आ गया था। इसमें दावा किया गया था कि महाराष्ट्र में महा विकास आघाडी गठबंधन 34 लोकसभा की सीटें जीत सकती हैं। यह भाजपा के लिए एक बड़ा झटका था। इसी वजह से एनसीपी में जो विस्फोट हुआ है, उसे भाजपा ने साधने में देरी नहीं की है। अजित पवार के साथ प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, दिलीप वसले पाटिल जैसे बड़े नेता सरकार में शामिल हुए हैं। यह सभी एनसीपी के रीढ़ कहे जाते हैं। ऐसे में इनका शिंदे-फडणवीस सरकार में आना भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
राजनीति में जोड़-तोड़ चलता रहता है। सियासी दल अपने फायदे के हिसाब से इस तरह की जोड़-तोड़ की राजनीति को अंजाम देते रहते हैं। जनता के बीच जो खुद के संदेश को बेहतर तरीके से पहुंचा पाता है, वहीं इसका सिकंदर कहलाता है। यही तो प्रजातंत्र है।