हमारे पुराणों में त्रिदेव यानी कि 'ब्रह्मा, विष्णु और महेश' को विशेष स्थान प्राप्त है। कहा जाता है कि सृष्टि के निर्माण और संचालन में इन तीनों देवताओं की अहम भूमिका है। इसमें ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करते हैं, तो विष्णु भगवान सृष्टि के संचालन का कार्य संभालते हैं। महेश यानी कि शंकर भगवान सृष्टि के संहार का कार्य करते हैं।
हालांकि हमारे समाज में जिस प्रकार विष्णु भगवान और शंकर भगवान को पूजा और मान्यता प्राप्त है, ऐसी मान्यता और श्रद्धा ब्रह्मा जी को प्राप्त नहीं है। यहां तक कि भारतवर्ष में मात्र एक ही मंदिर है ब्रह्मा जी के नाम पर और वह पुष्कर राजस्थान में स्थित है।
साफ़ तौर पर हमारे देश में ब्रह्मा जी की पूजा का कोई प्रावधान नहीं है। इतना ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा जी के ऊपर यह भी लांछन लगता है कि उन्होंने अपनी पुत्री सरस्वती से विवाह किया था।
आइए जानते हैं इन किंवदंतियों के पीछे की वजह जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत के सभी पौराणिक ग्रंथ छंद और श्लोकों पर आधारित हैं। इन छंदों और श्लोकों की सटीक और सही विवेचना करना इतना आसान कार्य नहीं है।
बता दें कि ऋग्वेद, अथर्ववेद, श्रीमदभागवत के कुछ श्लोकों की विवेचना के आधार यह कहा जाता है कि ब्रह्मा जी अपनी पुत्री सरस्वती पर मोहित हो गए थे और उन्होंने सरस्वती से विवाह किया। हालांकि इन वेदों के श्लोकों को लेकर और भी कई सारे वर्णन और विवेचना मिलती है जो इस बात का खंडन भी करती है।
ये वर्णन हमें बताते हैं कि ब्रह्मा जी की अपनी पुत्री से विवाह श्लोकों की गलत विवेचना के कारण समाज में फैली गयी। हालांकि हमारे समाज में प्रचलित इस धार्मिक धारणा के खंडन के लिए वेदों में वर्णित श्लोकों का सही और सटीक विवेचना बहुत जरूरी है और इस पर एक गहन अध्ययन की आवश्यकता है। वहीं पौराणिक कथाओं के आधार पर कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने अपने मुख से सरस्वती को जन्म दिया था, इसीलिए सरस्वती को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री कहा जाता है।
ये हैं वो श्लोक जिनकी विवेचना लोगों ने अलग-अलग की और इसका अर्थ बदलता गया।
वाचं दुहितरं तन्वीं स्वयंभूर्हतीं मन:।
अकामां चकमे क्षत्त्: सकाम् इति न: श्रुतम् ॥(श्रीमदभागवत् 3/12/28)
प्रजापतिवै स्वां दुहितरमभ्यधावत्
दिवमित्यन्य आहुरुषसमितन्ये
तां रिश्यो भूत्वा रोहितं भूतामभ्यैत्
तं देवा अपश्यन्
“अकृतं वै प्रजापतिः करोति” इति
ते तमैच्छन् य एनमारिष्यति
तेषां या घोरतमास्तन्व् आस्ता एकधा समभरन्
ताः संभृता एष् देवोभवत्
तं देवा अबृवन्
अयं वै प्रजापतिः अकृतं अकः
इमं विध्य इति स् तथेत्यब्रवीत्
तं अभ्यायत्य् अविध्यत्
स विद्ध् ऊर्ध्व् उदप्रपतत् ( एतरेय् ब्राहम्ण् 3/333)
अथर्ववेद का श्लोक:-
सभा च मा समितिश्चावतां प्रजापतेर्दुहितौ संविदाने।
येना संगच्छा उप मा स शिक्षात् चारु वदानि पितर: संगतेषु।
ऋगवेद का श्लोक:-
पिता यस्त्वां दुहितरमधिष्केन् क्ष्मया रेतः संजग्मानो निषिंचन् ।
स्वाध्योऽजनयन् ब्रह्म देवा वास्तोष्पतिं व्रतपां निरतक्षन् ॥ (ऋगवेद -10/61/7)
हिन्दू धर्म के दो ग्रंथों 'सरस्वती पुराण' और 'मत्स्य पुराण' में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का सरस्वती से विवाह करने का प्रसंग मिलता है, जिसके फलस्वरूप इस धरती के प्रथम मानव 'मनु' का जन्म हुआ।
लेकिन पुराणों की व्याख्या करने वाले सरस्वती के जन्म की कथा को उस सरस्वती से जोड़ देते हैं, जो ब्रह्मा की पत्नी हैं। इसी के चलते समाज में ग़लतफहमी बढ़ती गयी। हालांकि इस पर शोध कर इस भ्रम को स्पष्ट किए जाने की आज ज्यादा जरूरत है।
कितनी हैं ब्रह्मा जी की पत्नियां?
पौराणिक ग्रंथों पर नजर डालें तो उन ग्रंथों में वर्णित है कि ब्रह्मा जी की 5 पत्नियां थीं। इनमें सर्वप्रथम सावित्री का नाम आता है, इसके बाद गायत्री, श्रद्धा, मेघा और सरस्वती का नाम लिया जाता है।
क्यों नहीं की जाती ब्रह्मा की पूजा?
कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी को पुष्कर में एक यज्ञ संपन्न कराना था और इस दौरान उनकी प्रथम पत्नी सावित्री उपलब्ध नहीं थीं, तो ब्रह्मा जी को पुष्कर की ही महान वेदों की ज्ञाता गायत्री से विवाह करना पड़ा। ब्रह्मा जी के इस निर्णय से रुष्ट होकर सावित्री ने उन्हें श्राप दे दिया कि विश्व में कहीं भी आपकी पूजा नहीं होगी।
ब्रह्मा जी के पूजा ना किए जाने के पीछे एक और कथा प्रचलित है जिसमें कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में अपनी-अपनी श्रेष्ठता साबित करने की जंग चल रही थी, जिससे सभी देवता परेशान हो गए तभी दोनों देवताओं के सामने एक विशाल लिंग उत्पन्न हो गया।
इस लिंग की तरफ इशारा करते हुए भगवान शंकर ने ब्रह्मा और विष्णु को लिंग की जड़ का पता लगाने के लिए भेजा। इस दौरान ब्रह्मा जी आधे रास्ते से लौट आए और भगवान शंकर से झूठ बोल दिया कि उन्होंने जान लिया है कि यह विशाल लिंग कहां से शुरू होता है और वह स्थान पाताल है। ब्रह्मा जी ने इस कार्य में केतकी के पुष्प को साक्षी बना लिया था, जिससे उनकी बात सच साबित हो सके।
ब्रह्मा जी के इस झूठ से नाराज होकर शंकर जी ने उन्हें श्राप दे दिया, जिसके कारण कहीं भी ब्रह्मा जी के पूजे जाने का प्रावधान नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने केतकी के सुन्दर पुष्प को भी श्राप दे दिया, जिसके बाद किसी भी पूजा में केतकी के पुष्प को शामिल नहीं किया जाता है। हालाँकि विष्णु जी भी लिंग का पता लगाने में सफल नहीं हो पाए और इस तरह इन दोनों देवताओं का घमंड टूट गया।
यही वो वजह है कि दुनिया में कहीं भी ब्रह्मा जी की पूजा नहीं है।
एक और कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा और उनके मानस पुत्र देवर्षि नारद के आपस में शाप देने की कथा प्रचलित है। इसके अनुसार एक बार ब्रह्म देव ने अपने मानस पुत्र नारद को धरती पर किसी आवश्यक कार्य के लिए भेजना चाहा, मगर नारद ने यह विचार कर मना कर दिया कि धरती पर जाने से उनकी भक्ति में बाधा पड़ेगी।
ऐसे में क्रुद्ध होकर ब्रह्म देव ने उन्हें काम वासना में लिप्त हो जाने का शाप दे दिया। नारद मुनि को भी बड़ा क्रोध आया और अकारण शाप देने से उन्होंने भी उलट कर ब्रह्म देव को शापित कर दिया कि ब्रह्माण्ड में उनकी कभी पूजा नहीं होगी।
यह लेख किसी भी तरह के तथ्य की पुष्टि नहीं करता है। ये सभी बातें समाज में प्रचलित किवदंतियों के आधार पर कही गयी हैं।
- विंध्यवासिनी सिंह