By अभिनय आकाश | Mar 25, 2020
"आज हमने जो पाया है वो पांच-पांच पीढ़ी खप गई है तो आया है" लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यात्रा को याद करते हुए ये शब्द बयां किए थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जिसकी उम्र 2025 में 100 वर्ष हो जाएगी। लेकिन ये एक ऐसा नाम है जिसका जिक्र होते ही राजनीति के गलियारे की धड़कन बढ़ जाती है। समाज के भीतर देश के सबसे बड़े परिवार के तौर पर आरएसएस अपनी पहचान कराता है। आज आपको बताते हैं आरएसएसस की नींव रखने वाले केशव बलिराम हेडगेवार की पूरी कहानी।
डॉ. हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर में पंडित बलिराम पंत के घर में हुआ। बचपन से ही उनके मन में ये सवाल उठता था कि आखिर हम गुलाम क्यों हैं? साल 1898 की बात है, जब एक दस साल का लड़का रानी विक्टोरिया की राज्यारोहन के पचासवीं जयंती पर बांटे गए मिठाइयों को यह कहते हुए कूड़ेदान में फेंक देता है कि हम विदेशी राज्य की खुशियां क्यों मनाएं। वहीं लड़का बाद में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार के नाम से जाना गया। बचपन से ही राष्ट्र के नाम पर मर मिटने की चाह ने हेडगेवार को अपनी उम्र से बड़ा और परिपक्व बना दिया। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उस वक्त पूरे देश में आवाज बुलंद हो रही थी। 1905 के बंग-भंग विरोधी आंदोलन का दमन करने के लिए अंग्रेजों ने वंदे मातरम के नारे पर पाबंदी लगा दी। लेकिन नागपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे के मन में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा धीरे-धीरे विद्रोह का रूप ले रही थी। 1907 में स्कूल का निरीक्षण करने जैसे ही एक अंग्रेज स्कूल में दाखिल हुए तो उनका स्वागत स्कूल में वंदे मातरम के उदघोष से हुआ। धीरे-धीरे ये नारा स्कूल की हर क्लास में यही नारा गूंजने लगा।
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महज 15 साल की उम्र में स्कूल के निरीक्षक के सामने क्लास में केशव ने वंदे मातरम का नारा लगवा दिया था। जिस पर प्रधान अध्यापक ने नाराज होकर उन्हें स्कूल से निकाल दिया था। बाद में दूसरे स्कूल में उन्होंने दाखिला लेकर शिक्षा पूरी की। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद हेडगेवार मेडिकल की पढ़ाई करने कोलकाता चले गए। कोलकाता उन दिनों क्रांतिकारी आंदोलन का केंद्र था। मेडिकल की पढ़ाई करते वक्त ही हेडगेवार बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे। उनकी नेतृत्व क्षमता की वजह से हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश का उपाध्यक्ष बनाया गया। संगठन की क्षमता में दक्षता हासिल करने के बाद वो कोलकाता से नागपुर चले गए। नागपुर से ही उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका निभानी शुरू की। जल्द ही वो कांग्रेस से जुड़ गए और कुछ ही समय में विदर्भ प्रांतीय कांग्रेस के सचिव बन गए। 1920 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी डॉ. हेडगेवार के ही कंधों पर थी।
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अधिवेशन में उन्होंने पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता को लक्षय बनाने के बारे में प्रस्ताव पेश किया। लेकिन तब वो पारित नहीं हो सका। गांधी जी से प्रभावित होकर हेडगेवार असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। 1921 में सत्याग्रह करते हुए उन्होंने गिरफ्तारी दी और एक साल तक जेल में रहे। कांग्रेस से जुड़े होने के बाद भी उन्हें लगता था कि आजादी मिलमे के बाद भी समाज में राष्ट्रवाद की भावना स्थाई तौर पर मजबूत रहनी चाहिए। एक मजबूत राष्ट्र के लिए उनकी सोच स्वाभिमानी और संगठित समाज के निर्माण की थी।
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इसी सोच के साथ 1925 में विजय दसमी के दिन उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस की स्थापना की। संघ की शाखाओं के जरिए उन्होंने युवाओं के मन में शक्ति, सामूहिकता, अनुशासन और राष्ट्र गौरव के साथ ही समाज के लिए निस्वार्थ भाव से त्याग करने की प्रेरणा दी। कड़ी मेहनत के बूते करीब पंद्रह साल तक पूरे देश में भ्रमण कर वे संघ की विचारधारा के प्रचार और संघ सेवकों को जोड़ने में कामयाब रहे। डॉ. हेडगेवार भारत की प्राचीन संस्कृति और भारत की परंपराओं के प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास रखते थे।
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गुरु की जगह भगवा ध्वज को किया स्थापित
1928 में गुरु पूर्णिमा के दिन से गुरु पूजन की परंपरा शुरू हुई। जब सब स्वयं सेवक गुरु पूजन के लिए एकत्र हुए तब सभी स्वयंसेवकों को यही अनुमान था कि डॉक्टर साहब की गुरु के रूप में पूजा की जाएगी। लेकिन इन सारी बातों से इतर डॉ. हेडगेवार ने संघ में व्यक्ति पूजा को निषेध करते हुए प्रथम गुरु पूजन कार्यक्रम के अवसर पर कहा, “संघ ने अपने गुरु की जगह पर किसी व्यक्ति विशेष को मान न देते हुए परम पवित्र भगवा ध्वज को ही सम्मानित किया है। इसका कारण है कि व्यक्ति कितना भी महान क्यों न हो, फिर भी वह कभी भी स्थिर या पूर्ण नहीं रह सकता।
गांधी जी के सविनय अविज्ञा आंदोलन में बाद स्वयं सेवकों के साथ जेल में रहे
डॉ. हेडगेवार राष्ट्रहित में व्यक्तिगत मतभेदों को दूर रखने में परहेज नहीं करते थे। 1930 में गांधी जी के नेतृत्व में सविनय अविज्ञा आंदोलन के दौरान उन्होंने विदर्भ में सत्याग्रह में स्वयं सेवकों के साथ भाग लिया और 9 महीने जेल में रहे।
हेडगेवार अपने जीवन में बाल गंगाधर तिलक और सुभाष चंद्र बोस के काफी करीबी रहे। महात्मा गांधी के साथ भी वो देश की राजनीति और भविष्य पर चर्चा किया करते थे। नेताजी के साथ तो उन्होंने संघ के साथ मिलकर नए भारत के निर्माण पर चर्चा भी की। गंभीर रूप से बीमार होने पर सुभाष चंद्र बोस डॉ. हेडगेवार का हाल जानने खुद उनके पास गए। लेकिन नेताजी से मुलाकात के दो दिन बाद ही 21 जून 1940 को डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार का निधन हो गया। लेकिन उनका शुरू किया गया संगठन आरएसएस न सिर्फ इस समय देश का सबसे बड़ा गैर राजनीतिक संगठन है बल्कि स्वयं सेवकों का दुनिया का सबसे बड़ा संगठन भी बन चुका है।